पेड़: एक खामोश ज़बान

पेड़: एक खामोश ज़बान

परिवर्तन की कला सीखो और सारी दुनिया तुम्हारे लिए आध्यात्मिक भोजन का स्रोत बन जाएगी।

हरे-भरे पेड़ों से घिरा घर हर किसी को अच्छा लगता है। हरे पत्ते हमारी दुनिया को सजाते हैं। यह वह विचार है, जिससे फार्महाउस (बगीचों में घर) अस्तित्व में आए हैं। लेकिन किसी ऐसे व्यक्ति का मिलना मुश्किल है, जो पेड़ों के मौन संदेश को सुन सके या ‘पेड़ संस्कृति’ (tree culture) को अपने जीवन में अपनाने की कोशिश करे। पेड़ लगाने की संस्कृति काफी आम है, लेकिन पेड़ की संस्कृति को अपनाना शायद ही कभी देखने को मिलता है। पेड़ हमारे घर की खूबसूरती बढ़ाते हैं, लेकिन उस घर में रहने वाले की खूबसूरती नहीं बढ़ाते।

पेड़ उसी दुनिया में रहता है, जिसमें हम रहते हैं, लेकिन एक अंतर है। लोगों का जीवन तनाव, द्वेष, घृणा और हिंसा से अस्त-व्यस्त है, जबकि ये सभी नकारात्मक विशेषताएं पेड़ की संस्कृति से पूरी तरह से गायब हैं। इंसान एक चलते-फिरते पेड़ के समान है, लेकिन वह अपने जीवन में पेड़ की संस्कृति का पालन करने में असफल है। पेड़ हमारी दुनिया साझा करते हैं, लेकिन जहां इंसान के लिए यह दुनिया शिकायत, घृणा और तनाव का स्रोत बन गई है, वहीं दुनिया पेड़ के लिए एक अलग अर्थ रखती है। पेड़ में हम जो खूबसूरती देखते हैं, वह इसी दुनिया से आई है। यह इसके द्वारा बाहर अंतरिक्ष से आयात नहीं की गई। पेड़ के लिए यह कैसे संभव हुआ? कारण यह है कि पेड़ ने स्वभाव से ही परिवर्तन की कला अपना ली है यानी चीज़ों को अपने लाभ के लिए परिवर्तित करना।

पेड़ क्या करता है? यह मिट्टी से खनिज व पानी लेता है और उन्हें अपने लिए भोजन में बदल देता है। पेड़ फोटोसिंथेसिस (photosynthesis) की प्रक्रिया के माध्यम से सूरज से प्रकाशीय ऊर्जा (light energy) लेता है और इसे रासायनिक ऊर्जा (chemical energy) में परिवर्तित करता है, जिसका उपयोग तब इसकी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है।

यह परिवर्तन की कला का परिणाम है। ऐसा करते हुए हर पेड़ इंसान को एक मौन संदेश देता है, परिवर्तन की कला सीखो और पूरी दुनिया तुम्हारे लिए आध्यात्मिक भोजन का स्रोत बन जाएगी। पूरी दुनिया को अपने व्यक्तित्व के विकास का वैश्विक स्रोत बनाओ। फिर आप इस दुनिया में एक शिकायत-मुक्त व्यक्ति के रूप में रह सकेंगे।

उदाहरण के लिए, यदि कोई ऐसा कुछ कहता है, जो आपके विचार के विरुद्ध हो, तो इसे चर्चा के विषय में बदल दें। अगर कोई आपकी बुराई करता है, तो उसे आत्म-खोज (self discovery) का स्रोत बनाएं। यदि आपके साथ भेदभाव किया जाता है, तो इससे सबक लें कि आपको अपने आपमें उस कमी की पूर्ति करने की आवश्यकता है, जिसके आधार पर आपके साथ भेदभाव किया गया है। यदि कोई आपको उकसाता है, तो आपको एकतरफा तौर पर पीछे हटकर मामले को शांत करना चाहिए। अगर कोई आपको गुस्सा दिलाता है, तो आपको उसे माफ करके खुद को शांत करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति आपके नज़रिए से अलग है, तो उसके साथ चर्चा करें और इस प्रकार अपना बौद्धिक विकास करें।

एक कहानी है, जो हमें बताती है कि एक बार किसी ने श्रीराम को पत्थर मारा। बदले में श्रीराम ने उस व्यक्ति को गले लगा लिया और इस तरह उन्होंने पत्थर फेंकने को एक सकारात्मक (positive) गुण यानी इंसानियत के लिए प्रेम पैदा करने का एक साधन बना लिया।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि पेड़ की संस्कृति को अपने जीवन में कैसे अपनाना चाहिए। यदि आप किसी पेड़ पर पत्थर फेंकेंगे, तो बदले में वह आपको फल देगा। यह उच्चतम प्रकार का सकारात्मक व्यवहार है। इस सकारात्मक व्यवहार को अपनाकर आप पेड़ की तरह पूरी दुनिया को अपने पक्ष में कर सकते हैं।

हर कोई आज़ाद है। इस आज़ादी ने दुनिया को मतभेदों से भर दिया है। यही मतभेद दूसरों के प्रति नकारात्मक विचारों (negative thought) को जन्म देता है। फिर ऐसी स्थिति में जीने की कला क्या है? यह किसी-न-किसी तरह से हर मतभेद को सकारात्मक विचार (positive thought) में बदलना है, जो कि आपके पक्ष में होगा।

मौलाना वहीदुद्दीन खान इस्लामी आध्यात्मिक विद्वान हैं, जिन्होंने इस्लाम, आध्यात्मिकता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर लगभग 200 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं।

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