परशुराम की कुल्हाड़ी

कहते हैं कि ब्राह्मण समुदाय ने परशुराम का बहिष्कार किया। परशुराम ने तय किया कि वे अपनी शक्तियों से इन तटवर्ती क्षेत्रों में लड़ाकू साधुओं का निर्माण करेंगे, जो अधर्मी राजाओं से लड़ेंगे।

विष्णु के छठें अवतार परशुराम सबसे विवादग्रस्त अवतारों में से एक भी हैं। इसलिए, उन्हें समर्पित इतने मंदिर नहीं पाए जाते। कुछ ऐसे मंदिर कोंकण और कर्णाटक के समुद्रतट पर पाए जाते हैं। इन मंदिरों में भी परशुराम का केवल सहायक दर्जा है और उनकी मां रेणुका का प्रथम स्थान है। परशुराम के विवादग्रस्त स्वरुप के दो कारण हैं।

पहला कारण है उनका अपनी माँ के साथ जटिल संबंध। कहते हैं कि सप्तऋषियों में से एक, जमदग्नि ऋषि ने रेणु राजा की पुत्री रेणुका से विवाह किया था। दोनों को पांच पुत्र हुए। एक दिन जब रेणुका नदी से पानी इकठ्ठा कर रही थी, तब उसने पानी में एक गंधर्व का प्रतिबिंब देखा। कुछ लोग मानते हैं कि वह व्यक्ति कार्तवीर्य अर्जुन नामक राजा था। प्रतिबिंब को देख रेणुका में क्षणभर के लिए कामना जाग उठी। इस कारण, रेणुका ने अपनी शुद्धता और निष्ठा से प्राप्त की हुई कच्चे मटकों में पानी इकठ्ठा करने की जादुई शक्ति खो दी।

रेणुका की निष्ठा में क्षणभर की इस रोक का पता लगने पर जमदग्नि ने रेणुका का सिर काट दिए जाने का आदेश दिया। वे यह मानने के लिए तैयार नहीं थे कि रेणुका ने इस क्षणिक विचार को क्रिया में नहीं बदला था। उनके चार ज्येष्ठ पुत्रों ने इस आदेश की अवज्ञा की। इसलिए उन्हें किन्नर बनने का शाप मिला। कनिष्ठ पुत्र परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा मानी और कुल्हाड़ी से अपनी मां का सिर काट दिया। फिर उन्होंने अपने पिता से उनकी जादुई शक्तियों से अपनी मां को पुनर्जीवित करने का अनुरोध किया।

हिंदुत्व परशुराम के इस पहलु की उपेक्षा कर एक और पहलु की बात करना पसंद करता है, जहां कार्तवीर्य अर्जुन नामक राजा ने जमदग्नि के पिता की गाय चुराने की कोशिश की। कहते हैं कि एक दिन यह राजा अपनी सेना के साथ जमदग्नि के आश्रम पहुंचा। जमदग्नि ने दैवी गाय कामधेनु की मदद से राजा सहित सभी सैनिकों को भोजन दिया।

जब राजा ने अपने राज्य के भले के लिए जमदग्नि से गाय मांगी, तब जमदग्नि ने उन्हें नकारा। फिर जब राजा ने गाय चुराने की कोशिश की तब आगे हुई मुठभेड़ में उसने ऋषि जमदग्नि का सिर काट दिया। इस अपराध का पता लगने पर परशुराम ने न केवल कार्तवीर्य अर्जुन का बल्कि उसके सभी पुत्रों सहित धरती पर उसका समर्थन करने वाले सभी क्षत्रिय राजाओं का वध किया।

परशुराम ने उनके लहू से पांच तालाब भर दिए। इस हिंसा के कृत्य के लिए वे संपूर्ण आर्य भूमि के स्वामी बन गए। उन्होंने ये भूमि ब्राह्मणों को देकर अपनी कुल्हाड़ी समुद्र में फेंक दी। जब समुद्र भयभीत होकर पीछे हट गया, तब एक भूमि दिखाई दी जो केरल का कोंकण तट बन गई।

कहते हैं कि ब्राह्मण समुदाय ने परशुराम का बहिष्कार किया। परशुराम ने तय किया कि वे अपनी शक्तियों से इन तटवर्ती क्षेत्रों में लड़ाकू साधुओं का निर्माण करेंगे, जो अधर्मी राजाओं से लड़ेंगे। कोई भी ब्राह्मण परशुराम का साथ देने के लिए तैयार नहीं हुआ।

इसलिए, उन्होंने मृत ब्राह्मणों को पुनर्जीवित किया। चूंकि इन ब्राह्मणों को पुनर्जीवित कर चिता से पावन किया गया था, वे चितपावन ब्राह्मण कहलाए। इन ब्राह्मणों ने मराठा साम्राज्य के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। परशुराम ने केरल के नायर समुदाय को लड़ना सिखाया। इसके अलावा कुछ राजपूतों के अनुसार, परशुराम ने हवन किया और उस अग्नि से अग्निकुल राजपूतों को जन्म दिया। इन राजपूतों ने पहले के क्षत्रियों की जगह ली।

भारतभर में, हिंदुत्व के कारण कुल्हाड़ी-धारक परशुराम की विशाल, बलवान प्रतिमाएं उभरीं हैं। यह वही कुल्हाड़ी है जिससे परशुराम ने रेणुका और कार्तवीर्य अर्जुन दोनों के सिर काट दिए थे। क्या यह महिलाओं और पुरुषों को हिंदुत्व की नैतिक संहिता को न तोड़ने की चेतावनी है?

परशुराम की हिंसा को धार्मिक कहकर मान्यता दी जाती है। लेकिन विडंबना यह है कि एक बात अनकही रह जाती है – विष्णु के आठवें अवतार कृष्ण द्वारा परशुराम के शिष्यों भीष्म, द्रोन और कर्ण को पांडवों से संपत्ति न बांटने वाले कौरवों का समर्थन करने के लिए अधार्मिक ठहराया जाना और उनका वध होना।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।