पहचान-पत्र के बिना

वह समय आने वाला है, जब किसी आँख के लिए सबसे अधिक सुंदर दृश्य यह होगा कि वह अपने रचयिता को देखे।

गाँव का रहने वाला एक लड़का शहर आया। सड़क पर चलते हुए वह एक स्‍कूल की इमारत के सामने से गुज़रा। यह स्‍कूल के जश्‍न का दिन था। सैकड़ों लड़के एक खिड़की के सामने लाइन लगाकर खड़े थे। उस देहाती लड़के ने पास जाकर देखा तो पता चला कि उस खिड़की पर मिठाई बँट रही है और हर एक उसको ले-लेकर बाहर आ रहा है। देहाती लड़का भी लाइन के साथ आगे बढ़ता रहा। वह समझता था कि जब मेरा नंबर आएगा तो मिठाई का पैकेट उसी प्रकार मेरे हाथ में भी होगा, जिस प्रकार वह दूसरों के हाथ में दिखाई दे रहा है।

लाइन एक के बाद एक आगे बढ़ती रही। यहाँ तक कि वह देहाती लड़का खिड़की के सामने पहुँच गया। उसने प्रसन्नतापूर्वक अपना हाथ खिड़की की ओर आगे बढ़ाया। इतने में खिड़की के पीछे से आवाज़ आई— ‘तुम्‍हारा पहचान-पत्र’। उस लड़के के पास कोई पहचान-पत्र न था। वह पहचान-पत्र प्रस्तुत न कर सका, इसलिए उसे खिड़की से हटा दिया गया। अब लड़के को पता चला कि यह मिठाई उन लोगों को बाँटी जा रही थी, जो वर्ष भर इस स्‍कूल के विद्यार्थी थे, न कि किसी ऐसे आदमी को, जो अचानक कहीं से आकर खिड़की पर खड़ा हो गया हो।

ऐसा ही कुछ मामला परलोक में घटित होने वाला है। परलोक ईश्वर के निर्णय का दिन है। इस दिन सारे लोग ईश्वर के यहाँ जमा किए जाएँगे। वहाँ लोगों को पुरस्‍कार बाँटे जा रहे होंगे, लेकिन पाने वाले केवल वही होंगे, जिन्‍होंने इस दिन के आने से पहले पाने का अधिकार पैदा किया हो, जो अपना पहचान-पत्र लेकर वहाँ उपस्थित हुए हों। 

वह समय आने वाला है, जब किसी आँख के लिए सबसे अधिक सुंदर दृश्य यह होगा कि वह अपने रचयिता को देखे। किसी हाथ के लिए सबसे अधिक प्रसन्नता का अनुभव यह होगा कि वह अपने रचयिता को छुए। किसी सिर के लिए सबसे अधिक सम्‍मान और गर्व की बात यह होगी कि वह इसे संपूर्ण संसार के रचयिता के आगे झुका दे, लेकिन यह सब कुछ केवल उन लोगों के लिए होगा, जिन्‍होंने इस दिन के आने से पहले अपने आपको ईश्वर की सृष्टि में दया का पात्र सिद्ध किया हो। शेष लोगों के लिए उनकी लापरवाही उनके और उनके ईश्वर के बीच रुकावट बन जाएगी। वे ईश्वर के संसार में पहुँचकर भी ईश्वर को न देख पाएँगे। वे पाने वाले दिन भी अपने लिए कुछ पाने से वंचित रहेंगे।

मौलाना वहीदुद्दीन खान इस्लामी आध्यात्मिक विद्वान हैं, जिन्होंने इस्लाम, आध्यात्मिकता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर लगभग 200 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं।

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