मुझे छठ पूजा की कहानी बताओ

छठ पूजा मुख्य रूप से गृहिणियों द्वारा, घर की कुलमाताओं, द्वारा की जाती है। बिहार और नेपाल के कुछ हिस्सों में, अर्थात विस्तृत मगधी क्षेत्र में और झारखंड में, महिलाएँ कई दिनों तक उपवास करती हैं…

कई लोग मुझे छठ पूजा के महत्त्व के बारे में पूछते हैं। वे उससे जुड़ी कोई कहानी सुनना चाहते हैं, ठीक जैसे दिवाली पर राम के अयोध्या लौटने और लक्ष्मी के घर में प्रवेश करने की कहानियाँ बताईं जाती हैं। उन्हें लगता है कि छठ पूजा से भी कोई कहानी जुड़ी होगी।

हाँ, हम छठ पूजा से जुड़ीं कई कहानियाँ बता सकते हैं – कि यह पूजा सूर्य से जुड़ी है; माँओं की रक्षा करने वाली देवी, षष्ठी, से जुड़ी है; या कार्तिकेय को पोसने वाले छह कृत्तिका सितारों से जुड़ी है। या यह 14 साल के वनवास से लौटने के बाद श्री राम और सीता द्वारा किया गया त्यौहार है; और द्रौपदी और पांडवों द्वारा, जुए में सब कुछ हारने के बाद अपने भाग्य को बहाल करने के लिए की गई पूजा है; कि राजाओं ने यह अनुष्ठान संतान प्राप्ति के लिए किए थे।

लेकिन ये कहानियाँ बाद में आईं। अनुष्ठान कहानियों से पहले अस्तित्व में था। कर्म करना कहानी से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण था। सबसे पुराने धर्मों में, कर्म कांड ज्ञान कांड से अधिक महत्त्वपूर्ण है। भक्ति क्रिया से भले ही जुड़ी हो, लेकिन कर्म सबसे महत्त्वपूर्ण है।

उदाहरण के तौर पर, दिवाली में दीप जलाए जाते हैं। क्यों? कुछ लोग कहते हैं कि यह राम के अयोध्या लौट आने के कारण है। कुछ लोग कहते हैं कि दीप जलाने से हम लक्ष्मी को अपने घरों में आने का मार्ग दिखाते हैं। और अन्य लोग कहते हैं कि दीप जलाने से हमारे पूर्वज, जो नवरात्रि से पहले पितृ-पक्ष के दौरान हमसे मिलने आते हैं, पितृ-लोक में आसानी से लौट सकते हैं। कोई एक कहानी सभी द्वारा स्वीकृत नहीं है। लेकिन सभी सहमत हैं, कि दिवाली रोशनी का त्यौहार है।

इसी तरह छठ पूजा मुख्य रूप से गृहिणियों द्वारा, घर की कुलमाताओं, द्वारा की जाती है। बिहार और नेपाल के कुछ हिस्सों में, अर्थात विस्तृत मगधी क्षेत्र में और झारखंड में, महिलाएँ कई दिनों तक उपवास करती हैं, सूर्योदय की प्रतीक्षा में रातभर जागती हैं और विशेष टोकरियाँ, जिनमें सभी प्रकार के फल, सब्ज़ियाँ और फूल होते हैं, उनमें प्रसाद चढ़ाती हैं। गन्ने को और नारियल को विशेष महत्त्व दिया जाता है। इस अनुष्ठान का विश्लेषण करने पर हम समझ जाएँगे कि इसका प्रजनन क्षमता, विकास, समृद्धि और गृहस्थी के स्वास्थ्य से लेना-देना है, जिनमें गृहिणियाँ केंद्रीय भूमिका निभाती हैं। यहाँ ब्राह्मण की कोई भूमिका नहीं है।

कभी-कभार एक कथा बताई जाती है, कि कैसे अनुष्ठान करने से लोगों की समस्याएँ हल हुईं और जिन लोगों ने यह अनुष्ठान नहीं किए उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। रामायण और महाभारत के साथ संबंध पूरक जानकारी लगते हैं और इतना महत्त्व नहीं रखते हैं।

इस अनुष्ठान का संबंध शरीर और परिवार से अधिक और मन या आत्मा से कम है। यहाँ सूर्य और जल दोनों महत्त्वपूर्ण हैं। यहाँ धरती महत्त्वपूर्ण है क्योंकि महिलाएँ लगातार साष्टांग प्रणाम करती, शरीर को धरती के साथ एक बनाकर, नदी तक पहुँचती हैं। सूर्य की ओर मुख करके, शरीर को पानी में आधा डुबाकर, प्रार्थना की जाती है। यह प्रकृति, वनस्पतियों और जीवों के साथ संबंध का संकेत है। यह शरीर के प्रति जागरूकता, उपवास और रातभर जागते रहने से उत्पन्न एक तीव्र अनुभूति का संकेत है।

ये भारत की सबसे पुरानी अनुष्ठानिक प्रथाओं में से हैं। हम भले ही उन्हें वेद से उत्पन्न प्रथाओं के रूप में वर्गीकृत करना चाहें। लेकिन ये महिलाओं के त्यौहार हैं जो भारत में हज़ारों सालों से, संभवतः वैदिक संस्कृति के गंडक नदी को पार करने से बहुत पहले से मनाए गए होंगे।

ये जीवन से संबंधित पुरानी प्रथाएँ हैं जो हिंदू धर्म को उसके सबसे मौलिक रूप में दर्शाती हैं। पुरुषों द्वारा बनाए गए वैदिक या पौराणिक ढांचों का उपयोग करके उन्हें समझाने की आवश्यकता के बिना उनका सम्मान किया जाना चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि ये मार्गी परंपराएँ नहीं बल्कि देसी परंपराएँ हैं, लोक परंपराएँ हैं।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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