लोभ की प्रकृति को समझना ही पर्याप्त है। तुम्हें उससे छुटकारे के लिए और कुछ करने की आवश्यकता नहीं है, समझ ही सारे उलझाव को सरल कर देगी।
मनुष्य परिपूर्ण है यदि वह अस्तित्व के साथ तारतम्य (जोड़मेल) में है, यदि वह अस्तित्व के साथ तारतम्य में नहीं है तो वह रिक्त है, पूर्णतया रिक्त। उस खालीपन से लोभ आता है। लोभ उसे भरने के लिए होता है, धन से, मकानों से, फर्नीचर से, मित्रों द्वारा, प्रेमियों द्वारा, किसी के भी द्वारा, क्योंकि कोई रिक्तता के रूप में नहीं रह सकता। यह डरावना लगता है, यह भूत प्रेत जैसा जीवन है। यदि तुम रिक्त हो और तुम्हारे भीतर कुछ नहीं है, जीना असंभव है।
इस भाव के लिए के तुम्हारे भीतर बहुत कुछ है, मात्र दो ही रास्ते हैं, या तो तुम अस्तित्व के साथ तारतम्य में आ जाओ… तब तुम सम्पूर्ण से भर दिए जाते हो, सारे फूलों और सारे सितारों से। वे तुम्हारे भीतर होते हैं जैसे अभी वे तुम्हारे बहार हैं। वह वास्तविक परिपूर्णता है। पर यदि तुम वह नहीं करते और अरबों लोग वह नहीं कर रहे हैं, तब सरलतम मार्ग है कि उसे किसी भी कचरे से भर लिया जाए।
मैं एक व्यक्ति के साथ रहता था। वह एक धनवान व्यक्ति था और उसके पास एक सुंदर मकान था। किसी तरह वह मेरे विचारों में उत्सुक हो गया, उसने मेरे कुछ प्रवचन सुने और उसने मुझे निमंत्रण दिया, यह कहते हुए कि आप इतना दूर शहर से बाहर क्यों रहते हैं? मेरे पास एक सुंदर मकान है शहर में ही और वह इतना विशाल है, आप आधा मकान ले सकते हैं। मैं आप से पैसा नहीं लूंगा, मैं मात्र अपने घर में आपकी उपस्थिति चाहता हूं।
मैं बाहर रह रहा था, पहाड़ों में, मगर वहां से विश्वविद्यालय आना कठिन था। उसके घर से विश्वविद्यालय बहुत निकट था। उसके घर में एक सुंदर बगीचा था और वह घर शहर के सबसे अच्छे क्षेत्र में था, इसीलिए मैंने उसका निमंत्रण स्वीकार लिया।
मगर जब मैं उसके घर में गया तो मुझे विश्वास नहीं हुआ, उसने इतना कचरा संग्रहित कर रखा था कि वहां रहने की कोई जगह नहीं थी। मकान बड़ा था, मगर उसका संग्रह और भी बड़ा… और एक ऐसा संग्रह जो बिल्कुल मूढ़तापूर्ण था। उसे जो भी कुछ बाज़ार में मिलता वह खरीद लेगा। मैंने उससे से पूछा, तुम इन सारी चीज़ों का क्या कर रहे हो?
उसने कहा, कोई नहीं जानता, किसी भी दिन इनकी आवश्यकता पड़ जाए।
मैंने कहा, मगर, कोई इस घर में कहां रहेगा?
युगों-युगों का इतना फर्नीचर… क्योंकि यूरोपीय जब देश छोड़ कर गए तो उन्हें अपनी सब वस्तुएं बेच देनी पड़ीं। उसके लिए कुछ भी पर्याप्त नहीं था, वह सब कुछ खरीद लेता, वस्तुएं जिनकी उसे आवश्यकता नहीं थी। मुख्य दरवाजे के सामने एक कार खड़ी थी, जो हमेशा खड़ी ही रहती क्योंकि वह बहुत पुरानी और टूटी हुई थी। मैंने उससे पूछा, तुम इसको फेंक क्यों नहीं देते? कम से कम स्थान स्वच्छ करने के लिए?
उसने कहा, यह पोर्च में अच्छी दिखती है।
सारे टायर पंक्चर थ, वह किसी काम की नहीं थी। जब भी उसे तुम्हें इधर से उधर करना पड़ता, तुम्हें उसे धकेलना होता था और वापस खींचकर लाना पड़ता था। वह एक बूढ़ी स्त्री की थी, जो कभी यहां नर्स थी और वह इंग्लैंड वापस चली गई थी। किन्तु मैंने कहा, यदि तुम गाड़ी खरीदने के इच्छुक थे, तो कम से कम तुम ऐसी कार ले सकते थे जो चलती हो।
उसने कहा, मैं इसको चलाने में रुचि नहीं रखता। मेरी साइकिल बिल्कुल अच्छी है। उसकी साइकिल भी एक चमत्कार थी। तुम एक मील से जान जाओगे कि वह आ रहा है, साइकिल इतना शोर करती थी, उसके मडगार्ड्स नहीं थे, कोई चेन कवर नहीं था, वह संभवतः सबसे पुरानी बनी हुई बाईसाइकिल होगी। उसमें घंटी नहीं थी।
उसने कहा, घंटी की कोई आवश्यकता नहीं है। यह इतना शोर करती है कि कम से कम एक मील दूर से लोग रास्ता छोड़ देते हैं। यह एक अच्छी बात है क्योंकि इसकी चोरी नहीं हो सकती।
मैंने कहा, यह अद्भुत है! इसकी चोरी क्यों नहीं हो सकती?
उसने कहा, कोई दूसरा इसको चला नहीं सकता। इसकी दो बार चोरी हुई है और चोर तुरंत पकड़ा गया, क्योंकि यह इतना शोर करती है और हर कोई जानता है की यह मेरी बाईसाइकिल है, तो लोगों ने चोर को पकड़ा और पूछा, तुम साइकिल कहां ले जा रहे हो? मैं इसको कहीं भी छोड़ सकता हूं। मैं पिक्चर देखने जा सकता हूं, मैं इसको स्टैंड पर नहीं लगाता, क्योंकि फिर तुम्हें पैसा देना पड़ता है। मैं इसे कहीं भी रख देता हूं और यह हमेशा वहीं रहती है, मैं जब वापस आता हूं यह हमेशा वहीं होती है। हर कोई जानता है कि यह एक समस्या है। अगर तुम इसे घर भी ले जाते हो तो तुम इसे शहर में नहीं चला सकते, तुम पकड़े जाओगे। तो यह बेहतर है कि इससे छेड़छाड़ न की जाए।
उसने कहा, यह एक दुर्लभ नमूना है।
मैंने कहा, जैसे व्याख्या तुम कर रहे हो, यह वैसी ही लगती है।
उसके घर में हर प्रकार की वस्तुएं थीं… टूटे हुए रेडियो, क्योंकि वह उनको सस्ता प्राप्त कर सकता था। वह एक जैन था और उसके पास सूली पर लटके जीसस क्राईस्ट की एक टूटी हुई मूर्ति थी।
मैंने कहा, तुमने यह क्यों खरीदी है? उसने कहा, उस स्त्री ने मुझे मुफ्त में दी थी जब मैंने कार खरीदी थी, उसने यह मुझे उपहार स्वरूप दी थी। मैं जीसस क्राईस्ट आदि में विश्वास नहीं रखता, मगर मैं इस कलाकृति को मना नहीं कर सकता था।
मैंने उससे कहा, आज से मकान का आधा भाग तुम्हारा जिसमे सामान है, मेरा भाग रिक्त होगा।
वह सब कुछ लेकर बहुत प्रसन्न था। पहले ही उसका घर इतना भरा हुआ था कि तुम चल नहीं सकते थे, तुम अपना रास्ता नहीं खोज सकते थे। उसने सब कुछ ले लिया। उसके पास इतने प्रकार का फर्नीचर था जो उसने सोफे पर एकत्रित कर रखा था, वह सोफा उपयोग में नहीं था क्योंकि तुम ऐसे सोफे पर नहीं बैठ सकते जो सामान से भरा है और छत को छू रहा है। और मैंने पूछा, क्यों?
वह कहने लगा, आप नहीं समझते, इसका मूल्य! किसी दिन मेरा विवाह हो सकता है, वह विवाहित नहीं था, और मेरे बच्चे हो सकते हैं और उनको इन सब वस्तुओं की आवश्यकता पड़ सकती है। आप चिंतित मत हों, हर चीज़ कभी न कभी उपयोग में आएगी।
सड़क पर भी, अगर उसको कुछ मिलता था पड़ा हुआ, जो किसी के द्वारा फेंक दिया गया था, वह उसको उठा लेगा। एक दिन वह मेरे साथ बगीचे से अपने घर जा रहा था और उसे एक बाईसाइकिल का हैंडल पड़ा हुआ मिला और उसने उठा लिया। मगर मैंने कहा, तुम इसका क्या करोगे?
उसने कहा, आप नहीं समझते, मैं आपको दिखाऊंगा। मैं उसके साथ गया। उसके बाथरूम में लगभग एक बाईसाइकिल थी, बस कुछ सामान की कमी थी। और उसने कहा, यह सारी वस्तुएं मैंने सड़क से उठाई हैं। मैं उनको जोड़ता जाता हूं और संयोजित करता जाता हूं। अब कुछ चीज़ों की कमी है। चेन नहीं है, सीट नहीं है, मगर मैं वह खोज लूंगा। कोई उनको किसी दिन फेंक देगा। जीवन लम्बा है और हानि क्या है? यह बाथरूम में एकदम बढ़िया दिखती है। लोभ का इतना ही अर्थ है कि तुम एक गहरा खालीपन महसूस कर रहे हो और तुम इसे किसी भी संभव चीज से भरना चाहते हो, इससे फर्क नहीं पड़ता कि यह क्या है। एक बार तुम इसे समझते हो तो तुम्हें लोभ के साथ कुछ नहीं करना है। तुम्हें पूर्ण के साथ एकात्मता में आने की फिक्र लेनी है, ताकि भीतर का खालीपन विदा हो जाए। इसके साथ सभी लोभ गायब हो जाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि तुम नग्न रहने लगते हो, उसका इतना ही मतलब है कि तुम सिर्फ चीजों को इकट्ठा करने के लिए जीवित नहीं हो। जब भी तुम कुछ चाहते हो, तुम यह कर सकते हो।
लेकिन, दुनिया भर में पागल लोग हैं और वे इकट्ठा कर रहे हैं… किसी ने पैसा इकट्ठा कर लिया है हालांकि उन्होंने कभी इसका उपयोग नहीं किया है। यह अजीब है। कम्यून में हमने कारों के लिए एक स्टीकर बनाया था: ‘मूसा कमाता है, यीशु बचाता है, ओशो खर्च करते हैं।’
वस्तु की उपयोगिता होनी चाहिए, अगर इसकी कोई उपयोगिता नहीं है तो इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।
लेकिन, यह बात किसी भी दिशा में जा सकती है, लोग खा रहे हैं, उन्हें भूख नहीं लग रही है और फिर भी वे निगले चले जाते हैं। वे जानते हैं कि इससे दुख होगा, वे बीमार हो जाएंगे, लेकिन वे खुद को नहीं रोक सकते हैं। यह भोजन भी एक भरने की प्रक्रिया है।
तो खालीपन को भरने के कई तरीके और कई दिशाएं हो सकती हैं, यद्यपि यह कभी नहीं भरा है, वह खाली ही रहता है और तुम दुखी रहते हो क्योंकि यह कभी पर्याप्त नहीं होता। अधिक की ज़रूरत होती है और अधिक और अधिक के लिए मांग अंतहीन है।
मैं लोभ को एक इच्छा के रूप में नहीं लेता, यह कुछ अस्तित्वगत बीमारी है। तुम पूर्ण के साथ समस्वरित नहीं हो और केवल पूर्ण के साथ ट्यूनिंग, समस्वरता ही तुम्हें स्वस्थ बना सकती है। पूर्ण के साथ समस्वरता ही तुम्हें पवित्र बना सकती है।
यह अजीब है कि शब्द, स्वास्थ्य (हेल्थ) और पवित्र (होली) दोनों पूर्णता (होलनेस) से आते हैं। जब तुम पूर्णता के साथ एक महसूस करते हो, तो सब लोभ गायब हो जाता है। अन्यथा … धर्म क्या कर रहे थे? वे लोभ को एक इच्छा मानने की गलतफहमी कर बैठे इसलिए वे इसे दबाने का प्रयास करते हैं, ‘लालची मत बनो।’ फिर लोग दूसरे छोर पर जाते हैं, त्याग करते हैं। एक व्यक्ति इकट्ठा करता है, एक लालची व्यक्ति और जो लोभ से छुटकारा चाहता है वह त्याग करना शुरू करता है। वहां भी कोई अंत नहीं है।
महावीर गौतम बुद्ध को कभी पहचान नहीं सके कि वे प्रबुद्ध हैं, इसलिए क्योंकि वे अभी भी तीन प्रकार के कपड़े साथ रखते हैं; केवल तीन सेट जो बिल्कुल आवश्यक हैं। एक आपने पहना हुआ है, एक धुलने में है और एक आपातकालीन कारणों के लिए … किसी दिन धोबी से कपड़े नहीं आते हैं या वे सूखे नहीं हैं, या हो सकता है पूरे दिन बारिश हो रही है। तीन तो बहुत आवश्यक हैं… एक आपात के लिए …
महावीर लोभ के बिल्कुल खिलाफ हैं। अब इसने एक चरम रूप ले लिया है; वे नग्न हैं। बुद्ध भिक्षापात्र रखते हैं। महावीर को यह स्वीकार नहीं है क्योंकि भिक्षापात्र एक परिग्रह है। एक प्रबुद्ध आदमी के पास कुछ भी परिग्रह नहीं होना चाहिए। भिक्षापात्र …नारियल से बना है। आप बीच में नारियल काट दो और विशेष नारियल हैं जो बहुत बड़े होते हैं। तुम बीच में से काटकर फल को बाहर निकाल लो और तब दो सख्त कटोरे बनते हैं। वह सबसे सस्ती चीज है क्योंकि उन्हें फेंक दिया जाता है, तुम उन्हें नहीं खा सकते। भिक्षापात्र को परिग्रह कहना सही नहीं है।
लेकिन, जब तुम लोभ को एक इच्छा के रूप में देखते हो और तुम कठोर हो जाते हो, उसके खिलाफ जाते हो, तो फिर सब कुछ एक परिग्रह है। महावीर नग्न रहते थे और भिक्षापात्र की बजाय वह अपने दो हाथों का कटोरा बनाते थे। अब यह बहुत मुश्किल बात थी, उनके दोनों हाथ भोजन से भरे हुए हैं और वे महज जानवरों की तरह खाना खाते हैं क्योंकि वे अपने हाथ का उपयोग नहीं कर सकते हैं। तो वे सीधे अपने मुंह का उपयोग करने से हाथों से खाना लेते हैं।
दुनिया में हर कोई बैठा हुआ खाता है, लेकिन महावीर का विचार है कि जब आप बैठकर खाते हैं, तो आप अधिक खाते हैं। अब यह एक दूसरी अति पर जाना है। वे खड़े होकर भोजन करना सिखाते थे। अपने हाथ में भोजन लेकर खड़े होना, यह एक ऐसी तनावपूर्ण बात है। तुम केवल एक बार ही भोजन ले सकते हो, इसलिए जो कुछ भी अपने दोनों हाथों में एक बार में समा जाए वही कुल भोजन हो सकता है। खड़े होकर खाना है और सब कुछ एक साथ लिया जाना चाहिए, मिठाई, नमकीन है और वे सब एक दूसरे में मिश्रित हो जाते हैं। यह महावीर का तरीका है उसे बेस्वाद बनाने का, क्योंकि स्वाद का आनंद लेना शरीर का आनंद लेना है, पदार्थ का आनंद लेना है।
मेरे लिए, लोभ एक इच्छा नहीं है, इसलिए तुम्हें लोभ के बारे में कुछ भी नहीं करना चाहिए। तुम्हें तुम्हारे खालीपन को समझना है जिसे तुम भरने की कोशिश कर रहे हो। यह सवाल पूछो कि, ‘मैं क्यों खाली हूं? पूरा अस्तित्व इतना भरा है और मैं खाली क्यों हूं? शायद मैं रास्ता भटक गया हूं, मैं सही दिशा में आगे नहीं बढ़ रहा हूं, मैं अब अस्तित्वगत नहीं हूं। यही मेरे खालीपन का कारण है। ‘
तो अस्तित्वगत होओ।
छोड़ दो और मौन और शांति में, ध्यान में, अस्तित्व के करीब होओ।
एक दिन तुम देखोगे तुम इतने परिपूर्ण हो, ओतप्रोत, छलकते हुए, खुशी से, आनंद से, धन्यता से। तुम्हारे पास इतना अधिक है तुम इसे पूरी दुनिया को दोगे और फिर भी यह चूकेगा नहीं।
उस दिन, पहली बार तुम्हारे भीतर कोई लोभ नहीं होगा, पैसे के लिए, भोजन के लिए, वस्तुओं के लिए, किसी भी चीज के लिए। तुम स्वाभाविक रूप से रहोगे और तुम्हें जो भी ज़रूरत होगी वह मिल जाएगा। तुम जीओगे, एक निरंतर लोभ के साथ नहीं जिसे कि पूरा नहीं कर सकते या एक घाव के साथ नहीं जिसे स्वस्थ नहीं किया जा सकता।
ओशो, बियॉंण्ड सायकॉलॉजी , प्रवचन #26 से उद्धृत
ओशो को आंतरिक परिवर्तन यानि इनर ट्रांसफॉर्मेशन के विज्ञान में उनके योगदान के लिए काफी माना जाता है। इनके अनुसार ध्यान के जरिए मौजूदा जीवन को स्वीकार किया जा सकता है।