लालसा या संतोष

धर्म की परिभाषा में पहली चीज़ का नाम "संतोष" है और दूसरी चीज़ का नाम "लालसा"। इन्हीं दो शब्दों में जीवन की सारी कहानी छुपी हुई है।

एक डॉक्टर जावेद ने लिखा है कि वह अमेरिका गए। वह वहां एक करोड़पति से मिले। करोड़पति ने उनको अपने विशेष घर में मुलाकात के लिए बुलाया। यह घर सागर के किनारे बना हुआ था। आधुनिक शैली का विशाल घर, उसके आगे भव्य लॉन, उसके आगे हदे निगाह तक फैली हुई सागर की लहरें। चारों ओर आनंद और सुंदरता के दृश्य। इस माहौल में मेहमान और मेज़बान दोनों घर के सामने लान में कुर्सियों पर बैठे हुए थे।

डॉक्टर जावेद कहते हैं कि मैं इस माहौल में गुम था। मुझे ऐसा मालूम हो रहा था कि मैं जन्नत की दुनिया में बैठा हुआ हूं। मुझ पर मुग्धता की दशा छाई हुई थी। अमेरिकी करोड़पति चुपचाप किसी सोच में ग्रस्त था। अचानक अमेरिकी ने मेरी ओर संबोधित होते हुए कहा- मिस्टर जावेद, मैं चाहता हूं कि अमेरिका छोड़कर अपने देश चला जाऊं और जीवन के शेष दिन वही गुज़ारूं।
“क्यों” डॉक्टर जावेद ने आश्चर्य के साथ पूछा-
अमेरिकी ने कहा-“यह सब चीज़ें मुझे काटती हैं – मुझे एक मिनट के लिए भी सुकून हासिल नहीं”।

यह घटना दुनिया की हकीकत बता रही है। दुनिया का हाल यह है कि जो व्यक्ति पाए हुए न हो, वह समझता है कि पाने का नाम खुशी है।

मगर, जो व्यक्ति पा ले, वह महसूस करता है कि पाकर भी उसे खुशी हासिल नहीं हुई- सब कुछ पाकर भी उसने खुशी को नहीं पाया।

हकीकत यह है कि जीवन नाम है चाही हुई चीज़ों को ना पाने का। जो लोग इस राज़ को जान लें, वह ना मिलने पर भी उसी प्रकार संतुष्ट रहते हैं, जैसे कि उन्होंने सब कुछ पा लिया हो और जो लोग इस भेद को ना जानें वह हमेशा अपनी चाही हुई चीज़ को पाने के सपने देखते रहते हैं और कभी भी उसको नही पाते। क्योंकि पाने के बाद जल्द ही महसूस होता है कि यह वह चीज़ नही है, जिसको उन्होंने पाना चाहा था। वह एक ना मिलने वाली चीज़ के गम में पड़े रहते हैं, यहां तक कि इसी हाल में मर जाते हैं।

धर्म की परिभाषा में पहली चीज़ का नाम “संतोष” है और दूसरी चीज़ का नाम “लालसा”। इन्हीं दो शब्दों में जीवन की सारी कहानी छुपी हुई है।