क्या राक्षस और असुर एक ही हैं?

क्या राक्षस और असुर एक ही हैं?

राक्षस और असुर दोनों एक नहीं हैं। पुराणों में राक्षस और असुरों दोनों को अलग-अलग बताया गया है। इनमें कई अंतर हैं।

क्या राक्षस और असुर एक ही हैं? लोग राक्षस और असुर को एक ही प्रकार का प्राणी मानते हैं, लेकिन पुराणों में ऐसा नहीं है। राक्षस और असुरों में बड़ा अंतर है। राक्षस दो ऋषियों के वंशज हैं – वैश्रव और पुलत्स्य ऋषि। असुर कश्यप ऋषि के वंशज हैं। कश्यप ऋषि के पिता मरीची थे और उनके पिता ब्रह्मा थे। इस प्रकार असुर कश्यप के माध्यम से ब्रह्मा से जुड़े हैं। उनकी दो माताएं हैं -दिति और दानु और इसलिए असुरों को दैत्य और दानव भी कहते हैं। इस प्रकार राक्षसों और असुरों के पिता अलग हैं। यह पहला अंतर है। असुर भूमि के नीचे, पाताल लोक में रहते हैं और उनके नगर का नाम हिरण्यपुरा है। राक्षस, जैसे रामायण में हम देखते हैं, जंगलों में, भू-लोक में रहते हैं। यह दूसरा अंतर है।

राक्षस यक्ष और ऋषियों के साथ युद्ध लड़ते हैं। यक्षों के पास धन होता है। इसलिए यक्षों का धन पाने के लिए वे उनके साथ लड़ते हैं। उदाहरणार्थ रावण और कुबेर के बीच की लड़ाई। यक्षों ने लंका का निर्माण किया था और इसलिए उसे सोने की लंका कहते थे। यक्षों के राजा कुबेर और राक्षसों के राजा रावण सौतेले भाई थे। दोनों पुलत्स्य और वैश्रव के वंश के थे। उनमें लड़ाई हुई और रावण ने कुबेर को लंका से बलपूर्वक बाहर निकाल दिया और उस पर राज करने लगे। इसलिए कुबेर उत्तर भारत गए और वहां उन्हें शिवजी के पास शरण मिली। वहां पर उन्होंने एक नए शहर का निर्माण किया, जिसका नाम था अलंका, जिसे आज अलकापुरी कहते हैं। राक्षस और ऋषियों के बीच में भी युद्ध होते हैं, जैसे विश्वामित्र और ताड़का के बीच में युद्ध होता है। राक्षसों के युद्ध भू-लोक में ही होते हैं। राक्षस दक्षिण दिशा से जुड़े हुए हैं और यक्ष उत्तर दिशा से।

लेकिन, जब हम असुरों की बात करते हैं, तब उनके युद्ध स्वर्ग में रहने वाले देवताओं के साथ होते हैं। कई पुराणों में लक्ष्मी को असुर पुत्री कहा गया है। चूंकि लक्ष्मी के पिता पुलोमन नामक असुर थे, इसलिए उन्हें ‘पुलोमी’ भी कहते हैं। इंद्र से विवाह करने के कारण वह देव पत्नी भी हैं। इन सब बातों को जानते हुए लोग देव और असुर के बीच के युद्ध से उलझ जाते हैं। उनके बीच युद्ध इसलिए होता है कि असुर अपनी बेटी वापस चाहते हैं और देवता अपनी रानी को छोड़ना नहीं चाहते। लक्ष्मी को पाने के लिए ही देवों और असुरों ने क्षीरसागर में अमृत मंथन में भाग लिया था, जबकि राक्षस इससे दूर रहे। असुरों की हम पूजा भी करते हैं, उदाहरणार्थ राहु और केतु की, जो नवग्रह में पाए जाते हैं। असुरों के गुरु शुक्राचार्य एक नवग्रह हैं और देवताओं के गुरु बृहस्पति भी नवग्रह हैं। लेकिन, राक्षसों के किसी गुरु के बारे में हम नहीं सुनते।

बोलचाल की भाषा में महाभारत के हिडिंब, बका और जट को हम असुर कहते हैं, लेकिन यदि हम उनका व्यवहार देखें, तो वह राक्षसों जैसा है – अर्थात वे मत्स्य न्याय को मानते हैं और बलपूर्वक दूसरों को डराकर, धमका कर उनसे धन छीन लेते हैं। लेकिन, जब हम असुरों के बारे में सुनते हैं, तब वे सदा तपस्या कर ब्रह्मा और शिवजी जैसे देवताओं से वर मांगते हैं। इससे उनकी शक्ति स्वर्ग पर आक्रमण करने जितनी बढ़ जाती है और वे स्वर्ग के राजा बन जाते हैं।

असुरों में हम महिषासुर के बारे में सुनते हैं, जिसे शक्ति ने पराजित किया, अंधकासुर के बारे में सुनते हैं, जिसे शिवजी ने पराजित किया, ताड़कासुर के बारे में सुनते हैं, जिसे शिवजी के पुत्र कार्तिकेय ने पराजित किया और हिरण्यक्ष, हिरण्यकश्यपु और बलिराजा के बारे में सुनते हैं, जिन्हें क्रमश: विष्णु भगवान के वराह, नरसिंह और वामन अवतार ने पराजित किया।

इस तरह हम देखते हैं कि राक्षस और असुर अलग-अलग ऋषियों के वंशज हैं। उनके शत्रु भी अलग हैं। राक्षस यक्ष और ऋषियों के साथ युद्ध करते हैं, जबकि असुर देवताओं के साथ युद्ध करते हैं।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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