क्या दिवाली और शिव में कोई संबंध है?

क्या दिवाली और शिव में कोई संबंध है?

यह भी एक विजय का उत्सव है, चूँकि शिव ने तीन उड़ते हुए असुर शहरों को एक तीर से मार गिराया था, जिस कारण सभी देवता शिव की आराधना करते हैं।

दिवाली आते ही उससे जुड़ी कहानियाँ दोहराईं जाती हैं। त्यौहारों के समय अक्सर यही होता है – लोग उस त्यौहार का स्रोत समझने की कोशिश करते हैं। कुछ लोग तर्कयुक्त निरूपण पसंद करते हैं: उदाहरण के तौर पर, यह फसल कटाई का समय है और इसलिए जल्लोष का समय है। कुछ लोग सच्चाई से विरक्त कथात्मक निरूपणों से संतुष्ट होते हैं: यह वो समय है जब राम अयोध्या लौट आए थें। दूसरा निरूपण कहीं अधिक मनमोहक है और इस कारण कहीं अधिक लोकप्रिय भी है। और त्यौहार जितना अधिक लोकप्रिय होता है, कहानियाँ उतनी ही अनोखी होती हैं।

दिवाली इसका स्पष्ट उदाहरण है। सभी मानते हैं कि दिवाली दीयों, मिठाइयों और पटाखों का त्यौहार है। हाँ, अवश्य ही बढ़ते ध्वनि और हवा के प्रदूषण के कारण, इस त्यौहार के कारण हुआ शोरगुल उसके इस पहलु को बदनाम करते जा रहा है। इसके बावजूद, यह विश्वभर में मनाया जाने वाला एकमात्र हिंदू त्यौहार है जिसे अमरीका के राष्ट्रपति भी मनाते हैं, जो बात अमरीका में रहने वाले भारतीय दोहराते रहते हैं। लेकिन, यह त्यौहार क्यों मनाया जाता है?

भारत में त्यौहार गर्मी और सर्दी के मौसम की फसल कटाई पर आधारित दो समूहों में आते हैं। कुछ त्यौहार वसंत ऋतु में, और कुछ त्यौहार बारिश के बाद आने वाले शरद ऋतु में मनाए जाते हैं। दिवाली दूसरे समूह का त्यौहार है, जिसके साथ कई कहानियाँ जुड़ी हैं। सबसे लोकप्रिय कहानी के अनुसार दिवाली तब मनाते हैं जब धन की देवी, लक्ष्मी, घर पधारती हैं। चूँकि लक्ष्मी प्रकाशित, सुंदर और साफ़-सुथरी जगहों के प्रति आकर्षित होती हैं, इसलिए दीए जलाए जाते हैं, और घर साफ़ करने के बाद ज़मीन और दीवार पर चित्र निकाले जाते हैं। इस प्रकार दिवाली देवी का त्यौहार है।

बंगाल में देवी के सबसे आदिम रूप, काली, की आराधना की जाती है। यह आराधना त्यौहार के मुख्य दिन की जाती है, जो अमावस्या की रात आता है। वो रात जुए से भी जुड़ी है, सबको यह याद दिलाने कि लक्ष्मी या तो कुशल या फिर भाग्यवान लोगों की ओर आकर्षित होती हैं।

यह त्यौहार विष्णु के अनेक अवतारों से भी जुड़ा है। उनकी जीत के कारण उन्होंने लक्ष्मी का स्नेह पाया। और इसलिए, कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर, कृष्ण के हाथों नरकासुर के वध का त्यौहार मनाया जाता है, जो विष्णु और भू-देवी का बेटा भी है। यह विशेषतः दक्खन में मनाया जाता है। और, शुक्ल पक्ष के पहले दिन, हम बलि असुर का वामन के हाथों पराजय मनाते हैं। वामन बलि असुर को धरती के नीचे पाताल लोक में ढकेल देते हैं, जो असुरों की नगरी है।

केरल में ओणम के दौरान कुछ ऐसी ही कहानी बताई जाती है। इसलिए लोग व्याकुल होकर इसका तर्कयुक्त अर्थ निकालते हैं – कि ‘ओणम पर बलि धरती से उभरता है और दिवाली पर उसे वापस अंदर ढकेला जाता है’। इसमें पुराने चक्रीय उपजाऊ मिथकों की ओर संकेत है। निस्संदेह, दिवाली देवी की विजय का उत्सव भी है। देवी ने महिषासुर का वध करने के बाद अपना हिंसात्मक ‘चंडी’ रूप छुड़ाने के लिए विश्राम कर अपना शुभ, संपत्ति आकर्षित करने वाला ‘मंगल’ रूप फिर से धारण किया। राम उपासकों के लिए, दिवाली के दिन राम अपने वनवास से पुष्पक विमान में अयोध्या लौटें। यह मान्यता है कि आकाशीय ‘विमान’ को उतरने में मदद करने के लिए घरों में दीए रखें गए।

आख़री दिन लक्ष्मी के भाई, यमदेव, के लिए आरक्षित है, मृत्यु के देवता, जो हमारे कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। इस प्रकार गणेश की आराधना से और फिर पूर्वजों की आराधना (पितृ पक्ष) से शुरू होने वाला त्यौहारों का मौसम समाप्त हो जाता है।

लेकिन शिव का क्या? वैदिक अनुष्ठानों में, वे यज्ञ की समाप्ति के बाद, अपने कुत्तों और अपने पिशाच साथियों को लेकर, बचे हुए खाने पर हक जमाने पहुँचते हैं। उनकी अपनी अलग दिवाली भी है, जिसे देव दिवाली कहते हैं। वह दिवाली के बाद आने वाली पूर्णिमा अर्थात कार्तिक या त्रिपुरी पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। यह भी एक विजय का उत्सव है, चूँकि शिव ने तीन उड़ते हुए असुर शहरों को एक तीर से मार गिराया था, जिस कारण सभी देवता शिव की आराधना करते हैं।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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