लोक काव्य में श्री कृष्ण को ‘घन-श्याम’ कहकर वर्णित किया गया है। इसका तात्पर्य यही है कि उनका रंग वर्षा के बादलों जैसा है। फिर भी हमारी सबसे लोकप्रिय कलाकृतियों में राम और कृष्ण को नीले रंग का दिखाया जाता है। तो हम सोच में पड़ जाते हैं कि आखिर उनका रंग क्या है? इसका सटीक उत्तर किसी के पास नहीं है।
गंगा के मैदानी इलाकों के पुराने मंदिरों में जैसे वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में श्री कृष्ण की काले पत्थर में उकेरी गईं मूर्तियां हैं। ये शानदार मूर्तियां फूलों और कपड़ों से सजी होती हैं। बहुधा इन मूर्तियों के बिलकुल विपरीत राधा की मूर्तियां संगमरमर या कांसे से बनी होती हैं। कृष्ण श्याम वर्ण के हैं और राधा गौरवर्णी हैं। लेकिन अब कई नए मंदिरों में लोग कृष्ण की मूर्तियों को श्यामवर्णी पत्थर के बजाय संगमरमर की बना रहे हैं।
ऐसे गुफा चित्र पाए गए हैं, जिनमें एक रथ पर दो पुरुष दिखाई देते हैं। क्या ये कृष्ण और अर्जुन हैं? हम केवल अनुमान लगा सकते हैं। कृष्ण का प्रारंभिक उल्लेख महाभारत में किया गया, जिसमें उनके प्रौढ़ जीवन की कहानियां हैं। उनमें द्रौपदी को ‘कृष्ण’ अर्थात सांवले रंग की महिला कहकर संबोधित किया गया। इस प्रकार यह इंगित करता है कि श्री कृष्ण सांवले रंग के पुरुष होंगे। यह वर्णन लगभग 2,000 साल पुराना है। भक्ति साहित्य में जो एक हज़ार साल से भी कम पहले रचा गया, कृष्ण की सुंदरता आदरणीय बन गई। उन्हें वर्षा के काले बादलों और नीले कमलों से जोड़ा जाने लगा। ऐसी कविताएं रची गईं जिनमें पूर्णिमा के उजाले में उनके सांवले रंग का वर्णन किया गया।
कृष्ण की सबसे पुरानी छवियां संभवत: भारत-यूनानी सिक्कों पर हैं। लगभग 2,000 साल पुरानी इन छवियों में एक व्यक्ति को चक्र के साथ दिखाया गया है। इसके बाद आती हैं गुप्त काल की पत्थर की मूर्तियां। लगभग 1,500 साल पुरानी इन मूर्तियों में एक नायक, जो संभवतः कृष्ण हैं, को एक घोड़े, जो संभवतः केशिन है, से लड़ते हुए दिखाया गया है।
कृष्ण के शुरुआती चित्र संभवत: मंदिरों के आसपास पनपने वाली लघु कला में बनाए गए। पुरी के जगन्नाथ मंदिर के आसपास विकसित हुआ पट्ट-चित्र इसका एक उदाहरण है। इस मंदिर में प्रतिष्ठापित लकड़ी की प्रतिमा पर प्रतिदिन ताज़ा रंग चढ़ाया जाता है। यहां जगन्नाथ, जो एक साथ विष्णु, राम और कृष्ण हैं, को श्याम रंग से रंगा गया है। आस-पास के गांवों में कारीगर भी कृष्ण को श्याम रंग में चित्रित करते हैं।
लगभग 500 साल पहले मुग़लों के साथ भारत में फ़ारसी लघु चित्रकला आई। यह चित्रकला उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय हुई। इसने चित्रकला के पहाड़ी संप्रदाय और नाथद्वारा मंदिरों के पिछवई संप्रदाय को प्रभावित किया। यहां कृष्ण स्पष्ट रूप से नीले रंग में चित्रित किए गए। यह नीलम का गहरा नीला रंग नहीं, बल्कि दिन के आकाश का हल्का नीला रंग था। दक्षिण भारत के भव्य गोपुरमों पर कृष्ण, राम और विष्णु की नीले रंग की छवियां हैं। यह इसके बावजूद कि संगम काल के प्रारंभिक तमिल गीतों में सांवले रंग के प्यारे देवता ‘मायन’ का उल्लेख है, जिन्हें कृष्ण का प्रारंभिक रूप माना जाता है।
लोक गीत लगातार सांवले रंग के कृष्ण और गोरे रंग की राधा के बीच के अंतर की बात करते हैं। प्राकृतिक सांवला रंग अलौकिक नीला रंग कब बन गया? क्या इसका ताल्लुक भारत की सांवले रंग के साथ असहजता से है? चीन में धुप से तप्त त्वचा को हीन माना जाता है, क्योंकि वह धूप में काम करने वाले किसान का प्रतीक है। भारत भी एक कृषि प्रधान देश है। हो सकता है कि यहां भी इसी तरह के पूर्वग्रह रहे हों।
वनवास में जंगल में भटकने और अपनी गायों के साथ चरागाहों में घूमने ने क्रमशः राम और कृष्ण की त्वचा को संभवतः सांवला बनाया होगा। लेकिन, सूरज के प्रभाव से पहले, क्या उनकी त्वचा काली, भूरी या नीली थी?
देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।