हमें बौद्ध धर्म कुछ इस तरह सिखाया जाता है – शाक्य वंश के एक राजकुमार के बारे में यह भविष्यवाणी की गई कि वह या तो महान राजा या महान धार्मिक नेता बनेगा। यह सुनिश्चित करने के लिए कि वह राजा बने, उसके पिता ने उसे मानवीय पीड़ा से बचाकर रखा। लेकिन, अंत में, जब एक दिन राजकुमार महल के बाहर गया तब उसने लोगों की पीड़ा देख ही ली।
उनकी पीड़ा देख राजकुमार को इतना दुःख हुआ, कि जिस दिन उसके पहले बच्चे, एक बेटे, का जन्म हुआ, उसकी अगली रात को ही वह महल छोड़कर जंगल में चला गया। वह ज्ञान की खोज में था, जो उसे दुःख से मुक्त कर सके। जब अंत में उसे यह ज्ञान अर्थात निर्वाण प्राप्त हुआ, तब उन्हें बुद्ध के नाम से जाना जाने लगा और उन्होंने अपना संदेश विश्वभर फैलाने का निर्णय लिया।
लेकिन क्या बुद्ध ने ज्ञान की खोज की या केवल उसकी पुनःखोज की? कुछ लोगों का मानना है कि एक और केवल एक बुद्ध हैं, जिन्होंने मानवता के लिए ज्ञान की खोज की और विश्व को हमेशा के लिए बदल दिया। दूसरों का मानना है कि विश्व में कई बुद्ध हैं, और शाक्यमुनि बुद्ध उनमें से केवल एक बुद्ध हैं।
यह विभाजन जैन धर्म में सबसे स्पष्ट रूप से व्यक्त किया गया है। यहाँ, सबसे ज्ञानी व्यक्तियों को तीर्थंकर कहा जाता है। इतिहास की पाठ्यपुस्तकों के अनुसार महावीर जैन धर्म के ‘संस्थापक’ थे, लेकिन स्वयं जैन धर्मीय मानते हैं कि महावीर 24 तीर्थंकरों की श्रृंखला में अंतिम तीर्थंकर थे। पार्श्व उनके ठीक पहले के तीर्थंकर थे और ऋषभ प्रथम तीर्थंकर थे।
लेकिन ऋषभ भी पहले तीर्थंकर नहीं थे; वे केवल इस काल–चक्र के पहले तीर्थंकर थे। विश्व के कई काल–चक्र होते हैं, और प्रत्येक चक्र के अपने 24 तीर्थंकर होते हैं। इस प्रकार, जैन धर्मीय मानते हैं कि ज्ञान की पुनःखोज होती जाती है और वह ज्ञान विचारक अर्थात श्रमणों के माध्यम से जनसमूह अर्थात श्रावकों के साथ साझा किया जाता है।
जबकि इतिहास की अधिकांश पाठ्यपुस्तकों के अनुसार मुहम्मद पैग़ंबर इस्लाम के ‘संस्थापक’ थे, मुसलमान इसे नहीं मानते। इस्लामी माइथोलॉजी के अनुसार इस्लाम अल्लाह का मार्ग है। चूँकि अल्लाह हमेशा से अस्तित्व में रहें हैं इसलिए इस्लाम भी हमेशा से अस्तित्व में रहा है। अल्लाह का पैग़ाम लोगों तक पहुंचाने के लिए समय–समय पर पैग़ंबरों को चुना गया। इब्राहिम पैग़ंबर थे। मूसा पैग़ंबर थे। ईसा पैग़ंबर थे। मुहम्मद आखिरी पैग़ंबर थे। हर एक पैग़ंबर को अल्लाह का पैग़ाम फिर से बताया गया और उन्होंने वह पैग़ाम लोगों के साथ साझा किया।
जो लोग खोज में विश्वास करते हैं वे रैखिक मानसिकता की ओर झुकते हैं। जो लोग पुन:खोज में विश्वास करते हैं वे चक्रीय मानसिकता की ओर झुकते हैं। रैखिक मानसिकता में नायक असाधारण करतूत करते हैं। चक्रीय मानसिकता में संत उन बातों की फिर से खोज करते हैं जिन्हें बस मानवता भूल गई है। कुछ लोग मानते हैं कि बुद्ध एक नायक हैं जिन्होंने विश्व को बदल दिया; अन्य लोग मानते हैं कि बुद्ध एक ऋषि थे जिन्होंने विश्व को फिर से संरेखित किया। हम बुद्ध को क्या मानते हैं, उससे सत्य नहीं, बल्कि हमारी मानसिकता समझ आती है।
हम तर्क कर सकते हैं कि विज्ञान की खोजें और आविष्कार अद्वितीय हैं। लेकिन कुछ लोग ये भी कहेंगे कि यह सच नहीं है। यूरोपीय खोजकर्ताओं ने अमरीका की बस फिर से खोज की थी, क्योंकि प्रशांत द्वीप के वासियों, वाइकिंग और यहाँ तक कि चीनियों ने भी इसकी खोज पहले ही कर ली थी। कैलक्यूलस की खोज यूरोपीय वैज्ञानिकों ने नहीं बल्कि प्राचीन भारतीय गणितज्ञों ने की थी। ये तथ्य हैं। कई लोग मानते हैं कि आधुनिक वैज्ञानिक खोजें अटलांटिस नामक खोए हुए प्राचीन विश्व की फिर से खोजें हैं। यह भी तर्क किया जाता है कि वैदिक काल के लोग विमानों और परमाणु विखंडन के बारे में जानते थे। ये प्रतीत होता है कि ये बात किसी विज्ञान कथा से ली गई होगी।
कई भारतवासी यूरोपीय और अमरीकी दावों से गुस्सा हो जाते हैं कि उन्होंने विज्ञान की खोज की। ये गुस्सा उचित भी है। लेकिन ये प्रश्न भी खड़ा होता है, कि क्या इसके विरोध में किए जाने वाले तर्क तथ्यों पर आधारित हैं, या रैखिक और चक्रीय मनोविज्ञान के बीच तनाव पर। या क्या उनका अंध–देशभक्ति, सभी ज्ञान की यूरोपीय या भारतीय केंद्रीयता, से कुछ लेना–देना है। इस प्रश्न का उत्तर देना आसान नहीं है।