कर्म

कर्मा

किसी को दुःख पहुँचाने का परिणाम किसी न किसी समय हमारे सामने ज़रूर आता है। ऐसा कभी - कभार ही होता है कि यह परिणाम तत्काल ही दिखाई दे।

जैसा करेंगे … वैसा भरेंगे …

जीवन क्रिया और प्रतिक्रिया के खेल के इलावा और कुछ नहीं  है।

हमारे हर कर्म का परिणाम, समतुल्य और विपरीत प्रवाह में गतिमान होता है।

दिन भर शुभ भावना और शुभ कामना फैलाने के फलस्वरूप दिन के अंत में हम बहुत अच्छा महसूस करते हैं। अगर आप किसी व्यक्ति की तरफ देख कर मुस्कुराएं, ,तो कितनी संभावना है कि वह व्यक्ति, आप को न जानते हुए भी, आपकी मुस्कुराहट का जवाब मुस्कुराहट से दे? अस्पताल में दाख़िल अपने मित्र का स्वास्थ्य पूछने के लिए जब आप समय निकाल कर फ़ोन करते हैं या फिर किसी बुज़ुर्ग का भारी राशन उसकी गाड़ी तक पहुँचाने में उसकी मदद करते हैं, तो उनके कृतज्ञतापूर्ण सकारात्मक प्रकंपन आप तक स्वतः ही पहुँच जाते हैं।

जब हम चिड़चिड़े होते हैं, तब भी यही सिद्धांत लागू होता है। हमारी अपने प्रति कैसी भावनाएं हैं; अपने रंग-रूप, वेश, छवि के प्रति हमारी क्या सोच है; क्या हमारे जीवन में पर्याप्त अवसर हैं? यह सब जानना और अपनी सोच को उसके अनुकूल बदलना – यह अति आवश्यक है अपितु वही पूर्व भावनाएं, वही पुरानी  चिड़चिड़ाहट बार – बार आएगी।

क्रोध के विपरीत परिणाम:

किसी को दुःख पहुँचाने का परिणाम किसी न किसी समय हमारे सामने ज़रूर आता है। ऐसा कभी – कभार ही होता है कि यह परिणाम तत्काल ही दिखाई दे। किसी के दुष्कर्म को देखते हुए चाहे उस पर हाथ उठाने की इच्छा हो, या किसी उपद्रवी बालक को दण्डित करने की…. इसका प्रतिप्रभाव बाद में जीवन में उभर कर आएगा। किसी पर चिल्लाना या किसी को दण्डित करना, इन क्रियाओं की शक्तिशाली प्रतिक्रिया हमारी ओर आवश्य लौट कर आएगी। पूर्वानुमान होने से, इनके परिणामों को आंकना और उनके प्रति उचित प्रक्रिया करना, बुद्धिमत्ता की उत्पत्ति एवं एक स्वस्थ आत्म-सम्मान की ओर संकेत करता है। जब हम इस सच्चाई की ओर जागृत हो जाते हैं  कि ‘हर कर्म का परिणाम होता है’ तब हम पूर्ण रूप से जीवन जी सकते हैं। हमारे द्वारा लिया गया हर कदम महत्वपूर्ण है। हर विचार की अनुकृति हमारी ओर ही लौट कर आती है। इसका अवलोकन करते हुए हम देखते हैं कि किस प्रकार हमारे द्वारा किया गया प्रत्येक कर्म ‘तरंगें’ उत्त्पन्न करता है, जो दूरस्त किनारे से टकरा कर हमारे ही जीवन में प्रतिध्वनित होती हैं।

आगे बढ़ते रहें:

क्या आप ने अपनी पुरानी दु:खभरी यादों को कस कर पकड़ रखा हैं? जब “ज़िन्दगी” को आगे बढ़ने की इतनी अच्छी समझ है तो आप आगे क्यों नहीं बढ़ते?

अपने भूतकाल की बातों को भूतकाल में छोड़ते हुए आगे बढ़कर कदम रखने का यह मतलब नहीं है कि अपने भूतकाल की चुनौतियाँ, और घटनायें जो आपके साथ हुई उनसे हुऐ नुकसान से प्राप्त अनुभवों के महत्व को नज़र अंदाज कर दें। लेकिन अब हमें आगे बढ़ना है। देखा गया है कि जब संगीत या धुन बदलता है व्यक्ति के मन या ‘मूड’ में भी परिवर्तन आता है। ठीक इसी तरह सोच को बदलने से भावनाएं भी बदलेंगी।

पर्दे के पीछे

विश्व एक प्रतिध्वनि को गूंजाने वाला कक्ष है। जो कुछ भी हम सुनते हैं वो हमारे ही आवाज की प्रतिध्वनि है जो हमारे कर्णपटल पर टकराती रहती है। आज हो रही हर गतिविधि एवं हर घटना, हमारे अतीत से आ रही है। सब का सब।

हमारा ब्रह्मांड एक शीश महल है; हर क्षण एक पूर्वघटित दृश्य या परस्पर क्रिया का का प्रतिबिम्ब है। प्रत्येक स्नेह आत्म-सम्मान का प्रतिबिम्ब है।  अर्थात्  हमारा हर क्षण एक अवसर है, जहाँ हम वो सब बातें  टालें जिस से  भविष्य में दर्द के  उत्पन्न होने की संभावना हो, बल्कि प्रत्येक क्षण हमें मौका देता है कि ऐसे  मीठे बीजों का रोपण करें जिन से हमे भविष्य में मीठा फल मिले।

“अहिंसा हमें सवश्रेष्ठ नैतिकता की ओर ले जाती है जो सर्व प्रकार के विकास का लक्ष्य है। जब तक हम दूसरों के जीवन में क्षति पहुंचाना बन्द नहीं करते हैं, तब तक हम असभ्य हैं।” – थॉमश एडीशन, संशोधक

जीवन की धारणायें

सदा याद रखें कि कर्मों का सिद्धांत प्रतिध्वनि के समान कार्य करता है। चाहे आप स्वयं को बहुत समझदार एवं ज़िम्मेवार समझें, अगर आप किसी की कमजोरियों अथवा गलतियों की व्याख्या करते हैं, तो यह बोल, आपकी ओर प्रतिध्वनि की तरह लौट कर आएगा। क्रिया और प्रतिक्रिया का शक्तिशाली सिद्धांत यही कहता है कि आज अगर आप किसी की ग्लानि करते हैं, तो कल, कोई न कोई, उससे दोगुनी ग्लानि आप की करेगा।

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