कैसे लें बदला?

कैसे लें बदला?

योगियों के जीवन में 'बदला' शब्द का कोई स्थान नहीं है क्योंकि योगी व्यक्ति निंदा-स्तुति, मान-अपमान, सुख-दुःख सभी में समान रहता है।

शिवबाबा कहते हैं कि सृष्टि-चक्र एक नाटक है, सभी मनुष्यात्माएं पार्टधारी हैं, किसी का भी कोई प्रकार से दोष नहीं है। हम बदला शब्द का यदि सकारात्मक विधि से प्रयोग करें, तो यह कल्याणकारी सिद्ध होता है। जैसे, समय आने पर, उचित मदद करके हम अपने सहयोगी के एहसान का बदला चुकाते हैं। सौगात लेकर घर आए मेहमान को सुंदर-सी चीज़ बदले में अवश्य देते हैं आदि-आदि।

अधिक योग्य और महान बनकर दिखाओ

गहराई से विचार करने का विषय है कि भगवान हमारी इतनी सूक्ष्म व स्थूल पालना कर रहा है, ज्ञान-योग से हमारा श्रृंगार कर रहा है, अमृतवेला ब्रह्ममुहूर्त में जगाकर शक्तिशाली बनाता है, रोज़ मुरली सुनाता है, सारा दिन मददगार साथी बनकर रहता है, उसके इन एहसानों के बदले में हम उसे क्या दे रहे हैं? तुच्छ बेजान बातों का बदला लेने की सोचते हैं, परंतु इतना महान बदला, जो पूरे कल्प में लिया-दिया नहीं जा सकता, क्या उसके बारे में सोचने के लिए हमने समय निकाला है? आज की दुनिया में बदला लेने की बीमारी भयानक रूप ले चुकी है। समाज की यह सबसे बड़ी बीमारी बन गई है, जिसकी तरफ बहुत कम लोगों का ध्यान है। इस बीमारी ने सुख और चैन छीन लिया है। बदला लेने के विषय में एक महान आत्मा ने बहुत सुंदर कहा है, ‘किसी से बदला लेना है, तो उससे अधिक योग्य और महान बनकर दिखाओ’। कितनी सुंदर है यह युक्ति! कोई तुम्हें एक गाल पर थप्पड़ मारेलेकिन, परमपिता परमात्मा ने हमें कर्मों की गहन गति समझाई है कि दूसरा गाल आगे करने से तो हम उसके विकर्मों को और बढ़ावा दे रहे हैं अर्थात उसके पाप का खाता बढ़वा रहे हैं। अतः दुख देने वाले के प्रति यही सोचो कि पूर्व जन्म का हिसाब-किताब समाप्त हो रहा है।

बहुत महत्व है गुप्त दान का

बदले में तो सुंदर चीज़ ही दी जाती है। उसने गाली इसलिए दी क्योंकि उसके पास इससे सुंदर चीज़ है ही नहीं, अब हम सोचें, हमें क्या देना है? क्या गाली? हमारे पास तो भगवान के दिए अनेकों कीमती उपहार हैं। हम कोई सुंदर-सा वरदान या शुभभावना की सौगात मन ही मन उसे दे दें, क्योंकि गुप्त दान का तो बहुत महत्व है। हम उसे ज्ञान-रत्न भी दे सकते हैं। परंतु उस समय उसको इनकी कीमत नहीं रहेगी। अतः हे महान आत्माओं, आओ, इस प्रकार का बदला देकर हम इस जहान को बदल दें। मनुष्यात्माओं के भाग्य की रेखाएं बदल दें। अब हमें इसे व्यवहार में लाना ही होगा, नहीं तो धर्मराज हमसे बदला लेगा।

हम अक्सर तर्क देते हैं कि अमुक व्यक्ति हमारे सम्मान को ठेस पहुंचाता है, दूसरों के सामने हमारी बुराई करता है, हमारे संबंध तुड़वा देता है, दूसरों की नज़रों में हमें गिरा देता है और आगे निकलने की कोशिश करता है, तब हमें ईर्ष्या होती है और तब हमें भी संकल्प आते हैं कि हम भी कभी इसका फायदा नहीं होने देंगे। परंतु, हम सोचें, क्या ऐसे घटिया विचार लाकर हम स्वयं को अपनी और भगवान की नज़रों में नहीं गिरा रहे हैं? मानव के सामने अपमानित होने की चिंता है, परंतु स्वयं और भगवान के सम्मुख अपमानित होने की चिंता भी तो होनी चाहिए। क्या बदले की गंदी भावना मन में रखने से भगवान के साथ हमारे संबंध अच्छे रहेंगे? ऐसी बातें सोचने से इस कमाई के युग (पुरुषोत्तम संगमयुग) में हमारा कितना नुकसान हो रहा है, क्या इस पर हमने कभी गौर किया? अतः आओ, इन छोटी-छोटी बातों को छोड़ें और उससे सम्मान लें, जो सारी दुनिया को सम्मान दे रहा है, उससे प्रप्तियां करें जो सारी दुनिया को प्राप्ति करा रहा है। अब समय को व्यर्थ न गंवाए। किसी ने ठीक ही कहा है, यूं तो कम है सारी उम्र भी दोस्ती के लिए, पता नहीं कहां से वक्त निकल आता है दुश्मनी के लिए

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