इंटरनेट और अंतरनेट

इंटरनेट और अंतरनेट

विज्ञान और टेक्नोलोजी के विकास ने 'इंटरनेट' नामक एक ऐसा विश्वव्यापी जाल दिया है, जिससे दुनिया के एक कोने में बैठे हुए हम दुनियाभर की बातों के जानकार बन सकते हैं। एक समय का अति अनजान व्यक्ति इसके माध्यम से आज अति जानकार व्यक्ति बन गया है।

ज़रुरत है नए आधार ढूंढ़ने की…

धर्म, विज्ञान, संस्कृति, कृषि, इतिहास, राजनीति, भूगोल आदि सभी क्षेत्रों का ज्ञान हम इंटरनेट के माध्यम से घर बैठे प्राप्त कर सकते हैं। हमें अनेक किताबें ढूंढ़ने की या पुस्तकालयों में जाने की ज़रुरत नहीं है। फिर भी इंटरनेट की सुविधा उन साधनों और तकनीकी पर आधारित है, जो प्रकृति जगत से संबंधित है। स्वाभाविक है कि यह व्यवस्था कभी भी बिगड़ सकती है, निष्फल हो सकती है। हलचल की परिस्थितियों और अनिश्चितता के दौर से तो हम गुज़र ही रहे हैं। मनुष्य ही सुविधा के साधन बनाता भी है और बिगाड़ता भी है। अब परिस्थितियां पहले जैसी स्थिर नहीं रही हैं। विश्व एक तीव्र गति के परिवर्तन की प्रक्रिया से गुज़र रहा है। आवश्यकता है हमें कुछ और नए आधार ढूंढ़ने की। मन की जिस दशा से और कर्मों के जिस स्तर से हमने समस्याएं खड़ी की हैं, उसी स्तर पर हमें समाधान नहीं मिल सकते हैं।

आंतरिक क्षमता का विकास ज़रूरी

मानवमन, मानवबुद्धि भी तमोप्रधान बन गए हैं। इसी कारण कभी भी ये व्यवस्था चरमरा जाती है, जितने सुख के साधन बनाए जाते हैं, तमोप्रधान मनुष्य उतने ही दुख के, पीड़ा के, दर्द के रास्ते व रीतियां निकाल जीवन की परेशानियां बढ़ा रहा है। व्यक्ति जितना बाह्य साधनों पर आधारित होता जाता है, उतना ही अपनी आंतरिक क्षमता गंवाता जाता है क्योंकि बाह्य साधनों से कार्य हो जाता है, तो वो अपने आंतरिक विकास को महत्व नहीं देता है। स्वाभाविक है कि उसका आंतरिक स्वरूप कुंठित हो जाता है। साधनों का सहारा कभी भी धोखा दे सकता है। इसलिए ज़रुरत है अपनी नैसर्गिक क्षमताओं के विकास की। हमारा अंतर्मुखी मन ही अंतरनेट का काम कर सकता है। हमारा आंतरिक चैतन्य आत्मस्वरूप जितना शुद्ध, शांत, एकरस होगा उतना हम परिस्थितियों और व्यक्तियों के पूर्व संकेतों को झेल सकेंगे, समझ सकेंगे।

अंतरनेट की सुविधा प्रकृति ने दी है

हर व्यक्ति के अपने वायब्रेशन होते हैं। हर परिस्थिति के अपने पूर्व संकेत होते हैं। बरसात होने वाली होती है, तो आकाश में बादल मंडराने लगते हैं। सुबह होने वाली होती है, तो आकाश में लालिमा छाने लगती है। रात्रि होने वाली होती है, तो कालिमा छाने लगती है। किसी व्यक्ति के आने पर आनंद छा जाता है और किसी के आने पर वातावरण गंभीर बन जाता है। किसी को न जानते भी अपनापन महसूस होता है और रिश्तों-नातों में बंधे हुए होने पर भी किसी से दूरी का अनुभव होता है। हर व्यक्ति का अपना आंतरिक वातावरण होता है, जो वायब्रेट होता रहता है।

प्राकृतिक परिवर्तन के प्रकंपनों को पशु-पंछी जल्दी पकड़ लेते हैं और वे वहीं से दूर जाकर अपना बचाव कर लेते हैं। लेकिन, मानव का मन चूंकि मलिन है, व्यर्थ से भरा हुआ है, तो वह उधेड़बुन में लगा रहता है और प्रकृतिक या व्यक्ति के संकेत को पकड़ नहीं पाता है। इस कारण बड़ी संख्या में जनहानि होती है। कुदरत ने सभी मनुष्यात्माओं को अंतरनेट की सुविधा दी है। यह ऐसी सुविधा है, जो मानव सर्जित हलचल की परिस्थितियां हों या प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति, कभी भी क्षतिग्रस्त नहीं होती है।

मदद करती है शुद्ध मनोस्थिति

हमारा अंतरमन जितना साफ होगा उतना ही हम वो संकेत, प्रेरणाएं स्पष्ट रूप से पकड़ सकेंगे। जैसे जलाशय का पानी यदि मैला होगा और हिल रहा होगा तो उसमें कोई भी प्रतिबिंब स्पष्ट दिखाई नहीं देगा, ऐसे ही चंचल-अस्थिर मन से हम ईश्वर की प्रेरणाओं और महानात्माओं के इशारों को ग्रहण नहीं कर सकेंगे। आज जबकि संसार असुरक्षा के दौर से गुज़र रहा है, तो मानव संचालित, प्रकृति प्रदत्त, साधनमंडित संदेश लेन-देन की पद्धतियां कभी भी निष्फल हो सकती हैं। ऐसी असहाय, निराधार स्थिति में हमें स्वयं ही परखना और निर्णय करना होता है। उस समय सत्य, पवित्र, शुद्ध मनोस्थिति ही हमें मदद करती है। किसी के द्वारा दिए गए सलामती मार्गदर्शन के संकेत को भी हम इसी की मदद से पकड़ सकेंगे या दृढ़ मनोबल से दिए गए इशारे दूसरों तक पहुंचा सकेंगे।

व्वाइसलेस-इगोलेस स्थिति

सचमुच इस सुंदर संसार में आज भी हम सर्वांगीण सुरक्षा की आंतरिक सुविधा से संपन्न हैं। हमारा जीवन उपेक्षित या दयनीय दशा का नहीं है, बल्कि हमारा जीवन गौरव संपन्न और स्वनिर्भर है। जैसे प्रकृति के प्रति मन एकाग्र करने से विज्ञान का ज्ञान प्राप्त हुआ और प्राकृतिक जगत के सूक्ष्म सिद्धांतों के आधार पर वायरलेस-कोडलेस जैसे साधनों की सुविधाएं मिली, इसी प्रकार, मानव मन के आत्माभिमानी तथा परमात्माभिमानी बनने से वाइसलेस, इगोलेस की स्थिति हमें प्राप्त होती है। इससे स्वच्छ-सत्य मन-बुद्धि बनने से दूसरों के मन के भावों को स्पष्ट पढ़ सकते हैं। उनके संकल्प हमें पहुंच सकते हैं और हम भी दूर-दराज के स्थानों पर शक्तिशाली मनःस्थिति से संदेश भेज सकते हैं। जैसे अंतरिक्ष के ऊंचे स्थान पर भेजे गए उपग्रहों के माध्यम से विहंगावलोकन कर सकते हैं, तस्वीरें खींच सकते हैं और विशाल पैमाने पर संदेश पहुंचा सकते हैं। इसी प्रकार, जब हम मन-बुद्धि को दुनियावी, दैहिक, भौतिक बातों से ऊपर उठा लेते हैं और परमशक्ति के चिंतन में लगाते हैं, तो उस ऊंची आत्मस्थिति के विचार तरंगों के माध्यम से ईश्वरीय संदेश, शुभभावना, योगशक्ति की तरंगें भेज सकते हैं। आत्माओं को झंकृत और जाग्रत कर सकते हैं।

सत्य-असत्य की परख

अंतरनेट अर्थात हमारी आंतरिक आत्मशक्ति चूंकि मूल रूप से सत्य, शुद्ध है इसलिए दूसरों के प्रकंपनों से हम सत्य-असत्य, सार-असार को भी परख पाते हैं और व्यर्थ के बहाव में न जाकर अपने आपको सुरक्षित रख सकते हैं। यह अनुभव तो हर किसी को है कि जब कभी संगदोष, वातावरण दोष में आकर गलत काम करने पर हम उतारू हो जाते हैं, तब हमें अपने सत्य, शुद्ध, आत्मस्वरूप से अंतः प्रेरणा मिलती है कि हम गलत काम न करें। अंतः प्रेरणा को दबाकर हम गलत काम कर लेते हैं। उस समय अंतरात्मा की आवाज़ थोड़ी दब जाती है. परंतु बोलना बंद नहीं करते है। बार-बार अंदर से घंटी बजती रहती है।

आध्यात्मिक ज्ञान और सहज राजयोग का अभ्यास हमें पावन बनाता है, जिससे हमारी आंतरिक चेतना बहुत जल्दी दूसरों के भावों को परख लेती है। ज़रूरी है कि हम अपने मन-बुद्धि से छल-कपट, प्रपंच, झूठ, अनीति, वैर-द्वेष के खेल न खेलें। उसका सही, शुभ और श्रेष्ठ उपयोग करें। साधनों पर आधारित न हो जाएं वर्ना वशीभूत होने से हम ही परेशान और परवश हो जाते हैं। हम अपनी आंतरिक अंतरनेट की सुविधा का लाभ लें। जहां कोई व्यक्ति और साधन का साथ नहीं होता वहां अंतरनेट का आधार ही हमें सही मार्गदर्शन देगा।

अंतरनेट हमें प्रभुस्नेह से जोड़ता है और इंटरनेट के उपयोग को मायाजाल बनने से रोकता है।

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