हिंदू पुराणशास्त्र के चिरंजीवी

ये रामायण, महाभारत और पुराणों की विभिन्न कहानियों के पुरुष पात्र हैं जो अनंत काल तक जीवित रहते हैं।

हिंदू पुराणशास्त्र में जब भी कोई असुर ब्रह्म से अमरत्व की मांग करता है, तब वे कहते हैं कि अमरत्व के अलावा वह उनसे कोई भी वरदान मांग सकता है। फिर चालाक असुर अमरत्व के बदले कई और वर मांगता है, इस आशा में ये वर कुल मिलाकर उसके लिए अमरत्व सुनिश्चित कर देंगे। लेकिन इन वरदानों में अंतर्निहित एक कमी होती है, जिसका लाभ उठाकर देवता उसका वध करते हैं। इस प्रकार हमें याद दिलाया जाता है कि विश्व में अमर कोई नहीं होता।

लेकिन हिंदू पुराणशास्त्र में इस अवधारणा के विपरीतचिरंजीवीकी अवधारणा भी है। ये रामायण, महाभारत और पुराणों की विभिन्न कहानियों के पुरुष पात्र हैं जो अनंत काल तक जीवित रहते हैं। कुछ शापित हैं, जबकि अन्यों को वरदान मिला है। कुछ को मृत्यु से वंचित किया गया है। कुछ के लिए जीवन एक बोझ है।

परंपरागत रूप से सात चिरंजीवी हैं। वे हैं:

  1. असुरराजा बली, जिन्हें विष्णु के वामन अवतार में वश में किया गया
  2. परशुराम, जिस अवतार में विष्णु एक ऋषि और योद्धा हैं
  3. बुद्धिमान और पराक्रमी हनुमान जो राम के सेवक हैं
  4. रावण के भाई विभीषण
  5. वेदों के संगठक और महाभारत के रचयिता व्यास
  6. द्रोण के बहनोई और पांडवों के शिक्षक कृपा
  7. द्रोण का पुत्र अश्वत्थामा

समृद्धि के प्रतीक बली, हर साल ओणम के त्यौहार में केरल लौटते हैं। हनुमान, विभीषण, व्यास और कृपा को अमरत्व इसलिए प्रदान किया गया है कि वे राम और कृष्ण का स्मरण कर सकें। परशुराम पृथ्वी की रक्षा के लिए अमर हैं, और उन्होंने स्वयं सभी योद्धाओं को मार डाला। अश्वत्थामा सबसे प्रसिद्ध चिरंजीवी है। उसने एक गर्भस्थ बच्चे को मारने का साहस किया था। इसके अलावा उसने ब्रह्मास्त्र को छोड़ने की हिम्मत की थी, इसके बावजूद कि यह भयानक अस्त्र विश्व को नष्ट कर सकता था और अश्वत्थामा के पास उसे नियंत्रित करने का ज्ञान नहीं था। इन ग़लतियों के लिए उसे सज़ा के रूप में अमरत्व प्रदान किया गया।

कभीकभार मार्कंडेय ऋषि को भी इस सूची में जोड़ा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि मार्कंडेय के मातापिता शिव के बहुत बड़े भक्त थे। जब उन्हें पुत्र का आशीर्वाद प्राप्त हुआ, तो उन्होंने ऐसा पुत्र चुना जो अत्यंत उज्ज्वल होता लेकिन जिसकी अल्पायु होती। 16 साल की उम्र में, यमराज मार्कंडेय को अपने साथ लेने आए। तब स्वयं शिव ने उन्हें रोककर वचन देने में मजबूर किया कि वे मार्कंडेय को सदा के लिए जीने देंगे। आगे जाकर मार्कंडेय ऋषि बना, जिसने पांडवों को रामायण के बारे में बताया और सभी को सूचित किया कि प्रलय अंत में विश्व को नष्ट कर देगा।

चिरंजीवियों की धारणा ताओवादी पुराणशास्त्र के आठ अमर व्यक्तियों की धारणा जैसी है। जबकि चीनी पुराणशास्त्र में आठ अमर व्यक्तियों में से एक महिला है और एक और का लिंग अस्पष्ट है, जबकि हिंदू पुराणशास्त्र में आठों पुरुष हैं।

हिंदू पुराणशास्त्र में अन्य व्यक्ति भी हैं जो अमर हैं लेकिन जिन्हें चिरंजीवी नहीं माना जाता। मान्धाता का पुत्र मुचुकुन्द एक ऐसा व्यक्ति है। एक युद्ध के बाद वह एक गुफा में इतनी देर तक सोया रहा कि आँखें खोलने पर उसकी पहली नज़र इतनी ऊष्ण थी कि जिसने उसे नींद में से उठाया था वह जल गया।

कृष्ण का शत्रु और मथुरा का विनाशक कालयावन; राम की सेना में सेवक और सीता के बचाव में मददगार भालू, जाम्बवन; उषा के पिता बाणासुर जो कृष्ण से हार गए थे लेकिन जिन्हें शिव ने आशीर्वाद दिया था; और आल्हा का भाई ऊदल जिनकी मध्यकालीन राजपूत गाथा बुंदेलखंड क्षेत्र में लोकप्रिय है, कुछ अन्य अमर व्यक्ति हैं।

मनुष्यों के अलावा कुछ पौधे और प्राणी भी अमर हैंअक्षयवट अर्थात वो बरगद का पेड़ जो प्रलय के बाद भी जीवित रहेगा; काकभुशुंडी, वह कौवा जिसने नारद को रामायण सुनाया; अकुपारा, वह कछुआ जो पृथ्वी को अपनी पीठ पर रखता है; और शेषनाग, वह सर्प जो महासागरों को अपनी कुंडलियों में बांधता है। हिंदू संस्कृति संसार की नश्वरता को समझने की कोशिश करती है। लेकिन इन पात्रों से स्थायित्व और अमरत्व के लिए एक गहरी छिपी हुई इच्छा प्रकट होती है।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।