हाथ से खाया जाए या चम्मच से?

यूरोप में कटलरी का प्रयोग प्रचलित होने से बहुत पहले, चीन में चॉपस्टिक का प्रयोग हो रहा था।

आप अभी तक हाथों से खा रहें हों।कुछ साल पहले, प्रसिद्ध अमरीकी टीवी शो होस्ट, ओपरा विनफ़्री, ने भारत पर अपने शो में कथित रूप से यह टिप्पणी की थी। उनके कहने का तात्पर्य यह था कि हाथों से खाना एक आदिम आदत थी और इसलिए अवांछनीय थी। अपनी सहानुभूति के लिए जानीमानी ओपरा की किसी देश की संस्कृति से लेकर इतनी असंवेदनशीलता

हाथों से खाना इतनी घृणास्पद क्यों? विश्वभर में लोग हाथों से खाते हैं, चाहे वो अफ़्रीका की जनजातियाँ हों, ऑस्ट्रेलिया की मूल अबोरिजीन जनजातियाँ हों या अमरीका या आशिया की जनजातियाँ हों। यूनानियों ने कटलरी से नहीं खाया। रोम के लोग खाने के लिए कांटे और छूरी का प्रयोग नहीं करते थे। और निश्चित ही ईसा ने भी अपने हाथों से ही खाना खाया था।

यूरोप में कटलरी का प्रयोग प्रचलित होने से बहुत पहले, चीन में चॉपस्टिक का प्रयोग हो रहा था। सबसे पुराने चॉपस्टिक, जो सन 1000 BCE तक कालांकित किए गए हैं, कांस्य के थे। चीन से, वे धीरेधीरे पूर्व और दक्षिण पूर्व आशिया के अन्य हिस्सों में फैलें। इन क्षेत्रों में, अतिथि को ऐसा भोजन परोसना जिसे खाने से पहले छूरी से काटना या फाड़ना या फिर कांटे से छेदना पड़ता है, असभ्य माना जाता है। आज, आशियाई अप्रवासियों के कारण, हमें दुनियाभर में चॉपस्टिक दिखाई देते हैं।

यूरोप में, मध्य युग में, खाना सख्त बासी रोटी पर रखकर खाया जाता था। इस रोटी को ट्रेंचर कहा जाता था। छूरियों का उपयोग इसलिए किया गया कि लोग उनसे प्रभावित होते थे, इसलिए नहीं कि छूरियाँ आवश्यक थी। पुरुष मांस के टुकड़े काटकर और छेदकर उन्हें महिलाओं को परोसते और वे उससे प्रभावित होती थी। 16वीं सदी में, इटली की कैथरीन डी मेडिसी का विवाह फ़्रांस के राजा से हुआ। तब उनके साथ दहेज के रूप में फ्रांस में पहला कांटा (तब, इसे दो दांतोवालाविभाजित चम्मचकहा जाता था) आया। शुरू में सभी ने उनकी हंसी उड़ाई, लेकिन अंततः वहीं लोग उनकी नकल करने लगें, क्योंकि कांटे के साथ भोजन करना दंभ और अभिजात वर्ग के होने का प्रतीक बन गया।

दिलचस्प बात यह है कि यूरोपीय साम्राज्यवाद, अमरीकी उपनिवेशवाद और अफ़्रीकी दासता के बढ़ने के साथ कटलरी का उपयोग भी बढ़ा। हाथ से खाने को मूल निवासियों, मज़दूरों और नौकरों से जोड़ा जाने लगा।

ग़ौर करें, भारतीय सेना और भारत सरकार के औपचारिक भोजों में वे अपने अधिकारियों और राजनयिकों से कटलरी का उपयोग करने की अपेक्षा करते हैं। इसे खाने का उचित ढंग माना जाता है। यदि कोई हाथ से खाना चाहें तो वो वह नहीं कर सकता। क्या यह एक औपनिवेशिक अवशेष नहीं लगता? तो ओपरा की निंदा क्यों?

यह स्वाभाविक है कि जिन देशों में कड़ी ठंड होती है वहाँ हाथों को दस्ताने से ढ़का जाता था। फलस्वरूप वहाँ के लोगों ने छूरी कांटे से खाना समझदारी समझी होगी। इस कारण यूरोप में कांटे और चीन में चॉपस्टिक का नवाचार हुआ।

लेकिन दक्षिण आशिया और मध्य पूर्वी आशिया जैसे उष्ण जगहों में हाथ से खाना हमेशा से समझदारी की  बात थी। कोई यह तर्क दे सकता है कि हाथ गंदे होते हैं, जिस कारण उनसे खाना अस्वास्थ्यकर होता है। लेकिन यदि उन्हें धोने के लिए पानी और साबुन और पोंछने के लिए तौलिये उपलब्ध हों तो यह तर्क अमान्य बन जाता है। उत्तर भारत के कई हिस्सों में लोग रोटी हाथ से खाते हैं लेकिन चावल को चम्मच से खाना पसंद करते हैं। यह संभवतः इसलिए है कि रोटी खाते समय उंगलियों पर जितने दाने चिपकते हैं उससे ज़्यादा दाने चावल खाते समय चिपकते हैं।

वैदिक ग्रंथों में, भोजन को देवी और उंगलियों को वालखिल्य इस नाम से जाने जाने वाले बौने ऋषि माना जाता है। ऋषि देवी को हमारे मुंह तक ले आते हैं ताकि हम जीवित रह सकें। ज्योतिष में, पांच अंगुलियों को पांच तत्त्वों से जोड़ा जाता हैपृथ्वी (छोटी उंगली), जल (अनामिका), वायु (मध्य उंगली), ईथर (तर्जनी) और अग्नि (अंगूठा)। इस प्रकार जब हम हाथ से खाते हैं, तब पांचों तत्त्व प्रतीकात्मक रूप से भोजन से जुड़ जाते हैं। लेकिन, क्या आपको नहीं लगता कि जैसे हम आधुनिक और सभ्य होते जा रहें हैं वैसे इस तरह के प्रतीकवाद और कल्पना कम मायने रखने लगें हैं।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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