चूहें घृणास्पद होते हैं। उनके बारे में स्वभावतः कुछ तो है जो अशुद्ध और भयावह लगता है। चूहों के बारे में सोचने पर अपने आप मन में कचरे, नाली, महामारी और अन्य बीमारियों के दृश्य आते हैं। चूहें संपत्ति के विनाश के साथ-साथ लघुचोरी और गंदगी से भी जुड़ें हैं। चूहों के बारे में प्यारा या वांछनीय कुछ भी नहीं है। फिर गणेश को हमेशा चूहे के साथ क्यों जोड़ा जाता है, जिसे प्यार से मूषक कहा जाता है?
लेकिन मेरा भतीजा हठ करता है कि मूषक चूहा नहीं बल्कि मूस है। चूहें घिनौने होते हैं। मूस उनसे कई ज़्यादा प्यारे होते हैं। प्यारे गणेश एक प्यारे मूस पर सवार होते हैं। सच में तो कोई भी निश्चित रूप से नहीं कह सकता कि मूषक मूस है या चूहा। विद्वान और लोग इसके बारे में गूढ़ संस्कृत ग्रंथों का उल्लेख करते हुए अंतहीन रूप से बहस भी करते हैं: चूहा, मूस, संभवतः एक घूस भी। जो भी हो! वह मूलतः एक कृंतक और कीट है, जो अनाज की भूख के कारण किसान का दुश्मन बना है और जो नाली में रहता है। चूहें अशुभ हैं। निश्चित ही घर में उनकी कोई जगह नहीं है।
गणेश मंगल–मूर्ति हैं अर्थात सभी शुभ बातों के मूर्त रूप। फिर एक कृंतक, जो इतना अशुभ है, उनकी सवारी कैसे हो सकता है? इसमें क्या संदेश छिपा है?
मूषक उस कीट का प्रतीक है जो हमारे जीवन में लगातार बने रहता है, वह समस्या जो इतनी छोटी है कि उसका पता लगाना भी मुश्किल है, और जो हमें परेशान करती है।
यह समस्या उस प्रेज़ेंटेशन जैसी है जो हमारा बॉस कभी मंज़ूर नहीं करेगा; उस मुंहासे जैसी जो हमारी नाक में दम कर देता है; उस पड़ोसी जैसी जो हमेशा कचरा आपके दरवाज़े के बाहर रखता है या उस टपकते हुए नल जैसी जिसका किसी नलसाज के पास हल नहीं है। यह चाबियों का वह गुच्छा है जो आपको घर से निकलते समय नहीं मिलता है; या न्यायालय में वह मुकदमा है जो सालों से चल रहा है। ये हमारे जीवन के कृंतक हैं, लोभी चोर जो हमारे सुख को कुतर रहें हैं।
ऐसे व्यक्ति की कल्पना कीजिए जो आपके जीवन की सभी तकलीफ़देह, चूहों समान समस्याएँ हल करता है। हिंदुओं के लिए, वे गणेश हैं। गणेश के विशाल पेट के चारों ओर एक नाग लिपटा होता है। नाग चूहों को खाता है, जिस कारण अनाज कम खाया जाता है और फसल सुरक्षित रहती है। इसलिए नाग किसान का मित्र है।
गणेश की कृपा से समस्याएँ दूर होती हैं और लोग समृद्ध और शक्तिशाली बनते हैं। हम सहजता से गणेश की कल्पना कर सकते हैं, उन्हें चूहा, मूस या घूस रुपी समस्या को उसकी पूँछ से पकड़कर उसे घसीटते और उसपर बैठते हुए, ताकि वह हमें और परेशान न करें। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं कि गणेश बहुत लोकप्रिय देवता हैं, जो हमें तंग करने वाले चूहों से राहत दिलाते हैं। वे विघ्नों को दूर करने वाले अर्थात विघ्न–हर्ता हैं।
चूहें तेज़ी से प्रजनन करते हैं और परिणामस्वरूप उर्वरता के प्रतीक भी हैं। गणेश हमेशा उर्वरता के प्रतीकों से जुड़े हैं। उदाहरणार्थ, दूर्वा या दूब घास, जो उखाड़ने के बाद भी बढ़ती है। यदि पौधों में उर्वरता का प्रतीक दूर्वा है, तो जानवरों में चूहा उसका प्रतीक है। चीन और जापान में, चूहों को उर्वरता, बच्चों और समृद्धि से जोड़ा जाता है।
चूहें अथक होते हैं। अनाज तक पहुँचने के लिए वे सबसे मुश्किल बाधाओं को भी पार कर लेते हैं। इसलिए वे लोभ के प्रतीक भी हैं। वे अथक जमाखोर हैं। इस प्रकार, चूहों के दोनों सकारात्मक (उर्वरता/ अथक होना) और नकारात्मक (लघुचोरी करना/ महामारी फैलाना) पहलू होते हैं। गणेश के मूषक के ऊपर विराजमान होने से भक्तों तक केवल सकारात्मक पहलू पहुँचते हैं जबकि नकारात्मक पहलू उनसे दूर रहते हैं।
गणेश की छवि संभवतः समृद्धि, शक्ति और शुभता की भावनाएँ जगाती हो, जिन्हें हासिल करने के लिए उर्वरता महत्त्वपूर्ण है। लेकिन उनका मूषक हमें आत्मसंतुष्ट न बनने की याद दिलाता है: चूहा भले ही उर्वर और अजेय हो और हमारे धनी बनने में योगदान करता हो, लेकिन वह चुपचाप, गुप्त रूप से हमारी नैतिकता, हमारे मूल्यों, और स्पष्टतया हमारे पूर्ण जीवन की नींव में कुतरने में भी सक्षम है।
देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।