कारोबार के मामले में दो तरह लोग देखने को मिलते हैं। एक ऐसे लोग, जिनकी कारोबार के क्षेत्र में पहली पीढ़ी होती है। दूसरा ऐसे बिजनेसमैन, जिन्हें माता-पिता द्वारा स्थापित कोई कारोबार उन्हें अपने विरासत से मिली होती है। इन दोनों मामलों में जो चीज़ मायने रखती है, वह यह है कि अपने-अपने कारोबार को ये दोनों लोग किस तरह से मैनेज करते हैं।
अगर, किसी व्यक्ति को अपनी विरासत से कोई कंपनी मिली होती है, तो यह तय बात कि उनके माता-पिता उनके लिए काफी कुछ कर चुके होते हैं। फिर भी ऐसे सुखी-संपन्न घरों में पैदा हुए इस तरह के बच्चों के लिए चाणक्य ने सलाह दी है,’ जिन्हें विरासत से कोई संपत्ति या उद्योग प्राप्त है, तो ऐसे लोग अपने पिता की कमजोरियों पर पर्दा डालें और उनके गुणों को बखूबी प्रदर्शित करें।
सभी कंपनियों या संस्थानों में सकारात्मक पहलुओं के साथ कुछ नकारात्मक पहलू भी मौजूद होते हैं। जिन लोगों को अपनी विरासत से प्राप्त किसी कंपनी या संस्थान को चलाने का मौका मिला है, ऐसे लोगों के लिए चाणक्य ने सलाह दी है कि वे अपने कारोबार के सकारात्मक पहलुओं को देखें। अगर किसी भी तरह के नकारात्मक चीजें हैं, तो उन्हें अपनी सकारात्मकता से बदलने की ज़रुरत है।
सकारात्मक बिंदुओं को पहचानें
अपने पुरखों से मिले किसी कारोबार की जहां तक बात है, हम देखते हैं कि पिछली पीढ़ी कारोबार के मामले में काफी खराब काम कर चुकी है। जैसे- शुरुआत कैसे करनी थी, बिक्री कैसे बढ़ानी थी और बाजार पर कैसे अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहिए था, इन सभी बातों पर उन्होंने कभी ध्यान नहीं दिया था। हालांकि, पुरानी पीढ़ी को वाकई कई परेशानियों का सामना करना पड़ा है। जैसे- उस समय पूंजी का काफी अभाव था और पूंजी असंतुलित प्रवाह था। इसके अलावा उस दौर में आज की तरह बुनियादी ढांचे और अन्य सुख-सुविधाओं जैसी ज़रुरत की चीज़ें मौजूद नहीं थीं।
इस कठिन दौर के बीच में उन्हें उम्मीद की किरण दिखी और आखिरकार पैसे कमाने लगे। लेकिन, इस तरह के लोगों के पास पैसे से ज्यादा बेशकीमती उनके जीवन का अनुभव है, जिन्होंने एक विरासत खड़ी की है। उनके अनुभव और ज्ञान लोगों को गलतियों को दोहराने से बचाने में मदद कर सकता है।
नकारात्मकता को हावी न होने दें
हमारी पुरानी पीढ़ी के लोगों ने एक अलग समय व काल को देखा है। उस वक्त बाजार की परिस्थितियां कुछ अलग ही थीं। साथ ही आर्थिक हालात भी अलग-अलग थे। यहां तक कि उस जमाने में सरकार की नीतियां और काम करने का तौर-तरीका भी काफी अलग था।
यातायात के कोई साधन नहीं थे। तकनीक और संचार के माध्यम की तो बात ही अलग है। फिर भी एक बतौर लीडरशिप के रूप में इन परिस्थितियों को समझना चाहिए, ताकि शीर्ष पर पहुंचने के बाद इन कमियों की भरपाई कर सकें और लोग अपनी ओर से कोशिश भी कर रहे हैं। इसके बाद ही हम लोग कारोबार को एक नए नजरिए से देख सकेंगे।
‘सकारात्मक‘ बदलाव के लिए तैयार रहें
जब आपको किसी भी तरह का फैसला लेने का अधिकार प्राप्त हो जाए, तो मौजूदा व्यवस्था में कोई व्यापक फेरबदल किए बगैर अपनी कंपनी को उन्नति की राह पर ले जाएं। दूसरे शब्दों में कहें, तो आप अपनी कंपनी के भीतर नई और ज़रूरी चीजों को बेहतर ढंग से व्यवस्थित करें। लेकिन, किसी भी तरह का बदलाव करने से पहले इस बात का ख्याल रखें कि आपके पुराने क्लाइंट और कर्मचारियों के साथ आपके संबंध प्रभावित न हों। उनके हितों का ख्याल रखते हुए कंपनी को आगे ले जाएं।
मूल बात है कि आपको नए जमाने के साथ एक नए युग के लीडर के रूप से उभर कर सामने आना है, जिसकी जड़ें पारंपरिक मूल्यों पर भी आधारित है। वे पारंपरिक मूल्य, जिसे गढ़ने में आपके पुरखों की मेहनत लगी थी और अपना कारोबार खड़ा किया था।
इस तरह अंत में जब आप अपनी नई क्षमता से किसी कारोबार की शुरुआत करते हैं, तो इन बातों का हमेशा ख्याल रखें: “मेरे पास जो कुछ भी है, वह मेरे पिता का उपहार है। मेरे पास जो कुछ है, मैं उसके साथ जो करता हूं, वह मेरे पिता को मेरा उपहार है।
जब आप अंत में अपनी नई क्षमता में संचालन शुरू करते हैं, तो यह याद रखें: “मेरे पास जो कुछ है, वह मेरे पिता का उपहार है। मेरे पास जो कुछ है, मैं उसके साथ जो कुछ करता हूं, वह मेरे पिता को मेरा उपहार है।