कर्मों का चुनाव

चुनाव हम ही करते हैं

बकाया कर्म एक जीवन से दूसरे जीवन में दर्ज हो जाते हैं। इसी उधार एवं खर्चे को हम सामान्यतः पुण्य और पाप कहते हैं।

मैं यहाँ एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व पर ज़ोर देना चाहता हूँ, यद्यपि हम सभी पूर्व कर्मों के संस्कारों के साथ जन्म लेते हैं जो हमारे व्यक्तित्व के स्वरूप का निर्धारण करते हैं, तथापि हमें विविध विकल्पों में से चुनाव का अधिकार भी जन्म से ही प्राप्त होता है, जिन से हम नए, अच्छे, सकारात्मक कर्मों का संचय कर सकते हैं। यह चुनाव, यह स्वतंत्रता, यह योग्यता, प्रत्येक मानव को उपलब्ध है और यही वह अवसर है, जिससे हम अपने भावी भाग्य का निर्माण कर सकते हैं, केवल इस जीवन के लिए ही नहीं अपितु आगे आने वाले जन्मों के लिए भी! सारांश में कहें तो इस समय हमारा जीवन पिछले जन्मों के संचित कर्मों का परिणाम है और साथ ही साथ यह वर्तमान जीवन, आत्मा के लिए भविष्य का बीज भी है। हम अपने पिछले कर्मों को साथ लेकर चलते हैं और जन्म-जन्मान्तरों तक इन का बोझ हमें ढोना पड़ सकता है। हम जो अच्छे और बुरे कर्म करते हैं, उन्हें हमारे जीवन के बही खाते में उधार तथा खर्च के रूप में दर्ज किया जाता है।

बकाया कर्म एक जीवन से दूसरे जीवन में दर्ज हो जाते हैं। इसी उधार एवं खर्चे को हम सामान्यतः पुण्य और पाप कहते हैं।

कर्म का नियम न भाग्यवादी है न ही दंडक है, न ही मानव अपने बंधनों का भाग्यहीन एवं लाचार शिकार ही है। प्रभु ने हम सबको तर्क, बुद्धि और विवेक का वरदान और स्वतंत्र इच्छाशक्ति दी है। यदि हमारे पूर्व कर्म हमें बुराई की ओर ले जाएँ तो हम प्रयास पूर्वक उन्हें वैराग्य और अहं मुक्त कर्मों की ओर ले जा सकते हैं, जिससे पूर्व कर्मों का बोझ हल्का हो जाता है।

कर्म के नियम की पूरी जानकारी, हमें जीवन का सकारात्मक दृष्टि से सामना करने में सहायता कर सकती है, यह हम में सहर्ष स्वीकृति की भावना जागृत कर, हमें परिस्थितियों का गुलाम बने रहने की अपेक्षा उनका स्वामी बना सकती है। सबसे बढ़कर तो यह है कि हम अपने कर्मों पर नियंत्रण रखकर अपने भविष्य का सकारात्मक निर्माण कर सकते हैं।

जब हम कर्म-सिद्धान्त को समझने लगते हैं, तब हम अपने साथ घटने वाली किसी भी घटना के लिए प्रभु को दोष नहीं देते। हम समझ जाते हैं कि हमारे साथ घटने वाली प्रत्येक घटना के लिए, हम स्वयं ज़िम्मेदार हैं। जो बीजेंगे, वही तो काटेंगे। कोई अमीर हो या गरीब, साधु हो या सन्त, कंजूस हो या परोपकारी, विद्वान हो या अनपढ़, जो बोओगे, वो काटोगे। यह एक शाश्वत नियम है जो सभी व्यक्तियों, समाजों, देशों और जातियों पर लागू होता है। जो करोगे, वो भरोगे।

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