कंपनी का अधिग्रहण

चाणक्य से जानें किसी कंपनी का अधिग्रहण करने के उपाय

अधिग्रहण के लिए चयनित कंपनी की गहराई से अध्ययन करने के बाद ही किसी भी तरह की तत्परता और बैठक की जानी चाहिए।

आज के बदलते दौर में कंपनियों के लिए विलय और अधिग्रहण सामान्य बात है। यह बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों की रणनीति का एक अभिन्न हिस्सा भी है। खासकर, हमारे देश की स्थानीय कंपनियां इसमें आगे हैं। विलय और अधिग्रहण के मामले में भारतीय कंपनियों को आगे रहना भी चाहिए, क्योंकि प्राचीन ग्रंथों में इसको लेकर विस्तारपूर्वक चर्चा भी की गई है।

‘अर्थशास्त्र’ में कौटिल्य ने किसी कंपनी को अधिग्रहित करने के उपायों के बारे में जिक्र किया है। उनके मुताबिक, ‘अधिग्रहण 3 प्रकार के होते हैं। पहला नया, दूसरा मौजूदा और तीसरा, जो हमें अपने पुरखों या विरासत से मिला है।’ हालांकि, चाणक्य ने इस बात को भी स्पष्ट कर दिया है कि अधिग्रहण किसी को नुकसान पहुंचाकर या जीतकर नहीं किया जाता है। किसी कंपनी का अधिग्रहण दो पक्षों की एक सोची-समझी रणनीति होती है, जिसमें दो पक्ष के लोगों के अपने-अपने हित जुड़े हुए होते हैं और दोनों मिलकर बेहतरी का प्रयास करते हैं।

ऐसे में विलय और अधिग्रहण करते समय भौतिक या आर्थिक लाभ के अलावा लोगों के सरोकार का भी ख्याल रखना चाहिए। यदि इन बातों को हम अपने ज़हन में रखते हैं, तो अधिग्रहण की सभी प्रक्रियाएं खुद-ब-खुद सफल हो जाएंगी। भले ही वह कंपनी किसी भी क्षेत्र की क्यों न हों।

नई कंपनी का अधिग्रहण

जब देश में राजशाही व्यवस्था थी, तो उस जमाने में राजा-महाराजा हर समय नए-नए राज्यों पर आक्रमण कर उन पर जीत हासिल करते थे। हालांकि, हमला करने से पहले राजा-महाराजा लोगों को उस क्षेत्र विशेष की अच्छी तरह जानकारी और शोध करने की आवश्यकता पड़ती थी। क्योंकि, उस जमाने में नई जगहों की खासियत के बारे में लोगों को कम ही जानकारी होती थी।

यह बात आज के समय में भी लागू होती है। आज भी किसी कंपनी का अधिग्रहण करने पहले सबसे ज़रूरी है कि अधिग्रहित की जाने वाली कंपनी के बारे में अधिक से अधिक जानकारी हासिल की जाए। किसी भी रणनीति बनाने वाली टीम के लिए इस तरह का अध्ययन और शोध काफी महत्वपूर्ण होता है। अधिग्रहण के लिए चयनित कंपनी की गहराई से अध्ययन करने के बाद ही किसी भी तरह की तत्परता और बैठक की जानी चाहिए।

मौजूदा कंपनी का अधिग्रहण करना

अगर, कभी कोई विशेष इलाका या क्षेत्र किसी राजा के अधीन में रहा हो और बाद में भले ही वह क्षेत्र किसी दूसरे राजा के नियंत्रण में आ गया हो। हालांकि, अधिकांशत: ऐसा होता नहीं है। फिर भी, अगर ऐसा हो भी गया हो, तो यह कुप्रबंधन का सटीक उदाहरण है। इस तरह की घटना अपने क्षेत्र पर ध्यान नहीं देने की वजह से हो सकती है।

यह बात आज कॉरपोरेट जगत में भी लागू होती है। दरअसल, जब कंपनियों का दायरा बढ़ता है, तो वे अपने छोटे-छोटे उद्यमों पर ध्यान नहीं नहीं देती हैं। जब उन्हें अपने स्वामित्व के खतरे की सुगबुगाहट होती है, तब तक देर हो चुकी होती है और संभल पाना मुश्किल हो जाता है। इस तरह मौजूदा स्वामित्व वाली कंपनी को हासिल करना अधिग्रहण का ही दूसरा रूप है।

पुरखों की संपत्ति का अधिग्रहण

ऐसा संभव हो कि किसी प्रांत के राजकुमार को राजसत्ता उनके पूर्वजों से मिली हो। लेकिन, समय के साथ कभी ऐसा भी हुआ हो कि राजकुमार के किसी विश्वासपात्र मंत्री ने छल कर उनकी राजसत्ता अपने कब्जे ले ली हो। लेकिन, जब राजकुमार बड़े हो जाते हैं और उनके भीतर परिपक्वता आ जाती है। वे चाहते हैं कि शासन अब अपने हिसाब से चलाएं, तो उन्हें भी अपनी विरासत को पाने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ सकती है। उन्हें सत्ता आसानी से नहीं मिलती है। इस तरह यह अपने पूर्वजों से प्राप्त संपत्ति का अधिग्रहण का प्रकार है।

यह बात आज के समय में भी पूरी तरह लागू होती है। संपत्ति के किसी छोटे हिस्से या कंपनी की हकदारी के लिए अदालतों में चल रहे जितने में भी मामले आप देख रहे हैं, वे पुरखों से मिली संपत्ति के अधिकार के सटीक उदाहरण हैं। किसी व्यक्ति को विरासत से मिली संपत्ति पर भले ही किसी ने कब्जा कर रखा हो, उसे पाने का एकमात्र ज़रिया कानूनी लड़ाई ही है।

अधिग्रहण के जो भी प्रकार हों, उसे पाने के लिए सही रणनीति अपनाना बेहद ज़रूरी है। साथ ही सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर दोनों पक्षों के बीच किसी सुलाहनामें को लेकर किसी मंच पर बातचीत चल हो रही हो, तो दोनों पक्ष के लोगों की बातों को सुनना बहुत ज़रूरी है।

डॉ राधाकृष्णन पिल्लई एक भारतीय मैनेजमेंट थिंकर है, लेखक और आत्म-दर्शन और चाणक्य आंविक्षिकी के संस्थापक हैं। डॉ पिल्लई ने तीसरी सदी ईसा पूर्व के ग्रंथ कौटिल्य के अर्थशास्त्र पर रिसर्च की है और इसे माॉडर्न मैनेजमेंट में शामिल किया है ।

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