भगवान और कर्म का फेर

भगवान और कर्म का फेर

भगवद् गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि फल की चिंता मत करो, क्योंकि जो कार्य हमें अच्छा लगता है वह शायद देवताओं को पसंद नहीं हो और जो कार्य हमें बुरा लगता है, शायद देवताओं को पसंद हो।

कर्म इतना महत्वपूर्ण है कि देवी-देवता भी इससे पीछे नहीं रह सकते। पुराणों में कथा है कि एक दिन देवों को असुरों से बचाने के लिए विष्णुजी ने अपने सुदर्शन चक्र से शुक्राचार्य की माता को मार दिया, क्योंकि असुर शुक्राचार्य की माता के पीछे छिप गए थे। इस स्त्री हत्या पाप के लिए शुक्राचार्य ने उन्हें श्राप दिया कि वे तीन बार मनुष्य रूप में भूलोक में आएंगे; परशुराम, राम और कृष्ण के रूप में। तीनों बार उन्हें स्त्रियों का दुख समझना पड़ेगा। परशुराम के जन्म में वे रेणुका का दुख समझते हैं, राम के जन्म में वे सीता का दुख समझते हैं और कृष्ण के जन्म में वे राधा, रुक्मिणी और द्रौपदी का दुख समझते हैं।

आजकल कर्म की बात करते समय उसे पाप और पुण्य से जोड़ा जाता है कि अच्छा काम करने से अच्छी बात होगी और बुरा काम करने से बुरी। तो इसमें बीज और फल की बात आती है। लेकिन, वेदों के ज्ञानी को पता है कि कर्म करते समय हमें पता नहीं होता कि अमुक कर्म अच्छा है या बुरा। अच्छे कर्म से भी बुरे फल निकल सकते हैं और बुरे कर्म से भी अच्छे फल निकल सकते हैं। इसलिए भगवद् गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि फल की चिंता मत करो, क्योंकि जो कार्य हमें अच्छा लगता है वह शायद देवताओं को पसंद नहीं हो और जो कार्य हमें बुरा लगता है, शायद देवताओं को पसंद हो।

अगर, हम देखें तो रामायण में श्रीराम, ‘राम राज्य’ स्थापित कर धर्म का काम करते हैं, लेकिन उन्हें गृहस्थ सुख नहीं मिलता। उनकी पत्नी और बच्चे जंगल में रहते हैं। तो जो ‘राम राज्य’ स्थापित करता है, उसके बच्चों को भी राम राज्य का सुख नहीं मिलता। वैसे ही श्रीकृष्ण की कहानी में वे कुरुक्षेत्र में धर्म स्थापना करते हैं, लेकिन उन्हें गांधारी का श्राप मिलता है और कई साल बाद उनके वंश का नाश हो जाता है।

रामायण, महाभारत और पुराणों की कहानियां हमें यह समझा रही हैं कि कर्म कितना पेचीदा है। वह बता रही हैं कि हम ज़िंदगी पर नियंत्रण नहीं पा सकते। केवल हमारा मन ही है जो हमारे नियंत्रण में है, बशर्ते हम उसे नियंत्रण में कर सकें। जब लोग न्याय की बात करते हैं, तो एक तरह से वे प्रतिशोध की बात करते हैं और प्रतिशोध अहंकार का गुण है, आत्मा का नहीं। इसलिए वेद ज्ञानी न्याय और प्रतिशोध के बारे में नहीं सोचता। वह इस दुनिया के अच्छे और मीठे फल को ज्ञान की दृष्टि से देखते हुए उसे अनुभव करता है, ना कि उस पर नियंत्रण पाने की कामना करता है।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

X

आनंदमय और स्वस्थ जीवन आपसे कुछ ही क्लिक्स दूर है

सकारात्मकता, सुखी जीवन और प्रेरणा के अपने दैनिक फीड के लिए सदस्यता लें।

A Soulful Shift

Your Soulveda favorites have found a new home!

Get 5% off on your first wellness purchase!

Use code: S5AVE

Visit Cycle.in

×