किस चीज़ की कितनी कीमत है, इस बात पर अंतर्मन में हमेशा कश्मकश बनी रहती है। यह बात सिर्फ वस्तुओं के लिए ही नहीं लागू होती है, बल्कि हम इंसानों के लिए भी है। अक्सर इंटरव्यू के समय हम दुविधा में पड़ जाते हैं कि हमें कितनी सैलरी मांगनी चाहिए या किसी भी प्रकार की सर्विस के लिए ग्राहक से कितने पैसे मांगने हैं। यहां तक कि किसी भी अच्छे कामों के लिए दान मांगते वक्त भी हम असमंजस में रहते हैं कि हमें कितने धन की आवश्यकता है?
इस समस्या का समाधान चाणक्य के पास तीसरी सदी में ही था। जिसे आपको ज़रूर जानना चाहिए।
चाणक्य ने कहा है कि “हमें धनी लोगों से उनके धन के अनुसार या व्यापार में लाभ के अनुसार या जो कुछ भी दान अपनी इच्छा से किया जाए, उसी अनुसार मांगना चाहिए।”
चाणक्य के इस सुझाव का अर्थ यही था कि आप किसी व्यक्ति से धन की बात करने से पहले उसके बारे में गहन अध्ययन कर लें। इस काम में महारत हासिल करने वाला व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफलता पा सकता है।
तो, आइए इस तथ्य को और बेहतर तरीके से समझते हैं:
धनी के धन के अनुसार
किसी का भी धनी होना स्थान या स्थिति के हिसाब से भिन्न हो सकता है। उदाहरण के लिए, किसी गांव का एक धनी व्यक्ति किसी बड़े शहर में एक आम आदमी हो सकता है या आपका अमीर पड़ोसी शहर में धनी हो, लेकिन वैश्विक मानकों के अनुसार वह सिर्फ एक आम आदमी होगा।
इसलिए ही चाणक्य ने सलाह दी है कि किसी भी धनी व्यक्ति से पैसे उनके धन के अनुसार मांगना चाहिए।
प्राप्त लाभों के मुताबिक
कई बार हम किसी भी कार्य का मूल्य हमें पता नहीं हो पाता है या यूं कह लें कि कार्य करने वाला व्यक्ति निजी संबंधों के कारण अपनी पारिश्रमिक नहीं लेता है। इस प्रकार से वह सामने वाले व्यक्ति पर उपकार करता है। ऐसी स्थिति में आप उनसे किसी वस्तु या धन के बारे में पूछ सकते हैं।
इसका एक उदाहरण मैंने हाल ही में देखा। मेरे एक क्लाइंट के डॉक्टर ने उसका मुफ्त में ऑपरेशन किया, जिसके बदले में डॉक्टर ने पैसे लेने से इनकार कर दिए।
मेरे क्लाइंट ने अपने ऑपरेशन में होने वाले खर्च का आंकलन किया और फिर उस नेक दिल डॉक्टर को ऑपरेशन में लगने वाली राशि के बराबर का ही एक उपहार खरीद कर दे दिया। जिसे डॉक्टर भी मना नहीं कर सके।
अपनी इच्छानुसार
कई बार ऐसी स्थितियां पैदा होती हैं, जहां आप धन को लेकर मूल्यांकन नहीं कर पाते हैं। यदि आप आवश्यकता से अधिक मांगते हैं, तो शायद आपको मना कर दिया जाए।
वहीं, अगर आप कम धन मांगते हैं, तो हाथ से अवसर छूट सकता है। ऐसी स्थिति में चाणक्य का सुझाव है कि हमें दान करने वाले की इच्छा पर छोड़ देना चाहिए। किसी भी प्रकार की उम्मीद ना रहने पर आपको जो भी मिलेगा, आप उससे संतुष्ट होंगे।
एक बार मैंने एक ऐसे होटल के बारे में सुना, जो चाणक्य की इस नीति पर ही काम करता है। होटल में कहा जाता है कि “जितना खा सकते हैं उतना खाएं, जितनी इच्छा उतना ही भुगतान करें।”
आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि ग्राहक होटल की सेवा से इतने खुश हो जाते हैं कि होटल को अपनी इच्छा से अधिक धन देकर जाते हैं। इस तरह से होटल मेन्यू कार्ड की तुलना में अधिक पैसे कमाता है!