आत्‍म-निरीक्षण

घास को जानना और इसे अपने अंदर से निकालकर फेंकना बहुत आवश्यक है, वरना इंसान का परिणाम वही होगा, जो बिना निराई किए हुए खेत का होता है।

खेत में जब फ़सल बोई जाती है तो फ़सल के साथ तरह-तरह की घास-फूस भी उग जाती है। गेहूँ के हर पौधे के साथ खरपतवार नामक घास भी निकलती है और सरसों के हर पेड़ के साथ एक निकम्‍मा पौधा भी बढ़ना शुरू होता है। यह अपने आप निकलने वाली घास-फूस फ़सल को बहुत हानि पहुँचाती है, वह खेत के पानी और खाद में हिस्‍सेदार बन जाती है। वह असली फ़सल को पूरी तरह से बढ़ने नहीं देती।

किसान अगर इन खरपतवारों को बढ़ने के लिए छोड़ दे तो वह सारी फ़सल को ख़राब कर दें। खेत में दाना डालकर किसान ने जो उम्‍मीदें लगाई हैं, वह कभी पूरी न हों। इसलिए किसान यह करता है कि वह खेत में निराई (Weeding) का कार्य करता है। वह एक-एक खरपतवार निकालता है कि खेत को उनसे साफ़ कर दे और फ़सल को बढ़ने का पूरा मौक़ा मिले। हर किसान जानता है कि खेत में दाना डालना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि इसके साथ यह भी आवश्यक है कि फ़सल के साथ उगने वाली दूसरी हानि पहुँचाने वाली घास को चुन-चुनकर निकाल दिया जाए, वरना खेत से मनचाही फ़सल प्राप्‍त नहीं हो सकती।

यह निराई का कार्य जो खेत में किया जाता है, यह इंसानी जीवन में भी आवश्यक है और – इस ही को आत्मनिरीक्षण कहते । इंसान का मामला भी यही है कि उसे जब कोई अच्छी चीज़ प्राप्‍त होती है तो इसी के साथ एक ‘निकम्‍मी घास’ भी उसके अंदर से उगनी शुरू होती है। इस निकम्मी घास को जानना और इसे अपने अंदर से निकालकर फेंकना बहुत आवश्यक है, वरना इंसान का परिणाम वही होगा, जो बिना निराई किए हुए खेत का होता है।

किसी को साधन आौर सुविधा हाथ आ जाए तो उसके अंदर अनुचित आत्‍मविश्‍वास की भावना उभरती है। सत्ता मिल जाए तो घमंड पैदा होता है। इसी तरह दौलत के साथ कंजूसी, ज्ञान के साथ गर्व, लोकप्रियता के साथ पाखंड और सामाजिक सम्‍मान के साथ प्रदर्शन की मानसिकता पैदा हो जाती है। यह सारी चीज़ें खरपतवार घास हैं, जो किसी इंसान के गुणों को खा जाने वाली हैं।

हर इंसान को चाहिए कि वह इस दृष्टि से अपना निरीक्षक बन जाए और जब भी अपने अंदर कोई ‘निकम्‍मी घास’ उगते हुए देखे तो उसे उखाड़कर फेंक दे। जो आदमी अपने ऊपर निरीक्षण का कार्य नहीं करेगा, तो वह निश्चित रूप से इस संसार में बरबाद हो जाएगा। वह ऐसा खेत होगा, जिसकी फ़सल तबाह हो गई और वह ऐसा बाग़ होगा, जिसकी सारी बहारें पतझड़ में बदल गईं।