जानें द्वारकाधीश मंदिर और द्वारका नगरी का इतिहास

द्वारिका नगरी में बने बहुत से मंदिरों में सबसे खास ये हिंदू मंदिर भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण का है। द्वारिकाधीश मंदिर को जगत मंदिर या निजी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

भारत केगुजरात राज्य में बसा एक नगरजिसेद्वारकानामसे जाना जाता है, वहांबना है एक अद्भुत मंदिर। जिसकानाम है द्वारकाधीश मंदिर।द्वारकानगरी में बने बहुत से मंदिरों में सबसे खास येहिंदू मंदिर भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण काहै। द्वारकाधीश मंदिर(dwarkadhish ji ka mandir)को जगत मंदिरयानिजी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।द्वारकाधीश मंदिरहिंदू धर्म में पूजनीय चारों धामों में से एक है।येमंदिर दोहजार साल पुराना है।इसमंदिर से लगभग दोकिमी दूर श्री कृष्ण कीअर्धांगिनी रूक्मिणी कामंदिर है।कहाजाता है कि उन्हें एक संन्यासी दुर्वासा ने श्रापदिया, जिसके बाद उन्हें कृष्ण से दूर रहना पड़ाथा।यह भी कहाजाता है कि, इसनगरी को श्रीकृष्ण ने बसाया थाऔरमंदिर कीनींव भगवान श्री कृष्ण केपोतेब्रजनाथ ने रखी।

द्वारकाधीश मंदिर के बारे में श्रृद्धालु बताते हैं कि येमंदिर द्वारका नरेशयानी द्वारका केराजा श्री कृष्ण केमहलकेऊपर बना हुआ है।पूराद्वारकासमुद्र में डूबा हुआ है औरये मंदिर गोमती नदी केकिनारेबनाहुआ है।द्वारका में कृष्ण कोद्वारकाधीश यानी ‘द्वारिका कामालिक’ कहाजाता है और इसीरूप में इनकीपूजा की जाती है।यहां रोज़दूर-दूर से आकर श्रृद्धालु भगवान श्री कृष्ण केदर्शन करते हैं औरयहां तक पहुंच पानेकेलिए खुदको भाग्यशाली मानते हैं।जैसाकि हमजानते हैं, हिन्दू धर्म में चारों धामों काअपनाअलग महत्व हैऔर द्वारकाधीशकीमहिमा भी आस्था और विश्वास केनज़रिये से बहुत खासहै।अगरआपभी किसी धार्मिक स्थल कीयात्रा करने केबारे में सोचरहे हैं तो फिर गुजरात केद्वारकाधीश मंदिर केदर्शन करनासही रहेगा।चलिए फिर हमइसमंदिर औरद्वारिका नगरी केबारेमें और जानते हैं।

द्वारका का द्वारकाधीश मंदिर (Dwarika ka Dwarkadhish Temple)

द्वारकामें बना द्वारकाधीश मंदिर श्री कृष्ण कामंदिर है।इस मंदिर कीनींव ब्रजनाथ ने रखीथी।इसके बाद मंदिर केआगेकाकाम 15वीं और 16वीं शताब्दी के बीच में किया गया।मंदिर कीप्राचीनता केबारेमें भारतीय पुरातत्व विभाग का कहना है कि द्वारकाधीश मंदिर आज से लगभग 2200-2500 सालपुराना है।

कहतेहै कि, इस जबद्वारकाधीश मंदिर कोआगे बढ़ायाजारहा था तो धर्मगुरु शंकराचार्य ने भीइसमें अपना योगदान दिया था।मंदिर केअंदर अन्य मंदिरों में सुभद्रा, वासुदेव, रुक्मणि, बलराम और रेवती के मंदिर भी शामिल हैं।इसमें सबसे खासमूर्ति भगवान श्री कृष्ण कीहै।अगरमंदिर केवास्तुकला कीबात करें तो पांचमंजिला इमारत केरूपमें बने इसमंदिरको देखकर हीपता चलता है कि कलाकारों ने कितनी मेहनत से तराशकर इसकानिर्माण किया है।

द्वारकाधीश मंदिर की वास्तुकला (Dwarkadhish Mandir ki Vastukala)

द्वारकाधीश मंदिर चूना पत्थरों से बना हुआ है, जिसे चालुक्य शैली कीमनमोहक वास्तुकलाओं में गिना जाता है। इस मंदिर में 72 स्तंभ हैं। मंदिर का शिखर 78.3 मीटर ऊंचा है। मंदिर के ऊपर जो ध्वजयानी झंडा लगाहुआ है वो सूर्य और चन्द्रमा का प्रतीक माना जाता है। जिसका मतलब है कि जब तक इस दुनिया में सूरजऔर चांद रहेंगे, तब तक भगवान श्री कृष्ण का अस्तित्व रहेगा।इसत्रिकोणीय झंड़े को दिनमें पांच बार बदला जाता है, लेकिन झंडे कारंग औरनिशानएक हीरहता है।मंदिर में घुसने केदोदरवाज़े हैं, जिनमें सेउत्तरदिशा वाला दरवाज़ा मुख्य प्रवेश दरवाज़ा है, जिसे मोक्ष द्वार भी कहा जाता है। जबकि दक्षिण दिशा में मौजूद दरवाज़ेको स्वर्ग द्वार कहते हैं।

द्वारका नगरी का इतिहास (Dwarika nagari ka itihaas)

द्वारका केइतिहास केबारे में मान्यताओं के आधार पर बताया जाता है किमथुरा में जन्म लेने वालेनंदबाबाकेप्यारे औरयशोदा मैयाके दुलारे कृष्ण ने बसने के लिए द्वारका नगरी को चुना था। यही कारण है किहमनंदलाल को द्वारकाधीशकहकर भी पुकारते है। कई द्वारयानी दरवाज़ोंका शहर होने की वजहसे इसनगरकानाम पड़ा। इस शहर के चारोंतरफ बहुत ही लंबी दीवार थी, जिसमें कई दरवाज़े थे। यहां केनगरीय लोग बताते हैं कि, वह दीवार आज भी समुद्र के तल में है।द्वारका भारत के सबसे पुराने नगरों में से एक है। इसीजगहपर गोमती नदी अरब सागर से मिलती है।

द्वारका का पुराना नाम कुशस्थली है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ करने सेही इस नगरी का नाम कुशस्थली पड़ा था। यहां द्वारकाधीश का मशहूर मंदिर होने के साथ ही बहुत से मंदिरऔरपर्यटन केलिएकईमनमोहन जगहें हैं।कहाऐसा भी जाता है कि, मुस्लिम आक्रमणकारियों ने यहां के बहुत से प्राचीन मंदिर तोड़ दियाथा।द्वारका नगरी से समुद्र कीलहरों काअद्भुत दृश्य देखने को मिलता है।श्री कृष्ण ने समुद्र में एक छोटेसे पत्थर केटुकड़े परद्वारका नगर को बसादियाऔरइसके बाद‌ वहां तीर्थंकर स्थान की स्थापना हो गई,जोबहुत से श्रद्धालुओं केलिए आस्था और विश्वास काकेंद्र बना हुआ है।

आर्टिकल पर अपना फीडबैककमेंट में ज़रूर दें। ऐसे ही और आर्टिकल आप सोलवेदा हिंदी पर पढ़ सकते हैं।

टिप्पणी

टिप्पणी

X

आनंदमय और स्वस्थ जीवन आपसे कुछ ही क्लिक्स दूर है

सकारात्मकता, सुखी जीवन और प्रेरणा के अपने दैनिक फीड के लिए सदस्यता लें।