भगवान जगन्नाथ का भव्य मंदिर हिंदू धर्म के लोगों के लिए सबसे बड़ा धार्मिक आस्था का केंद्र है। यहां से निकलने वाली रथ यात्रा में हर साल लाखों लोग देश-विदेश से पहुंचते हैं। पुरी का यह मंदिर भगवान कृष्ण (Lord Krishna) को समर्पित है। हिंदू धर्म (Hindu Religion) के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक पुरी के इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ के साथ बलभद्र और बहन सुभद्रा की पूजा होती है। यहां सभी मूर्तियां लकड़ी की बनीं हुईं हैं।
जगन्नाथ पुरी मंदिर (Jagannath Puri Temple) में पूजा के विधि-विधान भी बहुत ही खास है। भगवान को नहलाना हो, कपड़े पहनाना हो, सब्जी काटना हो, पानी लाना हो, सामान समेटना हो या फिर भोग लगाना हो, हर काम के लिए एक-एक व्यक्ति है। वही हर दिन उस काम को करेगा, दूसरा कोई भी उस काम को नहीं करेगा। इस मंदिर का आर्किटेक्ट इतना भव्य है कि दूर-दूर से आर्किटेक्ट इस पर रिसर्च करने आते हैं।
जगन्नाथ पुरी मंदिर की ऊंचाई 214 फुट है। लकड़ी की मूर्तियों वाला ये देश का अनोखा मंदिर है, जिसकी कई विशेषताऐं हैं। मंदिर से जुड़ी एक मान्यता है कि जब भगवान कृष्ण ने अपनी देह का त्याग किया और उनका अंतिम संस्कार किया गया, तो शरीर के एक हिस्से का छोड़कर उनकी पूरी देह पंचतत्व में विलीन हो गई। मान्यता है कि भगवान कृष्ण का हृदय एक ज़िंदा इंसान की तरह ही धड़कता रहा, जो आज भी यहां मौजूद है। माना जाता है कि जगन्नाथ पुरी मंदिर से जुड़ी ऐसी कई कहानियां हैं, जो आज भी रहस्य बनी हुई हैं।
इस आर्टिकल में सोलवेदा हिंदी आपको जगन्नाथ पुरी मंदिर की इन्हीं रहस्यों से रूबरू करवाने जा रहा है, तो अगर इन्हीं रहस्यों के बारे में यदि जानना चाहते हैं, तो चलिए हम आपको बताते हैं।
जगन्नाथ पुरी मंदिर में छिपे रहस्य (Jagannath Puri Mandir mein chhipe rahasye)
मंदिर के ऊपर से नहीं जाता है विमान और न ही उड़ते हैं पक्षी
माना जाता है कि जगन्नाथ पुरी मंदिर की सुरक्षा गरुड़ करता है। इस पक्षी को पक्षियों का राजा कहा जाता है। गरुड़ के डर से ही अन्य पक्षी मंदिर के ऊपर से जाने से डरते हैं।
वहीं, मंदिर के ऊपर एक आठ धातु चक्र है, जिसे नीले चक्र के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि ये चक्र मंदिर के ऊपर से उड़ने वाले जहाजों में कई रुकावटें पैदा कर सकता है, इसलिए कोई भी विमान मंदिर के ऊपर से नहीं गुजरता है।
हवा के विपरित लहराता है झंडा
आम तौर पर दिन के समय हवा समुद्र से धरती की ओर चलती है और शाम में धरती से समुद्र की ओर। लेकिन, यहां जो होता है वो हैरान करने वाला है। यहां मंदिर का झंडा हवा की दिशा के विपरित लहराता है, जो कि उल्टी प्रक्रिया है। यहां पर हवा का रुख जिस दिशा में होता है मंदिर का झंडा उसकी उल्टी दिशा में लहराता है।
नहीं दिखाई देती है जगन्नाथ पुरी मंदिर की परछाई
जगन्नाथ पुरी मंदिर की ऊंचाई 214 फीट है, जो करीब चार लाख वर्ग फीट में फैली हुई है। विज्ञान के नियमों के अनुसार वस्तु या इंसान, पशु व पक्षियों की परछाई बनना है, लेकिन जगन्नाथ मंदिर की ऊंचाई इतनी होने के बाद भी इसकी परछाई नहीं बनती है। यहां मंदिर का शिखर अदृश्य ही रहता है और उसकी परछाई नहीं दिखाई देती है।
हर 12 साल में बदल जाती हैं मृर्तियां
यहां हर 12 साल में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां बदल दी जाती हैं। इसके साथ ही नई मूर्तियां स्थापित की जाती हैं। मूर्तियों को बदलने की प्रक्रिया के समय आस-पास के क्षेत्र में अंधेरा कर दिया जाता है।
शहर की बिजली पूरी तरह से काट दी जाती है और मंदिर के चारों ओर सीआरपीएफ की तैनाती कर दी जाती है। सिर्फ और सिर्फ मूर्ति बदलने वाले पूजारियों को ही मंदिर में उस समय प्रवेश करने दिया जाता है।
प्रसाद की विशेष विधि
चारों धामों में से एक धाम, जगन्नाथ पुरी मंदिर की रसोई भी हैरान करने वाली है। यहां रसोई में भक्तों के लिए प्रसाद पकाया जाता है। इस दौरान सात बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, लेकिन हैरानी वाली बात यह है कि सबसे ऊपर के बर्तन में रखा प्रसाद सबसे पहले पकता है।
साथ ही यह भी कहा जाता है कि यहां बनने वाला प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता है, चाहे 10-20 हज़ार लोग आएं या फिर लाखों लोग। सबको प्रसाद मिलता ही मिलता है। वहीं, जैसे ही मंदिर का गेट बंद होता है, वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है। वहीं, प्रसाद लकड़ी के चूल्हे पर ही बनाया जाता है, इसके लिए कभी भी गैस का उपयोग नहीं किया जाता है।
जगन्नाथ पुरी मंदिर में हैं चार द्वार
अक्सर मंदिरों में एक या दो गेट होते हैं, लेकिन जगन्नाथ पुरी मंदिर में चार द्वार हैं। मंदिर के मेन द्वार को सिंहद्वाराम कहा जाता है। बताया जाता है कि सिंहद्वारम गेट पर समुद्र की लहरों की आवाज़ सुनाई देती है, लेकिन मंदिर में इंट्री करते ही लहरों का शोर बिल्कुल ही खत्म हो जाता है।
सोने की कुल्हाड़ी से पेड़ पर लगाया जाता है कट
पुरी में हर साल रथ यात्रा निकाली जाती है। इसके लिए जंगल से लकड़ी काट कर लाई जाती है। रथ यात्रा के लिए तीन रथ बनाए जाते हैं और इसके लिए नीम और हांसी की लकड़ियों का ही प्रयोग किया जाता है।
रथ बनाने वाले, दिन में एक बार ही सादा खाना खाते हैं। काटने से पहले पेड़ों की पूजा की जाती है। इसके बाद सोने की कुल्हाड़ी से पेड़ पर कट लगाया जाता है। काटने के बाद पेड़ के गिरने पर उसकी पूजा की जाती है।
ओडिशा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर हिंदू धर्म के लोगों के लिए काफी पवित्र माना जाता है। यह मंदिर 800 सालों से भी ज़्यादा पुराना है। हिंदुओं के लिए इस अनूठे और अलौकिक मंदिर का महत्व इतना बड़ा है कि इसकी कल्पना कर पाना भी कठिन है।
इस आर्टिकल में हमने जगन्नाथ मंदिर का इतिहास बताने के साथ ही इससे जुड़े रहस्यों के बारे में भी बताया। संस्कृति से जुड़ी जानकारी के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।