गुरु पूर्णिमा का अर्थ

गुरु पूर्णिमा: महाभारत के रचयिता वेद व्यास के जीवन से लें 5 सबक

वेद व्यास महाभारत लिखने वाले महान रचियता थे और उनका पूरा नाम कृष्ण वेदव्यास था। वे सांवले रंग के थे, इसलिए उनका नाम कृष्ण पड़ा था। गुरु पूर्णिमा का वेदव्यास से गहरा नाता है। वैदिक पुराणों के अनुसार उन्होंने महाभारत के साथ-साथ श्रीमद्भागवत की रचना भी की थी।

गुरु का दर्जा भगवान से भी ऊपर माना जाता है। गुरु ही हैं, जो हमें अज्ञानता के अंधकार से बाहर निकाल कर सही रास्ते पर ले जाते हैं। गुरु की कृपा के बिना इस जीवन में कुछ भी संभव नहीं है। गुरु को साक्षात ब्रह्मा का रूप माना जाता है। सच्चा गुरु वह है, जो अपने शिष्यों को नैतिक मूल्यों पर आधारित जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है। गुरु शब्द ‘गु’ और ‘रु’ से मिलकर बना है। इसमें ‘गु’ का अर्थ अंधकार और अज्ञान है, तो वहीं ‘रु’ का अर्थ दूर करना या हटाना है। गुरु से ही जीवन में ज्ञान और सकारात्मकता आती है।

वेद व्यास महाभारत लिखने वाले महान रचियता थे और उनका पूरा नाम कृष्ण वेदव्यास था। वे सांवले रंग के थे, इसलिए उनका नाम कृष्ण पड़ा था। गुरु पूर्णिमा का वेदव्यास से गहरा नाता है। वैदिक पुराणों के अनुसार उन्होंने महाभारत के साथ-साथ श्रीमद्भागवत की रचना भी की थी। वे ऋषि पराशर के पुत्र थे और उनका जन्म आषाढ़ पूर्णिमा के दिन हुआ था। उन्होंने ही चारों वेदों की रचना की थी। इसी के कारण वेदव्यास को आदि गुरु कहा जाता है और उनके जन्मदिवस को गुरु पूर्णिमा के तौर पर मनाया जाता है।

सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम आपको गुरु वेदव्यास बारे में तो बताएंगे ही, साथ ही हम आपको उनके जीवन से क्या सबके ले सकते हैं, इसकी जानकारी भी देंगे। इसके अलावा गुरु पूर्णिमा की कथा भी बताएंगे।

आखिर गुरु की ज़रूरत क्यों? (Aakhir Guru ki zaroorat kyun?)

गुरु हमें अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाते हैं। जो इस काम को पूरा करते हैं, वही सदगुरु होते हैं। जैसे स्कूल में बिना शिक्षक के हमें किताबें पढ़नी नहीं आती है। कई बाद पढ़ना आ भी जाता है तो शब्दों का अर्थ समझ नहीं आता है। ऐसे में शिक्षक के थोड़े से सहयोग से ही हम किताब में जो बातें कही जा रही हैं, उसको आसानी से समझ जाते हैं। वहीं, सदगुरु के थोड़े से मार्गदर्शन से हम धर्म, कर्म, काम और मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं और सुखद जीवन जी पाते हैं। श्रेष्ठ गुरु हमेशा अपने शिष्यों का कल्याण करते हैं। गुरु की भूमिका की हर छात्र के जीवन को सकारात्मक रूप से बदलने की शक्ति रखती है।

गुरु पूर्णिमा कब मनाई जाती है? (Guru Purnima kab manai jati hai?)

गुरु पूर्णिमा हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष को मनाई जाती है। इसे आषाढ़ पूर्णिमा और गुरु पूर्णिमा भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस अवसर पर स्नान-दान और गुरु का आशीर्वाद लेने से सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। गुरु पूर्णिमा पूरी तरह से पूरी तरह से वेदव्यास को समर्पित है। इस बार गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई को मनाई जाएगी।

गुरु पूर्णिमा की कथा (Guru Purnima ki katha)

ग्रंथों के अनुसार बचपन में वेदव्यास ने अपने माता-पिता से भगवान के दर्शन करने की इच्छा जताई थी। लेकिन, उनकी मां सत्यवती ने उनकी इच्छा को नकार दिया था। इसके बाद ज़िद करने लगे, तो उनकी मां ने उन्हें जंगल जाने की आज्ञा दे दी। जाते हुए उनकी मां ने उनसे कहा था कि जब भी घर की याद आ जाए, तो वापस आ जाना। इसके बाद वेदव्यास तपस्या करने के लिए जंगल में चले गए और तपस्या करने लगे। इससे उन्होंने संस्कृत भाषा में निपुणता हासिल कर ली। इसके बाद उन्होंने चारों वेदों को आगे बढ़ाया और महाभारत, अठारह महापुराण सहित ब्रह्मसूत्र की रचना की। उन्हें चारों वेदों का ज्ञान था। इसलिए इस दिन गुरु की पूजा की परंपरा सदियों से चली आ रही है।

वेदव्यास के जीवन से लें 5 सबक (Vedvyas ke jeevan se lein 5 sabak)

कर्म करते रहना चाहिए

वेदव्यास ने अपनी महान रचना महाभारत के माध्यम से कई सबक हमें दिए हैं, जिन्हें हमें अपनाना चाहिए। इससे हम खुशी-खुशी अपनी ज़िंदगी जी सकते हैं। उन्होंने कहा था कि अगर इच्छाएं पूरी नहीं होती हैं तो समझदार व्यक्ति को शोक नहीं मनाना चाहिए बल्कि अपना कर्म पूरी ईमानदारी के साथ करते रहने चाहिए। हम जब भी अपना कर्म सही तरीके से करते हैं, तो देर-सबेर हम अपनी इच्छाओं को पूरा कर ही लेते हैं।

क्रोध नहीं, क्षमा करें

क्रोध हमेशा नुकसान पहुंचाता है। यही बात वेदव्यास ने अपनी रचनाओं से हमें समझाने का प्रयास किया है। उन्होंने बताया है कि जो इंसान क्रोधी पर क्रोध नहीं करता और उसे क्षमा कर देता है, वह अपनी और क्रोध करने वाले की महासंकट से रक्षा करता है। वह दोनों की बीमारी ठीक करने वाला डॉक्टर होता है।

शक जीवन का सबसे बड़ा दुख है

महर्षि वेदव्यास ने समझाने का प्रयास किया है कि शक जीवन का सबसे बड़ा दुख है। जिसके भी मन में शक होता है, उसे ना तो इस लोक में और न ही परलोक में सुख मिलता है।

सत्य से प्राप्त होता है अमृत

गुरु वेदव्यास ने बताया है कि सत्य ही वो रास्ता है, जिसके माध्यम से हम जीवन में आगे बढ़ सकते हैं और मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने बताया है कि अमृत और मृत्यु दोनों हमारे शरीर में ही स्थित है। मनुष्य को मोह से मृत्यु और सत्य से अमृत की प्राप्ति होती है। इसलिए हमें हमेशा सत्य का साथ देते हुए जीवन जीना चाहिए।

अर्धामिक काम पहुंचाता है नुकसान

महर्षि वेदव्यास ने महाभारत सहित अन्य रचनाओं से हमें समझाने का प्रयास किया है कि अधार्मिक काम हमें नहीं करना चाहिए, क्योंक यह हमेशा नुकसान पहुंचाता है। उन्होंने समझाया है कि जो इंसान अर्धामिक काम करता है, निर्दोष लोगों को परेशान करता है, उसकी आयु, धन-संपत्ति, मान-सम्मान, पुण्य सब कुछ धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है। इसलिए हमें धर्म के रास्ते पर चलते हुए सही काम करना चाहिए।

इस आर्टिकल में हमने महर्षि वेदव्यास के बारे में बताते हुए उनके जीवन के क्या सीखा जा सकता है, वो बताया है। यह आर्टिकल आपको कैसा लगा, हमें ज़रूर बताएं। इसी तरह की और भी जानकारी के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।

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