गणेश चतुर्थी भारतीय कला, संस्कृति और धर्म का सबसे महत्वपूर्ण महोत्सव है। यह पर्व भगवान गणेश को समर्पित है। भगवान गणेश बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता कहे जाते हैं। विघ्नहर्ता भगवान गणेश को गजानन, बप्पा, ध्रूमकेतु, एकदंत, वक्रतुंड, सिद्धिविनायक, गणपति आदि कई नामों से भी जाना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि इस दौरान पूरे 10 दिनों तक भगवान कैलाश पर्वत से आकर पृथ्वी लोक पर प्रवास करते हैं और अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं। इसलिए गणेश चतुर्थी लाखों भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है।
सोलवेदा के इस लेख में हम गणेश चतुर्थी के महत्व, आयोजन और इससे जुड़ी परंपराओं के बारे में चर्चा करेंगे। साथ ही जानेंगे कि हम उल्लास, आस्था और उम्मीद का यह महोत्सव कैसे मनाते हैं।
कब मनाया जाएगा गणेश चतुर्थी महोत्सव? (Kab manaya jaega ganesh chaturthi mahotsav?)
वैसे तो इस पर्व की तारीख हर साल बदलती है, क्योंकि इस पर्व की तिथि, चंद्रमा के स्थिति के आधार पर निर्धारित की जाती है। इसलिए इसकी महत्वपूर्ण तिथियां हर साल बदल जाती हैं। हिंदू धर्मशास्त्रों और पंचांग की मानें, तो भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ था। यह पर्व सामान्यत: अगस्त और सितंबर के बीच ही मनाया जाता है। लेकिन, इस साल यह पर्व मंगलवार, यानी 19 सितंबर को शुरू होगा। वहीं, दसवें दिन यानी 28 सितंबर को गणपति की मूर्ति विसर्जन की जाएगी।
हिंदू धर्म में गणेश चतुर्थी का विशेष महत्व (Hindu dharm mein ganesh chaturthi ka vishesh mahatv)
गणेश चतुर्थी हिंदू धर्म के पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण रूप से प्रकट होता है। यह पर्व विघ्नहर्ता भगवान गणेश, जिन्हें सबसे पहले उपास्य देवता माना जाता है के आगमन के रूप में मनाया जाता है। भगवान गणेश को बुद्धि और विद्या का प्रतीक माना जाता है और मान्यता है कि उनकी कृपा से सभी कार्य सफल होते हैं।
इसके अलावा, गणेश को समृद्धि और संपदा के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। इस पर्व के दौरान लोग भगवान गणेश की मूर्तियों को अपने घरों में स्थापित करते हैं और उन्हें पूजते हैं। इसके साथ ही लोग भगवान गणेश के भजन गाते हैं। व्रत और आरती का पालन करते हैं और प्रसाद का वितरण करते हैं। इस अवसर पर भगवान गणेश की पूजा और आराधना के साथ-साथ सामाजिक मेल-जोल और खुशियों का माहौल बनता है।
पंचांग के अनुसार, हर साल गणेश चतुर्थी का पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है, जो कि चतुर्थी तिथि से शुरू होकर पूरे 10 दिनों तक चलती है। इसे गणेश चतुर्थी, गणेश उत्सव या विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है।
कहां-कहां मनाया जाता है गणेश चतुर्थी महोत्सव? (Kahan-kahan manaya jata hai ganesh chaturthi mahotsav?)
हर साल, पूरे भारत में गणेश चतुर्थी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। विशेषकर, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, पश्चिमी और दक्षिणी भारत के अन्य भागों में यह महापर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
यह 10 दिनों का उत्सव है, जो अनंत चतुर्दशी पर समाप्त होता है। यह पर्व भारत के अलावा नेपाल, म्यांमार, थाईलैंड, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, गुयाना, मॉरीशस, फिजी, सिंगापुर, मलेशिया, इंडोनेशिया, कंबोडिया, न्यूजीलैंड, त्रिनिदाद और टोबैगो आदि में भी धूमधाम से मनाया जाता है।
यह त्योहार कई रस्मों और रीति-रिवाजों को समेटे हुए है और यह हिंदू धर्म के लोगों की आस्था से जुड़ा महत्वपूर्ण पर्व है। इस पर्व के दौरान सड़कों पर रंग-बिरंगे पताकों और झूलों की सजावट होती है और लोग अपने-अपने घरों को खूबसूरती से सजाते हैं। वैसे तो इस पर्व की तैयारियां कई महीने पहले ही शुरू हो जाती हैं। शिल्पकार मूर्तियां बनाना शुरू कर देते हैं और इन्हें सुंदरता से सजाने में जुट जाते हैं।
बीते कुछ सालों में गणपति प्रतिमा को लेकर आम लोगों में काफी जागरूकता आई है। आजकल अधिकतर लोग अपने घरों में मिट्टी की प्रतिमा स्थापित करते हैं। साल दर साल तालाबों में या पानी के अन्य छोटे स्रोतों में खंडित मूर्तियां और सजावट के सामान पानी में सड़ते रहते हैं। ये पदार्थ पानी में घुलनशील/बायोडिग्रेडेबल नहीं होते हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए मिट्टी से बनी और पानी में आसानी से घुल जाने वाली प्रतिमाओं को ही आजकल प्राथमिकता दी जा रही है।
सामाजिक मेल-जोल का पर्व है गणेश चतुर्थी (Samajik mel-jol ka parv hai ganesh chaturthi)
इस पर्व के आयोजन में समाज के विभिन्न वर्गों और समुदायों के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। इस पर्व के दौरान लोग गणेश की मूर्तियों की पूजा और आराधना करते हैं। पूजा के दौरान विशेष रूप से ललकारी पूजा और गणेश भगवान की आरती की जाती है।
इसके बाद पूजा के प्रसाद को सभी बच्चों और वृद्धों के साथ बांटा जाता है। इस तरह देखा जाए, तो इस अवसर पर एक तरह से सामाजिक आयोजन भी होता है। त्योहार के अंत में लोग मूर्तियों को पानी के बडे स्रोतों (समुद्र, नदी, झील, आदि) में विसर्जित करते हैं।
गणेश चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा (Ganesh chaturthi se jude pauranik katha)
शिव पुराण में गणेश जी से जुड़ी एक कथा काफी लोकप्रिय है। कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव भोगावती नदी पर स्नान करने गए। उनके चले जाने के बाद माता पार्वती ने अपने तन की मैल से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाले दिए और उसका नाम रखा ‘गणेश’।
पार्वती माता ने पुतले से कहा कि एक मुगदल लेकर द्वार पर बैठ जाओ और जब तक मैं नहा रही हूं, किसी को अंदर आने मत देना। भोगावती नदी से स्नान करने के बाद जब महादेव वापस आए, तो गणेश जी ने उन्हें द्वार पर ही रोक लिया। महादेव ने उन्हें काफी समझाया, लेकिन वह तैयार नहीं हुए। इसको भगवान शिव ने अपना घोर अपमान समझा और क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उनका सिर धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद वे अंदर चले गए।
जब माता पार्वती को मालूम हुआ कि महादेव ने गणेश जी का सिर काट दिया है, तो वे बहुत कुपित हुईं। गणेश जी का सिर धड़ से अलग देख माता पार्वती अत्यंत दुखी हुईं और उन्होंने अन्न-जल का त्याग कर दिया। पार्वती जी की नाराज़गी दूर करने के लिए भगवान शिव ने गणेश जी के हाथी का धड़ लगाकर जीवनदान दिया। तब देवताओं ने गणेश जी को तमाम शक्तियां प्रदान कीं और प्रथम पूज्य बनाया।
यह घटना भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुई थी। इसलिए यह तिथि पुण्य पर्व ‘गणेश चतुर्थी’ के रूप में मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन व्रत पालन कर के, व्रत कथा को सुनने और पढ़ने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और जीवन के कष्टों का निवारण होता है। इसलिए गणेश चतुर्थी एक ऐसा महोत्सव है, जो उल्लास, आस्था और उम्मीद की भावना को अद्वितीय तरीके से दर्शाता है।
इस आर्टिकल में हमने गणेश चतुर्थी से जुड़ी अहम बातें आपको बताईं हैं। संस्कृति से जुड़े हुए और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए सोलवेदा हिंदी से जुड़े रहें।