सबसे लोकप्रिय भगवान गणेश का भक्त साल भर इंतज़ार करते हैं, और उनका इंतज़ार खत्म होता है, सितंबर महीने में, यानी हिंदू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर भगवान गणेश अपने भक्तों के घर आते हैं। इस दिन सब लोग गणेश जी की मूर्ति घर लाते हैं और दस दिन तक उनकी पूजा अर्चना करने है। भगवान गणेश को लाने के दिन को ‘गणेश चतुर्थी’ कहा जाता है।
यूं तो भारत के हर सनातन घर में गणेश चतुर्थी मनाई जाती है, पर महाराष्ट्र और कर्नाटक में इस दिन की धूम देखने लायक होती है। शहरों में बड़े-बड़े पंडाल सजाए जाते हैं और उन भव्य पंडालों में गणेश जी की भव्य प्रतिमाएं लगाई जाती हैं। इन दस दिनों में हर तरफ खुशहाली होती है और हर तरफ ‘गणपति बप्पा मोरया’ की गूंज सुनाई देती है। दसवें दिन अनंत चतुर्थी के दिन गणपति विसर्जन किया जाता है, और इसी के साथ बप्पा से अगले साल फिर से आने के लिए कहा जाता है।
तो चलिए इतनी खुशी और उल्लास के इस पर्व यानि गणेश चतुर्थी का महत्व और इससे जुड़ी कहानी हम सोलवेदा के साथ जानते हैं।
आया बप्पा मोरया (Aya bappa morya)
हर साल गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी का स्वागत होता है और अनंत चतुर्दशी के दिन उन्हें विदा कर दिया जाता है, पर गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है? आखिर गणेश चतुर्थी की कथा क्या है? इस बारे में हम में से बहुत से लोग आज भी नहीं जानते।
तो चलिए मैं बताती हूं कि गणेश चतुर्थी की कथा आखिर है क्या? और क्यों हर साल बप्पा को बुलाकर विदा कर दिया जाता है।
वैसे तो हिंदू धर्म में गणेश चतुर्थी को लेकर बहुत सी कहानियां मौजूद है, पर मैं यहां आपको सबसे पुरानी और जानी-मानी कहानी बता रही हूं- शिवपुराण के रुद्रसंहिता के चौथे खण्ड में यह लिखा हुआ है कि जब एक बार माता पार्वती नहाने जा रही थीं, तब उन्होंने अपने शरीर से उतरे हुए उबटन से एक बच्चे की मूर्ति बनाई, जिसमें जान आ गई। फिर माता ने उस बच्चे से बाहर पहरेदारी करने को कहा क्योंकि माता नहाने जा रही थीं और किसी को भी अंदर आने की इजाज़त नहीं थी। भगवान शिव उसी वक्त वहां आ गए और अंदर जाने लगे, बच्चे के रोकने पर शिव जी को गुस्सा आ गया और उन्होंने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया।
जब माता पार्वती को इस बात का पता लगा तो उन्हें बहुत दुख हुआ, और उन्होंने शिवजी को बताया कि वो उनका ही बच्चा था। यह सुनकर तीनों लोकों के देवता वहां बुलाए गए और अंत में ऐसे बच्चे को खोजा गया, जिसकी मां उससे पीठ करके सोई हुई हो। ऐसी स्थिति में एक हाथी का बच्चा मिला। फिर उस हाथी के बच्चे के सिर को उस बच्चे के सिर पर लगाया गया और गणेश जी का फिर से जन्म हुआ।
जब गणेश जी का जन्म हुआ तब शुक्ल पक्ष की चतुर्थी थी, और सिर ढूंढने में दस दिन का वक्त लगा था, इसलिए तब से हर साल गणेश चतुर्थी मनाई जाती है। साथ ही, श्रृद्धालुओं में ऐसी मान्यता है कि गणेश जी को तीनों लोकों के देवताओं का आशीर्वाद भी मिला हुआ है, जिससे जब भी कोई गणेश चतुर्थी व्रत करता है तो उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
कब आ रहे हैं घर-घर गणेश? (Kab aa rahe hain ghar-ghar Ganesh?)
शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हर साल गणेश चतुर्थी का त्योहार को मनाया जाता है। इसी दिन से दस दिन के गणेश उत्सव की शुरुआत होती है। साल 2024 में गणेश चतुर्थी 7 सितंबर 2024 को है। इस दिन गणेश जी हम सब के घरों और आंगनों में विराजमान होंगे और 17 सितंबर 2024 को विसर्जित होकर, हमसे अगले साल फिर आने का वादा करेंगे।
गणेश चतुर्थी का है बहुत महत्व (Ganesh chaturthi ka hai bahut mahatv)
‘विघ्न हरण मंगल करण पूरन किजिए काज…’ हिन्दू विवाह निमंत्रण पत्र पर अक्सर आपने गणेश जी की तस्वीर के साथ यह पंक्तियां लिखी देखी होगीं। मान्यता है कि भगवान गणेश के बिना कोई भी शुभ काम अधूरा माना जाता है। हर खुशी और उल्लास उनके आशीर्वाद के बिना अधूरा माना जाता है। हिन्दू धर्म शास्त्रों में ऐसा बताया गया है कि सबसे पहले गणेश पूजा होना बहुत ज़रूरी है। उन्हें देवताओं में सबसे श्रेष्ठ की उपाधि मिली हुई है।
उनकी पूजा का खास दिन, गणेश चतुर्थी का श्रद्धालु साल भर इंतज़ार करते हैं, और जब ये दिन आ जाता है तो उनकी खुशी देखने लायक होती है। पूरे नौ दिन बप्पा के साथ हंसी और उल्लास के साथ मनाने के बाद बप्पा को अलविदा कहना बहुत मुश्किल होता है। श्रद्धालु भरी आंखों से गणपति बप्पा या भगवान गणेश को विदा करते हैं, फिर से अगले साल आने का इंतज़ार करते हैं। कहते हैं कि जो भी भक्त दिल से गणेश चतुर्थी व्रत रखता है, और गणेश जी की पूजा करता है, भगवान उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। तो चलिए हम भी गणपति बप्पा का दिन से स्वागत करके, गणेश चतुर्थी मनाएं।
आप सभी को गणेश चतुर्थी की शुभकमानाएं। ऐसे ही और आर्टिकल पढ़ने के लिए सोलवेदा हिंदी से जुड़े रहें।