अंदर का दानव

अपने अंदर के दानव से कैसे निपटें?

शब्द बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन कई बार सोच इस पर हावी हो जाती है। ऐसा ही एक शब्द है डेमन यानी दानव। आज यह ज़रूरी है कि हम अपने अंदर के दानव को हावी न होने दें।

कहते हैं कि एक इंसान में कई चेहरे छुपे होते हैं। इसमें एक चेहरा दानव या शैतान का भी होता है। पूरी दुनिया में दानव को बुराई का प्रतीक माना जाता है। हमारे अंदर यह विश्वास इतना गहरा है कि जब भी हम किसी दानव के बारे में सोचते हैं तो हम एक राक्षस की कल्पना करते हैं। जो देखने में डरावना तो होता ही है साथ ही उसके इरादे हमेशा खतरनाक होते हैं। मज़ेदार बात यह है  कि निगेटिव अर्थ के बावजूद इस शब्द के बनने की कहानी कुछ और ही बातें बयां करती  हैं। डेमन (Demon) लैटिन शब्द डेइमन (Daemon) और ग्रीक शब्द डाईमैन (Daiman) से आया है। दोनों का मतलब ‘कमतर भगवान’, ‘आत्मा को गाइड करने वाला’ या ‘रक्षक देवता’ होता है। अब सवाल यह है कि आखिर इस नाम का गलत मतलब क्यों और कैसे आ गया?

7वीं शताब्दी ईसा पूर्व से पहले दुनियाभर में कई संस्कृतियां थीं। ये बहुदेववादी कई देवताओं की पूजा करते थे। लेकिन समय बदला और एक ही भगवान को मानने वाले अब्राहमिक धर्म ईसाई, यहूदी और इस्लाम मेसोपोटामिया, भूमध्यसागरीय और अरब इलाके में फैले। इसके बाद कई देवताओं को ‘दुष्ट’ तक कहा जाने लगा।

शायद ये संस्कृतियों और विचारों का फर्क था। इसलिए जो चीज़ एक संस्कृति के लिए अच्छी थी, वही दूसरी संस्कृति में बुरी हो गई। हम प्राचीन यूनानी देवता पैन का उदाहरण ले सकते हैं  जो  आधे बकरे और  आधे आदमी थे। पौराणिक कहानियों के मुताबिक पैन एक चरवाहा थे। वह लोगों की रक्षा करने वाले और जंगली जानवरों के दोस्त थे। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने लोगों से अपनी आदिम प्रवृत्ति पर लगाम लगाने के लिए कहा। पुरातात्विक प्रमाणों से पता चलता है कि पैन यूनानियों के बीच बिना किसी रोक-टोक के रहने वाले एक प्रिय देवता थे। लेकिन 300 ईसा पूर्व तक बेदाग पुरुषत्व के लिए उन्हें बदनाम और राक्षसी बनाया गया।

रोम के दानव बिफ्रोन के साथ भी ऐसी ही बात थी। उन्हें अर्ल ऑफ हेल कहा जाता था। लोग मानते थे कि उनके पास 60 राक्षसों की कमान थी। वह एक ‘दानव’ था, लेकिन उसे विज्ञान और कला का शिक्षक भी माना जाता था। बिफ्रोन ने रत्नों और जड़ी-बूटियों से इलाज की शुरुआत की। ऐसा पता चलता है कि वह सिर्फ सिंहासन से हटाए गए और राक्षसी रोमन देवता जानूस हैं। एक पौराणिक करैक्टर जिसमें मानव जाति के अच्छे और बुरे दोनों गुण थे।

दुनियाभर की कई पौराणिक कहानियों में राक्षसों के वजूद को माना जाता है, लेकिन खास बात यह है कि बौद्ध धर्म इन्हें स्वीकार नहीं करता। बौद्ध धर्म की पौराणिक कहानियों में ‘मारा’ के बारे में बताया गया है। मारा एक राक्षस था, जिसने भगवान बुद्ध के आत्मज्ञान को भंग करने की कोशिश की। लेकिन भौतिक रूपों वाले राक्षसों से अलग  मारा किसी व्यक्ति का सिर्फ बुरा पक्ष दिखाता है। यह राक्षस मौत और पुनर्जन्म के साथ जुड़ा हुआ है और लोगों को संसार के सुखों का लालच देता है। इसलिए भगवान बुद्ध को अपने ज्ञान के रास्ते पर धैर्य के साथ चलने लिए जाना जाता है। कहा जाता है कि अपने विचारों से अप्रभावित रहने की कला की वजह से ही वह मारा को मात दे सके।

शायद यही हम इंसानों में छुपी हुई राक्षसी प्रवृति है। हमारे अंदर का दानव, अंधकार भरा पहलू जो कई बार सामने भी आ जाता है। ये शायद बाहरी हालत से बने हमारे मन को भटकाने वाले विचार हैं। चाहे जो भी हो किसी भी तरह इस अंधेरे पक्ष या इसके वजूद को नकारना नासमझी हो सकती है। ताओवाद केयिन-यांग कॉन्सेप्ट में बताया गया है कि अच्छे और बुरे हमेशा साथ रहेंगे, क्योंकि ये लगातार संपर्क में रहते हैं। यह दोहराव ही हमारी ज़िंदगी का बेस है। अच्छाई एक पल में बुराई और बुराई एक पल में अच्छाई में बदल सकती है। हम सिर्फ अपने अंदर के दानव व बुराई को स्वीकार कर एक बेहतर इंसान बनने की कोशिश कर सकते हैं।

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