भारत उत्सव और त्योहारों का देश है। हर महीने देश के किसी न किसी कोने में कोई न कोई त्योहार या उत्सव ज़रूर मनता है। ये सांस्कृतिक विविधता ही हमारे देश की खूबसूरती है। इसी सांस्कृतिक विरासत का एक हिस्सा है महाकुंभ मेला।
कुंभ मेला हर 12 साल में एक एक बार लगता है। यह दुनिया का सबसे बड़ा सांस्कृतिक और धार्मिक मेला है। साथ ही यह आस्था का सबसे बड़ा जमावड़ा है, जिसमें विश्व भर से लोग पहुंचते हैं और पवित्र नदी में स्नान करते हैं। वहीं, संत-महात्मा का प्रवचन सुनते हैं और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के साथ जीवन को खूबसूरत बनाने के मूलमंत्र साथ ले जाते हैं।
लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर कुंभ के क्या मायने हैं और यह क्यों मनाया जाता है? कुंभ मेला सबसे पहले कब शुरू हुआ था? सोलवेदा के इस आलेख में जानें कुंभ मेला की महत्ता और इससे जुड़ी मान्यताओं के बारे में।
कुंभ मेला कैसा होता है? (Kumbh mela kaisa hota hai?)
हिंदू पौराणिक कथाओं की मानें, तो कुंभ मेला एक धार्मिक उत्सव है, जो 12 वर्षों के दौरान चार बार मनाया जाता है। लेकिन, महाकुंभ 12 साल में एक बार ही लगता है। यह मेला पवित्र नदियों के तट पर स्थित चार धार्मिक स्थलों के समीप ही लगता है।
पहला उत्तराखंड में गंगा के किनारे हरिद्वार, दूसरा मध्य प्रदेश में शिप्रा नदी तट स्थित उज्जैन, तीसरा महाराष्ट्र में गोदावरी नदी तट स्थित नासिक और चौथा उत्तर प्रदेश में तीन नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल प्रयागराज में कुंभ का आयोजन होता है।
हरिद्वार कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक मेला है। इस दौरान करीब 48 दिनों तक करोड़ों श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। इस मेले में दुनिया भर से साधु, संत, तपस्वी, श्रद्धालु आदि शामिल होते हैं।
पौराणिक कथाओं में कुंभ मेला (Pauranik kathaon mein kumbh mela)
कुंभ मेला दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘कुंभ’ और ‘मेला’। कुंभ का अर्थ घड़ा होता है। जबकि मेला एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है एकत्रित होना या मिलना। यह एक मेला ही नहीं, बल्कि महापर्व भी है।
सभी पर्वों में कुंभ सर्वोपरि है। वैदिक शास्त्रों के मुताबिक, धार्मिक सम्मेलनों की यह परंपरा भारत में वैदिक युग से ही चली आ रही है, जब ऋषि-मुनि किसी नदी तट पर एकत्रित होकर धार्मिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक विषयों पर गहन चिंतन-मनन किया करते थे।
यह परंपरा आज भी कायम है। कुंभ मेले के पहले लिखित प्रमाण का उल्लेख भागवत पुराण में देखने को मिलता है। कुंभ मेले के एक अन्य लिखित प्रमाण का उल्लेख चीनी यात्री ह्वेन त्सांग के कार्यों में मिलता है, जो हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान 629-645 ई में भारत आए थे। साथ ही समुद्र मंथन के बारे में भागवत पुराण, विष्णु पुराण, महाभारत और रामायण में भी उल्लेख मिलता है।
पौराणिक कथाओं की मानें, तो समुद्र मंथन के दौरान जब समुद्र से अमृत कलश निकला, तो देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत के लिए महायुद्ध शुरू हो गया है। देवताओं और दैत्यों में अमृत पान करने के लिए होड़ लग गई। अमृत कुंभ के लिए देवलोक में 12 दिन तक संघर्ष जारी रहा।
इस दौरान कलश से चार स्थानों पर अमृत की कुछ बूंदें गिर गईं। यह स्थान हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक थे। जिस-जिस जगह पर अमृत गिरा, उन्हीं पवित्र स्थानों पर कुंभ मेला लगना शुरू हो गया। ऐसी मान्यता है कि कहते हैं कि इस दौरान कुंभ की नदियों का जल अमृत के समान हो जाता है।
यही कारण है कि कुंभ के दौरान स्नान और आचमन करने का महत्व बढ़ जाता है। यह भी एक मान्यता है कि हरिद्वार कुंभ मेला में स्वर्ग से सभी देवी-देवता धरती पर भ्रमण के लिए आते हैं। जो भी श्रद्धालु कुंभ स्नान करता है, उन पर देवी-देवता विशेष रूप से अपनी कृपा बरसाते हैं।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, कुंभ मेले के आयोजन के पीछे एक वैज्ञानिक पहलू भी है। कहते हैं कि जब-जब इस मेले के आयोजन की शुरुआत होती है, तब सूर्य पर हो रहे विस्फोट बढ़ जाते हैं और इस प्रभाव पृथ्वी पर भी काफी पड़ता है। आमतौर पर प्रत्येक ग्यारह से बारह साल के बीच सूर्य पर परिवर्तन होते हैं। शायद हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि इस बात से भली-भांति अवगत थे, तभी उन्होनें यह आयोजन करके इस बात का संकेत दिया।
हरिद्वार कुंभ मेला में स्नान का विशेष महत्व (Haridwar kumbh mela mein snaan ka vishesh mahatv)
धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक, जब कुंभ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होता है और मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होता है, तब हरिद्वार कुंभ मेला का आयोजन किया जाता है।
हरिद्वार और प्रयागराज में दो कुंभ पर्वों के बीच छह साल के अंतराल पर अर्द्धकुंभ का भी आयोजन होता है। हरिद्वार कुंभ मेला में स्नान का भी विशेष महत्व है। हरिद्वार कुंभ मेला का आयोजन गंगा नदी तट स्थित ‘हर की पौड़ी’ के पास होता है।
हरिद्वार हिंदू धर्म के लिए सबसे पवित्र धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि ‘हर की पौड़ी’ पर भगवान हरि अर्थात विष्णु जी के चरण पड़े थे, तभी से इस स्थान का नाम ‘हरि की पौड़ी’ पड़ा। हर की पौड़ी या ब्रह्मकुंड, पवित्र नगरी हरिद्वार का प्रमुख घाट है। यहां हर शाम सूर्यास्त के समय साधु-संत गंगा मैया की आरती करते हैं। इस दौरान यहां का दृश्य काफी मनोरम होता है। इस समय नदी का नीचे की ओर बहता जल पूरी तरह से रोशनी में नहाया होता है और श्रद्धालु विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में मग्न रहते हैं।
वेद-पुराणों में कुंभ स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। कहते हैं कि अगर कोई इंसान कुंभ के दौरान होने वाले शाही स्नान के दिन स्नान कर लेता है, तो वह व्यक्ति अमरत्व के समान पुण्य की प्राप्ति कर लेता है। उसके शरीर और आत्मा शुद्ध हो जाती है। सारे मानसिक और शारीरिक कष्ट और रोग विकार समाप्त हो जाते हैं। जबकि साधु-संतों को अपने तपो कर्म का विशेष फल प्राप्त होता है।
कुंभ मेले में शाही स्नान करने जाते समय साधु-संत अपनी-अपनी परंपरा अनुसार हाथी या घोड़े पर सवार होकर गाजे-बाजे के साथ या फिर राजसी पालकी में बैठकर निकलते हैं। आगे-आगे नागा साधुओं का जत्था होता है और उनके पीछे महंत, मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर होते हैं। शाही स्नान कुंभ का सबसे बड़ा आकर्षण होता है और पवित्र स्नान के बाद साधु-संत आस-पास के मंदिरों के दर्शन कर अपने मूल स्थान पर लौट जाते हैं।
इन जगहों पर भी लगता है कुंभ मेला (In jagaho par bhi lagta hai kumbh mela)
प्रयागराज कुंभ मेला (Prayagraj kumbh mela)
प्रयागराज गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम तट पर बसा है। यहां भी हर 12 साल में कुंभ मेले का आयोजन होता है। प्रयागराज में कुंभ मेला मेष राशि के चक्र में बृहस्पति, सूर्य और चन्द्रमा के मकर राशि में प्रवेश करने पर अमावस्या के दिन लगता है।
नासिक कुंभ मेला (Nasik kumbh mela)
नासिक महाराष्ट्र का तीसरा सबसे बड़ा शहर है। यह गोदावरी नदी किनारे स्थित है। नासिक में कुंभ मेला तब लगता है, जब सिंह राशि में बृहस्पति का प्रवेश होता है। अमावस्या के दिन बृहस्पति, सूर्य एवं चंद्र के कर्क राशि में प्रवेश होने पर भी कुंभ मेला लगता है। इस कुंभ को सिंहस्थ कहते हैं, क्योंकि इसमें सिंह राशि में बृहस्पति का प्रवेश होता है।
उज्जैन कुंभ मेला (Ujjain kumbh mela)
उज्जैन मध्य प्रदेश में शिप्रा नदी के किनारे बसा एक धार्मिक शहर है। जब सिंह राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होता है,तब उज्जैन में कुंभ मेले का आयोजन होता है। साथ ही कार्तिक अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्र के साथ होने और बृहस्पति के तुला राशि में प्रवेश होने पर यहां कुंभ लगता है।
आज आपने हरिद्वार कुंभ मेला के बारे में जाना। ऐसे ही आर्टिकल पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी पर।