इंसानों से प्यार

सिर्फ जानवरों से नहीं इंसानों से भी प्यार करें

इतनी बड़ी हवेली की अकेली मालकिन जया, 50 की उम्र में भी अपने पालतूओं का ख्याल खुद रखती थी, क्योंकि कोई नौकर उसके व्यवहार की वजह से अगले दिन ही भाग निकलता था।

शहर के बीच ओ बीच एक बड़ी हवेली थी। हवेली के चारों तरफ फल-फूल के बगीचे और पालतू जानवरों के तबेले थे। इतनी बड़ी हवेली की अकेली मालकिन जया, 50 की उम्र में भी अपने पालतूओं का ख्याल खुद रखती थी, क्योंकि कोई नौकर उसके व्यवहार की वजह से अगले दिन ही भाग निकलता था।

जया एक तलाकसुदा औरत थी, और परिवार के नाम पर जया की बहन का गोद लिया बेटा रमन था, जो अपनी बीवी-बच्चों के साथ दूसरे शहर जाकर बस गया था। पड़ोसी भी रमन के दूसरे शहर जाने की वजह भी जया के व्यवहार को मानते थे।

दूसरी ओर जया अपनी ही मस्ती में रहती थी। उसे हर व्यक्ति पागल लगता था। वो खुद को बहुत समझदार और जानवर प्रेमी कहकर इतराती थी। हर छोटी बड़ी बात पर पड़ोसियों और दुकानदारों से लड़ना उसकी आदत थी। उसके इस रवैये की वजह से उसे कोई पसंद नहीं करता था। पर उसे इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता था।

एक बार कुछ बच्चे हवेली के बाहर बॉल से खेल रहे थे कि तभी बॉल सीधा जाकर हवेली की एक खिड़की से जा लगी। उस वक्त जया अपने कुत्तों को हवेली के गार्डन में टहला रही थी और आवाज़ सुनकर एकदम खिड़की के पास आ गयी।

हवेली के अंदर बॉल लाने जाने से बच्चे पहले ही डर गये थे, और वो ये भी जानते थे की जया जैसी खतरनाक आंटी से बॉल वापस लेना आसान नहीं था और खूंखार कुत्तों का डर अलग।

“छोड़ यार! कुछ दिन में पॉकेट मनी जमा करके नई बॉल ले लेंगे।” एक बच्चे ने घर की तरफ जाते हुए कहा। पर उनमें से एक बच्चा पूरी बहादूरी के साथ हवेली की तरफ मुड़ कर बोला, “ऐसे कैसे जाने दें! वो बॉल मेरी दादी ने मुझे थी, अब दादी नहीं हैं तो उनकी बॉल तो मुझे अपने पास चाहिए ही।” उस बच्चे की ये बात सुनकर बाकी बच्चे उसे रोकने और समझाने के लिए आगे बढ़े ही थे कि तभी हवेली का दरवाज़ा खुला और जया अपने हाथ में वही बॉल पकड़ कर बाहर आई। उसे बाहर आता देख सभी बच्चे भागने लगे तभी जया चीखकर बोली, “ऐ रुको सब! भागोगे तो पीछे कुत्ता छोड़ दूंगी!” ये सुनकर सब बच्चे डर गये और कांपते हुए उसकी तरफ मुड़ गए।

“अब बोलो! ये बॉल किसकी है, किसने मेरी खिड़की तोड़ने की कोशिश की?” जया ने गुस्से में लाल होते हुए कहा।

“मेरी है!” बहादुर बच्चे ने सीना चौड़ा करते हुए कहा। “ओह! तो ये तुम्हारी हरकत है, तुम तो अब गये बच्चू।” ये कहते हुए जया ने उस बच्चे का कान पकड़ कर जोर से ऐंठ दिया और उसके गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा रख दिया, और बोली, “जा नहीं देती बॉल!”

बच्चे की आंखों में आंसू आ गये और चेहरा गुस्से से लाल हो गया, उसने रोते हुए कहा, “कैसी औरत हो तुम! मेरी मां सही कह रही थी तुम सिर्फ जानवरों के साथ रहने लायक ही हो! इंसानों के नहीं!” ये कहते हुए बच्चा रोते हुए वहां से चला गया। उसके पीछे सारे बच्चे दौड़ गये।

जया दरवाज़े पर हाथ में बॉल पकड़े हुए अकेली खड़ी रही। उस बच्चे के आखिरी शब्दों ने जया के दिल को झकझोर दिया था। इतने सालों में पहली बार जया को ये एहसास हुआ कि वो जितना प्यार जानवरों को करती है, उतना ही गंदा बर्ताव इंसानों के साथ करती है। उसके ऐसे व्यवहार की वजह से ही वो इतनी बड़ी हवेली में भी अकेली है।

अपनी गलती का एहसास होते ही जया खुद उस बच्चे के घर उसकी बॉल लौटाने गई। जया को वहां देखकर बच्चे के घरवालों के साथ साथ पडोसी भी दंग रह गये। जया ने अपने बर्ताव के लिए न केवल उस बच्चे से माफी मांगी बल्कि सारे पड़ोसियों से भी माफी मांगी। उसे ज़िंदगी का एक बड़ा सबक मिल चुका था।

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