दुख या ध्यान

साक्षी होने की कला – अपने दुख को ध्यान के क्षणों में बदलो

दुख का क्षण साधना का क्षण बन सकता है, बनाया जा सकता है।

सबसे बड़ी तैयारी मृत्यु में जागे हुए प्रवेश करने की, दुख में जागे हुए प्रवेश करना है। क्योंकि मृत्यु तो बार-बार नहीं आती, रोज नहीं आती। मृत्यु तो एक बार आएगी। आप तैयार होंगे तो तैयार होंगे, नहीं तैयार होंगे तो नहीं तैयार होंगे। मृत्यु का कोई रिहर्सल नहीं हो सकता।

उसकी कोई पूर्व अभिनय की तैयारी नहीं हो सकती। लेकिन दुख रोज आता है, पीड़ा रोज आती है। पीड़ा और दुख में हम तैयारी कर सकते हैं। और ध्यान रहे, अगर पीड़ा और दुख में तैयारी हो गई तो मृत्यु में वह तैयारी काम आ जाएगी।

इसलिए दुख को सदा ही साधक ने स्वागत से स्वीकार किया है। उसका और कोई कारण नहीं है। उसका कारण यह नहीं है कि दुख शुभ है। उसका कारण सिर्फ यह है कि दुख उसे अवसर बनता है, स्वयं को साधने का। इसलिए साधक ने सदा ही दुख के लिए भी परमात्मा को धन्यवाद ही दिया है। क्योंकि दुख के क्षणों में वह अपने शरीर से दूर होने के लिए एक अवसर पाता है, एक मौका पाता है।

और ध्यान रहे, सुख के क्षण में यह साधना जरा मुश्किल है, दुख के क्षण में जरा आसान है। क्योंकि सुख के क्षण में तो हमारा मन ही नहीं करता कि शरीर से जरा भी दूर हो जाएं। शरीर तो सुख के क्षण में बहुत प्यारा मालूम पड़ता है। शरीर से तो मन होता है सुख के क्षण में कि हम इंच भर के फासले पर भी न हों!

सुख के क्षण में हम शरीर के बहुत निकट सरक आते हैं। इसलिए सुख का खोजी अगर शरीरवादी हो जाता है तो कुछ आश्चर्य नहीं है।

और निरंतर सुख की खोज में लगा हुआ व्यक्ति अगर अपने को शरीर ही समझने लगता है तो भी कोई आश्चर्य नहीं है। क्योंकि सुख के क्षण में वह सूखे नारियल की जगह गीला नारियल होने लगता है। फासला कम होने लगता है।

दुख के क्षण में तो मन होता है कि हम शरीर न होते तो अच्छा। जब सिर में दर्द होता है और जब पैर में चोट होती है और शरीर दुखता है, तो साधारणतः जो आदमी अपने को शरीर ही मानता है, वह भी एक क्षण सोच लेता है कि हम शरीर न होते तो अच्छा।

ये जो फकीर दुनिया भर के कहते रहे हैं अगर ठीक होता तो अच्छा कि हम शरीर न होते। उस वक्त तो उसका मन भी तैयार होता है कि किसी तरह यह पता चल जाए कि मैं शरीर नहीं हूं।

इसलिए दुख का क्षण साधना का क्षण बन सकता है, बनाया जा सकता है।

लेकिन हम क्या करते हैं?

साधारणतः हम दुख के क्षण में दुख को भूलने की कोशिश करते हैं। एक आदमी को तकलीफ है तो शराब पी लेगा। एक आदमी को दुख है तो सिनेमा में जाकर बैठ जाएगा। एक आदमी को दुख है तो भजन-कीर्तन करके भुलाने की कोशिश करने लगेगा। ये अलग-अलग तरकीबें हैं।

कोई शराब पीता है, कहना चाहिए कि यह एक तरकीब है। कोई सिनेमा देखता है, यह दूसरी तरकीब है। कोई जाकर संगीत सुनने बैठ जाता है, यह तीसरी तरकीब है। कोई झांझ-मजीरा पीटकर भजन में लीन हो जाता है, यह चौथी तरकीब है।

हजार तरकीबें हो सकती हैं- यह सवाल बड़ा नहीं है। लेकिन भीतर बुनियादी बात एक ही है कि आदमी अपने दुख को भूलना चाह रहा है। वह फारगेटफुलनेस की कोशिश में लगा है–विस्मरण हो जाए।

और जो आदमी दुख को विस्मरण करेगा, वह आदमी दुख के प्रति जाग नहीं सकता।

क्योंकि जिस चीज को हम भुला देते हैं, उसके प्रति जागेंगे कैसे? जाग सकते हैं उस चीज के प्रति, जिसके प्रति हमारा दृष्टिकोण रिमेंबरिंग का है, स्मरण का है। इसलिए दुख के प्रति स्मरण ही दुख को जगाता है।जब आप दुख में हों, तो इसको एक अवसर समझें। और अपने दुख के प्रति पूरी स्मृति से भर जाएं। बड़े अदभुत अनुभव होंगे।

जब आप दुख के प्रति पूरी स्मृति से भरेंगे और दुख को देखेंगे, भागेंगे नहीं दुख से।

पैर में दर्द है, चोट लग गई है, गिर गए हैं आप। तब आंख बंद करके जरा भीतर दर्द को खोजने की कोशिश करें कि वह कहां है। उसे पिन पॉइंट, उसे ठीक एक जगह पकड़ने की कोशिश करें कि वह दर्द है कहां। क्योंकि आप बड़े हैरान होंगे कि जितनी जगह दर्द होता है, उससे बहुत ज्यादा बड़ी जगह में आप उसे फैला लेते हैं। उतनी जगह होता नहीं।

आदमी अपने दुख को बहुत इग्जैजरेट करता है। आदमी अपने दुख को बहुत अतिशय मान लेता है। आदमी अपने दुख को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर स्वीकार करता है, जितना होता नहीं। इसके पीछे भी वही शरीर को एक मानना कारण है।

दुख तो होता है दीये की तरह, जैसे दीये की फ्लेम होती है, लेकिन अनुभव हम करते हैं प्रकाश की तरह। जैसे दीये का प्रकाश सब तरफ फैल जाता है। होता है दुख फ्लेम की तरह, ज्योति की तरह, एक बहुत छोटी जगह में, पर हम अनुभव करते हैं प्रकाश की तरह बहुत दूर तक फैला हुआ।

ओशो, मैं मृत्यु सिखाता हूं, टॉक्स #12 – साक्षी बनना से उद्धृत

क्रमशः

ओशो को आंतरिक परिवर्तन यानि इनर ट्रांसफॉर्मेशन के विज्ञान में उनके योगदान के लिए काफी माना जाता है। इनके अनुसार ध्यान के जरिए मौजूदा जीवन को स्वीकार किया जा सकता है।

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