हिंदू धर्म का फैलाव

हिंदू धर्म का फैलाव

आज जिस रूप में हम ऋग्वेद से परिचित हैं, उसके स्तोत्र 3,000 साल पहले पंजाब और हरियाणा के आसपास रचे गए थे।

इस काल में लोगों ने पश्चिम से पूर्व की ओर गंगा के मैदानी इलाक़ों तक प्रवास किया। इस प्रवास में उन्होंने आग की मदद से जंगल जलाए और अपने लिए रास्ता बनाया। 2,500 साल पहले जब तक उपनिषदों की रचना हुई, तब तक लोग गंगा के मैदान तक पहुंच चुके थे। यह क्षेत्र और समय बुद्ध और जीन महावीर के जीवन से जुड़ा है।

सदियों के मौखिक संचार के बाद लगभग 2,000 साल पहले महाभारत को वैदिक संस्कृत में लिखित रूप दिया गया। इस रूप में उल्लिखित तीर्थस्थानों से हम प्रारंभिक संदर्भ पाते हैं – भारत के पूर्वी तट पर ओडिशा में विराज, उसके पश्चिमी तट पर कर्नाटक में गोकर्ण और उसके दक्षिणी तट पर कन्या, जैसे तीर्थस्थान। तब तक ब्राह्मणों के साथ-साथ बौद्ध और जैन साधु भी भारत के लगभग हर कोने में पहुंच गए थे। इस कारण, उत्तर से दक्षिण तक, पूर्व से पश्चिम तक और इसकी उलटी दिशा में भी विचार फैल रहे थे।

सबसे प्राचीन तमिल साहित्य अर्थात संगम साहित्य उस काल में रचा गया जब उत्तर भारत में महाभारत अंतिम लिखित रूप ले रहा था। संगम साहित्य के लगभग 500 कवियों में से लगभग 10-20 प्रतिशत कवियों के नामों की वैदिक और उत्तरी जड़ें हैं। इस काल में ही पाई जाने वाली तमिल ब्राह्मी लिपि, जो कम से कम अशोक काल के शिलालेखों जितनी प्राचीन है, से समझ आता है कि वे लोग वैदिक नामों के बारे में जागरूक थे। यह प्रसिद्ध ‘दक्षिणा-पथ’ या उत्तर और दक्षिण के बीच व्यापारिक मार्ग का परिणाम था, जिसने विचारों का आदान-प्रदान सुलभ बनाया।

संगम साहित्य में उल्लेख है कि कैसे कुरुक्षेत्र युद्ध से पहले राजाओं ने योद्धाओं को खाना खिलाया था और कैसे पांड्य राज्य के कोडी में राम के आने से चहकते पक्षी एकदम शांत हो गए थे। उसमें क्षत्रियों का वध करने वाले परशुराम, तीन आंखों वाले शिव, श्याम रंग के कृष्ण व उनके प्रतीक चील और श्वेत रंग के बलराम व उनके प्रतीक ताड़ के पेड़ का उल्लेख है।

ये सभी उत्तरी विचार हैं जो स्पष्ट रूप से प्रवासी ब्राह्मणों के साथ दक्षिण आए थे। उत्तरकालीन तमिल साहित्य में ऋषि अगस्त्य की बात की गई है, जो दक्षिण चले गए थे और उत्तर कभी नहीं लौटे और दक्षिण में तमिल व्याकरण की रचना की। बौद्ध धर्म और जैन धर्म जो उत्तर से दक्षिण की ओर फैले, ने कई गुफा मंदिरों के निर्माण और प्रभावशाली साहित्य की रचना को प्रेरित किया।

दक्षिण से भी कई विचार उत्तर में फैले। विचारों का संचार एकतरफ़ा कभी भी नहीं था। मंदिरों में हिंदू देवताओं की पूजा करने की विस्तृत आगम या स्मार्त प्रणाली दक्षिण में विकसित हुई और उत्तर तक फैली। भक्ति के विचार ने दक्षिण में जन्म लिया। शंकर (8वीं सदी), रामानुज (12वीं सदी), माधव (14वीं सदी) और वल्लभ (16वीं सदी) जैसे दक्षिणी आचार्यों ने वेदांत को पूरे भारत में लोकप्रिय बनाया। जब कश्मीर जैसे शिक्षा के उत्तरी केंद्रों पर मुसलमानों ने कब्ज़ा कर लिया था, तब हिंदू विचारों ने दक्षिण में, विशेष रूप से ओडिशा और विजयनगर साम्राज्य में अपने आप को संगठित कर लिया।

कई लोग मानते हैं कि जाति व्यवस्था उत्तर भारत से दक्षिण भारत तक फैली, लेकिन जाति का निरूपण इतना सरल नहीं है। हां, वर्ण-धर्म की अवधारणा ब्राह्मणों के साथ उत्तर से दक्षिण तक फैली। लेकिन संगम साहित्य ‘अनंकु’ नामक पवित्र शक्ति की बात करता है, जो महिलाओं को संयमित, पतिव्रता और शुद्ध रहकर प्राप्त होती है। इस धारणा ने संभवतः मासिक धर्म की वर्जनाओं और पवित्रता व शक्ति से संबंधित अन्य विचारों को जन्म दिया।

इस प्रकार, हिंदू धर्म दक्षिणावर्त दिशा में उत्तर-पश्चिम से पूर्व तक, वहां से दक्षिण तक और फिर से उत्तर की ओर धीरे-धीरे सदियों से फैला। वह 300 और 1300 ईसा पूर्व के बीच विदेश, दक्षिण पूर्वी एशिया तक भी फैला, जिसके बाद यह फैलाव बंद हो गया क्योंकि यह माना जाने लगा था कि समुद्री यात्रा करने से लोग उनके जाति के अधिकार खो देते थे।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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