गुलदस्ता

गुलदस्ता

अपनी बेटी के लिए हर दिन गुलदस्ते ले जाने वाले अंकल ने एक दिन अचानक आना बंद कर दिया और सोहन को जो पता चला उसके बाद उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई।

शहर के बाज़ार में सोहन की फूलों की दुकान है। बाज़ार से थोड़ी दूर एक कॉलोनी है, वहीं एक अंकल रहा करते थे। 

वो सोहन की दुकान से रोज़ लिली के फूलों का गुलदस्ता खरीद कर ले जाते थे। फूल खरीदते वक्त वो सोहन से थोड़ी बहुत इधर-उधर की बातें भी कर लिया करते थे। 

सोहन रोज़ उनके आने से पहले ताज़ी लिली का एक सुंदर गुलदस्ता तैयार रखता और उन्हें दे देता था।

बहुत वक़्त से दुकान पर आते रहने के बावजूद भी सोहन को नहीं पता था कि वो गुलदस्ता किसके लिए ले‌ जाते हैं।

एक दिन, वो सुबह-सुबह ही फिर दुकान पर आ गये। उस वक़्त सोहन ने दुकान खोली ही थी और उनका गुलदस्ता भी तैयार नहीं था। मगर, आज वो बहुत खुश लग रहे थे। 

“इतनी सुबह आने के लिए माफी चाहूंगा… पर क्या तुम मुझे जल्दी से एक सुंदर गुलदस्ता बनाकर दे सकते हो?” उन्होंने कहा और एक लिली के फूल को हाथ में लेकर सूंघने लगे।

“सुनो! बाकी दिनों से थोड़ा अलग बनाना, अलग मतलब और भी ज़्यादा खूबसूरत!” उन्होंने फिर से कहा और दुकान पर पड़ी बेंच पर बैठ गए। 

“अंकल आज कुछ खास है क्या?” सोहन ने पूछा तो उन्होंने खुश होकर कहा,‌ “हम्म आज मेरी बेटी का जन्मदिन है।” 

“ओह! अच्छा तो आप रोज़ उनके लिए ही गुलदस्ता ले जाते हैं।” सोहन ने पूछा।

“हम्म…उसे सफेद लिली पसंद है।” उन्होंने जबाव दिया।

सोहन ने उन्हें एक खूबसूरत गुलदस्ता तैयार करके दे दिया और उन्होंने जेब से एक चॉकलेट निकाल कर, पैसों के साथ उसके हाथ में रख दी। वो इतने जल्दी में थे कि अपने बचे हुए पैसे लिए बिना ही दुकान से निकल गये।

अगले दिन सोहन ने गुलदस्ता बना कर रख लिया, पर अंकल गुलदस्ता लेने नहीं आए। उसके दूसरे दिन भी गुलदस्ता बना कर रखा, वो फिर भी नहीं आए। सोहन को लगा कि शायद कहीं घूमने चले गए होंगे। 

तीसरे दिन सोहन ने सोचा अब जब अंकल आएंगे तो उनके सामने ही गुलदस्ता बनाऊंगा। पर वो उस दिन भी नहीं आए। ऐसे ही पूरा एक हफ्ता गुज़र गया। 

उनका ऐसे अचानक गुलदस्ता लेना बंद करना, सोहन को बड़ा अजीब लगा। उनके कुछ पैसे बकाया थे, इसलिए सोहन के मन में आया कि चलो उनके घर जाकर पैसे लौटा देता हूं, इसी बहाने उनके ना आने का कारण भी पूछ लूंगा।

वो लोगों से पूछते-पूछते अंकल के घर पहुंचा। वहां ताला लगा हुआ था। उसने अंकल के एक पड़ोसी से पूछा तो उन्होनें कुछ ऐसा कहा जिसे सुनकर सोहन के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। पड़ोसी ने बताया कि अंकल एक हफ्ते पहले ही एक रोड़ एक्सीडेंट में गुज़र गए हैं।

सोहन ने डरते हुए पूछा, “और उनकी बेटी? वो कहां है?” 

“अरे! उनकी बेटी को मरे हुए तो पांच-छह साल गुज़र चुके हैं।… तुम कौन हो? जो उनके बारे में इतना कुछ पूछ रहे हो?” पड़ोसी ने जिज्ञासा भरी नज़रों से पूछा।

सोहन ने कहा “मैं फूल बेचता हूं, अंकल रोज़ मेरी ही दुकान से अपनी बेटी के लिए फूल लेते थे। उनके कुछ पैसे बाकी थे, वही देने आया था।”

“अच्छा!… वो गुलदस्ता बेटी के लिए नहीं, बेटी की कब्र के लिए लाते थे। बेचारे! भगवान का खेल देखो, उनकी कब्र भी उनकी बेटी के बगल में ही बन गई है।” उस पड़ोसी ने दुख जताते हुए कहा।

सोहन ने उनकी कब्रों का पता पूछा और अपनी दुकान पर चला आया। उस दिन से आज तक, सोहन रोज़ अपनी दुकान के सबसे खूबसूरत गुलदस्ते अंकल और उनकी बेटी की कब्र पर रखने जाता है। हां…उनसे सोहन का कोई रिश्ता नहीं है, पर इतने दिनों में जो रिश्ता उनसे बन गया था, वो अब खत्म होने का नाम नहीं ले रहा।

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