जब अपने गुरु को बचाया था गोरखनाथ ने

शिष्य गोरखनाथ ने अपने गुरु मत्स्येन्द्रनाथ को स्त्री राज्य से मुक्त करवाया। चूंकि उन्होंने अपने गुरु को बचाया था। इसलिए जल्दी ही उनका वैभव चारों ओर फैल गया।

गोरखनाथ भारत के कई राज्यों जैसे पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश के साथ जुड़े हुए हैं। तमिल परंपरा में वे 18 सिद्धों में से एक और महाराष्ट्र में 9 नाथों में से एक माने जाते हैं। इतना ही नहीं, इतिहासकारों का तो यहां तक कहना है कि करीब 1000 साल पहले यानी आदि शंकराचार्य के कुछ समय बाद गोरखनाथ का भारत पर गहरा प्रभाव रहा होगा। यह वो समय है, जब भक्ति परंपराएं धीरे-धीरे तांत्रिक परंपराओं की जगह ले रही थीं और मंदिरों का निर्माण होना शुरू हुआ था। नेपाल के लोग गोरखनाथ को राष्ट्र देवता और नेपाली गोरखा उन्हें अपना गुरु मानते हैं।

गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ थे। कहते हैं कि मत्स्येन्द्रनाथ का जन्म एक मछली से हुआ था। जब वे मछली के गर्भ में थे, तब उन्होंने शिव और पार्वती के बीच तंत्र और वेद की विद्या का संवाद सुना। इस ज्ञान से उन्हें मनुष्य रूप प्राप्त हुआ। उन्होंने ब्रह्मचर्य का व्रत लिया। नाथपंथियों का मानना है कि शिवजी उनके आदि गुरु हैं। 

पुराणों में मत्स्येन्द्रनाथ से जुड़ी कई कथाएं मिलती हैं। एक कथा के अनुसार एक निस्संतान महिला मत्स्येन्द्रनाथ से मिली। संतान नहीं होने के कारण महिला बहुत दुखी रहती थी। महिला का दुख दूर करने के लिए मत्स्येन्द्रनाथ ने उसे भभूत दी ताकि वह गर्भवती हो सके। लेकिन उस महिला को मत्स्येन्द्रनाथ की शक्ति पर भरोसा नहीं हुआ और उसने भभूत गोबर के ढेर में फेंक दी। नौ साल बाद जब मत्स्येन्द्रनाथ महिला के घर गए और उस बच्चे के बारे में पूछताछ की तो महिला ने रोते हुए सब सच बता दिया। तब मत्स्येन्द्रनाथ उसी गोबर के ढेर के पास गए तो उसके भीतर नौ वर्ष का एक बालक नजर आया। इस बालक को देखकर सब आश्चर्यचकित रह गए। चूंकि उस बालक की रक्षा गोबर ने की थी। इसलिए मत्स्येन्द्रनाथ ने उसका नाम गोरक्षनाथ या गोरखनाथ रख दिया। उन्होंने उसे अपने पुत्र और चेले जैसा माना और इसलिए गोरखनाथ उनके साथ ही भारत की यात्रा करने लगे।

एक अन्य कथा के अनुसार मत्स्येन्द्रनाथ कदली वन या केले के वन में स्थित स्त्री राज्य में अटक गए थे। तब गोरखनाथ ने ही उन्हें बचाया था। यह स्त्री राज्य श्रापित था कि जो भी पुरुष इसके अंदर जाएगा, वह स्त्री बन जाएगा। लेकिन मत्स्येन्द्रनाथ अपनी योग शक्ति की वजह से इस श्राप से बच गए। वे ऐसे पहले पुरुष थे। तब वहां की रानी ने उनसे उसके साथ ही गृहस्थ जीवन में रहने का आग्रह किया। मत्स्येन्द्रनाथ ने रानी की बात मान ली और स्त्री राज्य में गृहस्थ के रूप में रहने लगे।

जब इस बात की जानकारी गोरखनाथ को हुई, तब वे अपने गुरु को छुड़ाने के लिए स्त्री राज्य गए। गोरखनाथ ने स्त्री वेश पहना ताकि वे पकड़ में न आ सके। अपनी योग शक्ति की वजह से वे भी श्राप से बच गए। गोरखनाथ अपने गुरु से मिले और उन्हें इस बात का बोध करवाया कि सांसारिक जीवन में रहकर मृत्यु का ही अनुभव करेंगे। अमृत का अनुभव करने के लिए उन्हें गृहस्थ जीवन और स्त्री को त्यागना होगा। गोरखनाथ ने उन्हें समझाया कि अपनी इंद्रियों पर काबू पाकर ही वे अपनी योग शक्तियां बढ़ा सकते हैं। इस तरह शिष्य गोरखनाथ ने अपने गुरु मत्स्येन्द्रनाथ को स्त्री राज्य से मुक्त करवाया। चूंकि उन्होंने अपने गुरु को बचाया था। इसलिए जल्दी ही उनका वैभव चारों ओर फैल गया। वे अपने गुरु से ज़्यादा प्रसिद्ध हुए।

इस तरह नारित्व का त्याग नाथ परंपरा का सबसे अहम पहलू है। उन्हें योगिनी भी माना जाता है जो बहुत शक्तिशाली होती हैं, लेकिन ख़तरनाक भी। इसलिए नाथ पंथी और योगिनियों के बीच एक बड़ा और स्पष्ट विभाजन पाया जाता है। इनमें कुछ विचार आज भी प्रचलित हैं। नाथ परंपरा आसनों से जुड़ी हुई है। सबसे पुराने आसन में से कुछ आसन गोरखनाथ की लिखी पुस्तकों में पाए जाते हैं। ब्रह्मचर्य से प्राप्त की गई जादुई शक्तियों को सिद्ध कहते हैं। गोरखनाथ इस धारणा से भी जुड़े हुए हैं। इस तरह हम देखते हैं कि नाथ परंपरा का हिंदू और भारतीय परंपरा में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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