जगन्नाथ मंदिर कहता है,‘नश्वर है ये दुनिया’

जगन्नाथ मंदिर कहता है, ‘नश्वर है ये दुनिया’

इस मंदिर से जुड़ा एक बहुत महत्वपूर्ण सिद्धांत यह कि‘दुनिया नश्वर है’। इसलिए हर साल नया रथ बनाया जाता है और रथ यात्रा के बाद उसे तोड़ दिया जाता है।

हर साल ओडिशा के पुरी में बारिश से ठीक पहले एक विशाल रथयात्रा आयोजित की जाती है। तीन बड़े-बड़े रथों में श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलभद्र और छोटी बहन सुभद्रा के साथ जगन्नाथ मंदिर से निकलकर एक बड़े रास्ते से होकर गुंडिचा नामक छोटे मंदिर में जाते हैं। यह परंपरा हज़ारों सालों से चली आ रही है। आखिर इसके पीछे क्या कथाएं हैं?

कहते हैं कि श्रीकृष्ण मधुवन को छोड़कर मथुरा अक्रूर नामक एक सारथी के साथ अकेले ही गए थे। उसके बाद वे गोकुल कभी लौटकर नहीं आए। इसका अर्थ है कि वहां से उनकी भागवत कथा समाप्त हुई और महाभारत कथा शुरू हुई। लेकिन उनकी गोपिकाओं, उनकी माता यशोदा और राधा सबकी सदैव इच्छा थी कि कृष्ण अपने घर लौट आए।

श्रीकृष्ण अपने घर लौट आए, इसी इच्छा की संकल्पना हम पुरी रथयात्रा में करते हैं। लेकिन कृष्ण केवल बलभद्र के साथ नहीं लौटते, बल्कि अपनी बहन सुभद्रा को भी साथ लेकर आते हैं। सुभद्रा यशोदा की बेटी थी, जिसे कंस ने मारने की कोशिश की थी और जिसका जन्म होते ही उसकी कृष्ण के साथ अदला-बदली हुई। इस प्रकार दो भाई अपनी बहन को लेकर फिर से वृंदावन आए। इस तरह यह महाभारत से भागवत की यात्रा है। ऐसा विश्वास है कि इसी से रथ यात्रा की परंपरा की शुरुआत हुई।

जगन्नाथ पुरी को मुख्यतः श्रीकृष्ण से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन यदि हम ओडिशा जाए तो वहां कुछ लोगों का मानना है कि जगन्नाथ स्वयं नारायण हैं। इस प्रकार वे अवतार ही नहीं, पर-अवतारी भी हैं। वे विष्णु के रूप हैं, जबकि बलभद्र शिवजी के रूप। इन दोनों के बीच में सुभद्रा के रूप में शक्ति खड़ी रहती हैं।

वैष्णव परंपरा के लोगों का मानना है कि शुरू में श्रीकृष्ण को बीच में रखा जाता था। लेकिन आंधी और तूफ़ान की आवाज़ से सुभद्रा डर गई और इसलिए उन्हें दोनों भाइयों के बीच प्रतिष्ठापित किया जाने लगा।

कई लोगों का मानना है कि श्री जगन्नाथजी ना स्त्री रूप हैं, ना पुरुष। इसलिए जगन्नाथजी ने राम-जन्म के पहले कौशल्या का रूप लिया ताकि राम का जन्म कौशल्या को पीड़ा हुए बिना हो सके। वैसे ही कृष्ण जन्म के पहले भी जगन्नाथजी ने देवकी का रूप लिया। इसीलिए भगवान जगन्नाथ को‘पुरुषोत्तम’ कहा गया है।

जगन्नाथ पुरी की परंपरा ओडिशा को जोड़ती है। कहते हैं कि इस मंदिर पर एक दर्जन से भी ज़्यादा बार आक्रमण हुए थे। कई आक्रमणकारियों ने मंदिर के भीतर जाकर मूर्तियों को नष्ट-भ्रष्ट करने की कोशिश भी की। लेकिन ऐसा होते हुए भी रथ यात्रा की परंपरा बहुत ही प्रभावशाली और शक्तिशाली बनी रही। भक्ति परंपरा के कारण ओडिशा में धर्मभाव भी बना रहा।

पुरी के जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में किया गया था। इस मंदिर से जुड़ा एक बहुत महत्वपूर्ण सिद्धांत यह कि‘दुनिया नश्वर है’। इसलिए हर साल नया रथ बनाया जाता है और रथ यात्रा के बाद उसे तोड़ दिया जाता है। बाकी मंदिरों में जहां एक बार प्रतिमा की प्रतिष्ठापना होने पर वह हमेशा के लिए स्थाई हो जाती है, लेकिन जगन्नाथ पुरी के मंदिर में हर बारह साल में भगवान की नई मूर्तियां रखी जाती हैं। इस तरह इस मंदिर की रस्में पुनर्जन्म को दर्शाती हैं, जो हिंदू परंपरा का आधार स्तंभ है।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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