युवाओं के फेवरेट पियूष मिश्रा और इनके लेख की खासियत

पीयूष मिश्रा की कविताओं और गीतों ने युवाओं को नई राह दिखाई

प्रियकांत से पीयूष मिश्रा कैसे बनें, इसकी कहानी बताते हुए वो, उन सभी मीडिल क्लास परिवार के बच्चों की कहानी कह जाते हैं, जो खुद को बेचारगी में तलाश रहे हैं या तलाश चुके हैं।

आरंभ है प्रचंड बोले मस्तकों के झुंड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो,
आन बाण शान या कि जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो…

ये गीत तो आपने ज़रूर सुना होगा। यह गीत ‘गुलाल’ फिल्म का है। इसे लिखा और गाया है पीयूष मिश्रा ने। पीयूष मिश्रा का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियार में हुआ था। उन्होनें थियेटर की शुरुआत, दिल्ली के मंडी हाउस से की थी। उन्होंने देश के सबसे फेमस थियेटर ‘इंस्टीट्यूट एनएसडी’ से थियेटर की डिग्री ली और फिर वहां से मुंबई पहुंचें। एनएसडी में उन्हें ‘संताप त्रिवेदी’ और ‘हैमलेट’ के नाम से भी जाना जाता था। मुंबई जाने से पहले उन्होंने दिल्ली में कई फेमस स्टेज शो किये, जिससे उन्हें काफी लोकप्रियता मिली।

उनकी पहली फिल्म का नाम ‘दिल’ था। यह फिल्म 1998 में रिलीज़ हुई थी। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक, कई फिल्मों में काम किया। लेकिन, उन्हें असली पहचान मिली विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘मकबूल’ से। इस फिल्म में उन्होंने काका का रोल निभाया था। इसके बाद उन्होंने ‘गुलाल’ और ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ जैसी फिल्मों में भी काम किया।

एक अभिनेता होने के अलावा, वे स्क्रिप्ट राइटर, सिंगर और म्यूजिक कंपोजर भी हैं। उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं, जिसमें प्रमुख हैं, कुछ इश्क किया कुछ काम किया, तुम मेरी जान हो रजिया बी, मेरे मंच की सरगम आदि। उन्होंने ‘तुम्हारी औकात क्या है पीयूष मिश्रा’ नाम से अपनी ऑटोबायोग्राफी भी लिखी है। ऑटोबायोग्राफी में उन्होंने ग्वालियर की गलियों से निकलकर, दिल्ली के मंडी हाउस होते हुए, मुंबई पहुंचने तक के अपने सफर के बारे में बताया है। इस लेख में हम पीयूष मिश्रा को करीब से जानेंगे।

‘कुछ इश्क किया कुछ काम किया’ में है ज़िंदगी का मतलब

“वो काम भला क्या काम हुआ, 
जिस काम का बोझा सर पे हो,
वो इश्क़ भला इश्क़ हुआ, 
जिस इश्क़ का चर्चा घर पे हो”

ये पंक्तियां पीयूष मिश्रा की सबसे फेमस किताब ‘कुछ इश्क किया कुछ काम किया’ की हैं। इस किताब में मूलरूप से कविताएं ही हैं। इस किताब की सभी कविताएं इंसान की ज़िंदगी के बारे में कई कहानियां कहती हैं। इसमें जीवन का हर वो पहलू है, जिसे इंसान कभी-न-कभी जीता है। इस किताब में जीवन के सभी रंग हैं जैसे इश्क का मौसम, जिंदगी के विभिन्न के पड़ाव आदि। इस किताब की कविताओं को पढ़ने से पॉजिटिव एनर्जी मिलती है। उनकी लिखी कविताओं की सबसे खास बात यह है कि ये कविताएं कहीं-न-कहीं हमारे जीवन की परछाई जैसी लगती हैं। किताब में सबसे पहली कविता ‘इश्क’ पर और अंतिम कविता ‘ऑपेरा इश्क के देवताओं में से एक लैला-मजनू’ पर लिखी गई है। किताब को पढ़ते हुए लगता है, मानो लेखक खुद सामने बैठकर किताब में लिखी हर कविता हमें सुना रहे हों।

‘तुम्हारी औकात क्या है पीयूष मिश्रा’ में एक बेबस बच्चे का है ज़िक्र

यह किताब पीयूष मिश्रा की आत्मकथा है। इसमें उन्होंने अपने जीवन के सभी पहलूओं के बारे में बताया है। वे प्रियकांत से पीयूष मिश्रा कैसे बनें, इसकी कहानी बताते हुए वो उन सभी मीडिल क्लास परिवार के बच्चों की कहानी कह जाते हैं, जो खुद को बेचारगी में तलाश रहे हैं या तलाश चुके हैं।

प्रियकांत एक ऐसा बच्चा होता है, जो हमेशा खुद को डरा हुआ पाता है। इस किताब में उन्होंने अपनी कहानी बताते हुए उन सभी लोगों की कहानी कह दी है, जो किसी न किसी वजह से बचपन से लेकर बुढ़ापे तक, खुद को ढूंढने के लिए संघर्ष करते रहते हैं। इसके माध्यम से उन्होंने उन सभी लोगों को एक नई राह भी दिखा दी है, जिन्हें खुद की तलाश करनी है। इस किताब से हमें जो सबसे बड़ी सीख मिलती है, वो यह है कि अगर आपके अंदर लगन है, तो आपको मंज़िल मिल ही जाएगी, बस दिल से प्रयास करते रहें। विफलता से घबराने की ज़रूरत नहीं है।

‘गुलाल’ फिल्म के गीत में युवाओं की ज़िंदगी की है झलक

गुलाल फिल्म 1999 में रिलीज़ हुई थी। वैसे तो, इस फिल्म की कहानी, यूनिवर्सिटी की राजनीति के आस-पास ही घूमती रहती है, लेकिन इसमें समाज के हर पहलू को भी दिखाया गया है। फिल्म के गीत में देश के हालात और जवान लोगों के बारे में सब कुछ बताया गया है।  फिल्म के के गीत लिखे हैं पीयूष मिश्रा ने, साथ ही उन्होंने फिल्म में एक्टिंग भी की है।

“इस मुल्क ने हर शख्स को जो काम था सौंपा,
उस शख्स ने उस काम की माचिस जला के छोड़ दी” 

इन दो पंक्तियों में उन्होंने देश के हालात के बारे में काफी कुछ बयां कर दिया है। इन दोनों पंक्तियों को पढ़कर ऐसा लगता है, जैसे किसी ने भारत के लोकतंत्र की गहरी समीक्षा करने के बाद, इसे लिखा हो। वहीं ‘आरंभ है प्रचंड’ गीत को सुनते ही हम एनर्जी से सराबोर हो जाते हैं। ये पीयूष मिश्रा की लेखनी की ही ताकत है कि वो कम शब्दों में ही इतना कुछ कह जाते हैं।

इस लेख में हमने पीयूष मिश्रा को जानने के साथ ही उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में भी जाना। इसके साथ ही हमनें उनकी लेखनी की ताकत के बारे में भी बताने का प्रयास किया है।

लेखक, कवियों और उनकी खास रचनाओं के बारे में जानने के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।

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