भरा पूरा परिवार

भरा पूरा परिवार

आखिर वह दिन भी आ ही गया, जिस दिन रोमिला का घर में अंतिम दिन था। अनिल सिन्हा पूरी तरह स्वस्थ हो चुके थे। देखभाल के खर्च और रोमिला की सैलरी उनका बेटा ऑनलाइन दे चुका था।

रिटायरमेंट के बाद अनिल सिन्हा का अधिकतर समय घर में ही बीतता था। उम्र के आखिरी पड़ाव में तबीयत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई, तो विदेश में रह रहे बेटे-बहू ने देखभाल के लिए नर्स का इंतजाम कर दिया।

32 साल की नर्स रोमिला सुबह 7:00 बजे आती और शाम को 7:00 बजे चली जाती। वह बेहद विनम्र और जिंदादिल महिला थी। उसके पति कुछ साल पहले सड़क दुर्घटना में चल बसे थे। घर में केवल बुजुर्ग सास-ससुर और एक दस साल की बेटी थी।

रोमिला की देखभाल और दवाइयों के असर से अनिल जी की तबीयत में सुधार होने लगा। बेटा रोज शाम को वीडियो कॉल कर के, उनका हाल-चाल पूछकर अपना उत्तरदायित्व निभा लेता था। जैसे-जैसे अनिल जी की तबीयत सुधार में आ रहा था, वैसे-वैसे वो मन ही मन उदास भी हो रहे थे। इसकी वजह थी स्वस्थ होने के बाद फिर उसी अकेलेपन को झेलना

अनिल चाहते थे रोमिला उनके पास रहे, लेकिन वह नर्स नहीं होममेड थी। उसके जाने के ख्याल भर-से बुढ़ापे का अकेलापन उनकी बेचैनी को बढ़ा देता।

आखिर वह दिन भी आ ही गया जिस दिन रोमिला का अनिल के घर में अंतिम दिन था। सुबह से ही अनिल जी का दिल भारी था। उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था जैसे अपनी बेटी को विदा कर रहे हों।

रविवार था, सो शान्वी (नर्स की बेटी) भी रोमिला के साथ थी। शनिवार को उसके लिए लाए ड्रेस, चप्पल, खिलौने और मिठाई बड़े प्यार से दुलार करते हुए अनिल जी ने उसे थमाया। शान्वी झिझकी और अपनी मम्मी की तरफ देखा। मम्मी की नज़रों से हां का इशारा मिलते ही उसने सामान ले लिया।

‘इसमें क्या है अंकल जी?’ रोमिला ने पूछा।

‘तुम्हारे लिए सूट’, अनिल जी ने कहा।

‘लेकिन, अंकल जी इसकी क्या जरूरत थी?’

जरूरत नहीं थी बेटा। यह तो बस एक बूढ़े पिता का अपनी बेटी के लिए प्यार समझो, यह कहते हुए अनिल जी ने आशीर्वाद भरा हाथ रोमिला के सिर पर फेरा।

यह देखकर रोमिला की आंखों में आंसू आ गए।

सब सामान उठाकर दोनों मां-बेटी जाने को तैयार हुईं, तो अचानक रोमिला ठहरी और मुड़कर अनिल जी को देखा। उनकी आंखों में भी आंसू थे। रोमिला चलकर अनिल जी के पास आई और उनके गले लग गई।

यह शायद संसार का सबसे सुंदर दृश्य था।

रोमिला ने अपने पर्स से अपना कार्ड निकाला और अनिल जी को देते हुए कहा, अंकल जी बीमार वृद्धों की देखभाल करना मेरी जॉब है। किसी हॉस्पिटल में नौकरी करने की बजाय बुजुर्गों की देखभाल कर के मैं अधिक पैसे कमा लेती हूं।

इस नौकरी से मुझे दो फायदे हुए हैं एक तो पति के जाने के बाद मजबूत आर्थिक बल मिला और दूसरा आप जैसे बड़ों का प्रेम और आशीर्वाद।

जितने भी अकेले वृद्धों की मैंने देखभाल की है उनसे पारिवारिक रिश्ते बन गए हैं। सभी सुबह अपने-अपने जरूरी काम निपटा कर मेरे घर आ जाते हैं और आपस में खूब हंसी-मजाक, बातें कर के पूरा दिन बिताकर शाम को चले जाते हैं। इस तरह सभी अकेले बुजुर्ग आपस में अपने सुख-दुख बांटकर अपना भरा-पूरा परिवार बनाए हुए हैं। क्या आप भी इस परिवार का हिस्सा बनेंगे ?

अनिल जी ने कार्ड हाथ में लिया और फिर से रोमिला को जी भरकर आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘अब मुझे लग रहा है जब तक मेरी जिंदगी है तब तक मुझे अकेले नहीं रहना पड़ेगा।’ शान्वी ने इठलाते हुए कहा ‘मैं किसी को अकेला नहीं छोड़ती।’ सब हंस पड़े।

X

आनंदमय और स्वस्थ जीवन आपसे कुछ ही क्लिक्स दूर है

सकारात्मकता, सुखी जीवन और प्रेरणा के अपने दैनिक फीड के लिए सदस्यता लें।

A Soulful Shift

Your Soulveda favorites have found a new home!

Get 5% off on your first wellness purchase!

Use code: S5AVE

Visit Cycle.in

×