कवि चंदबरदाई की रचनाओं से मिलती हैं बहुत सी सीख

हिंदी के पहले कवि चंदबरदाई की रचनाओं से मिलती है ये सीख

साहित्य हर सदी का हिस्सा रहा है। चाहे इतिहास की बात करें या वर्तमान की। भले ही आज की मॉडर्न दुनिया में लोग साहित्य से कट रहे हैं, बावजूद इसके कुछ लोग हैं, जो इस विरासत को आज भी संभाले हुए हैं। खैर, इतिहास के पन्नों को पलटें, तो पता चलता है कि हिंदी के पहले कवि चंदबरदाई हिंदू सम्राट पृथ्वी राज चौहान दोस्त थे। ये वही थे जिनकी कविता मत चूको चौहान... सुनकर पृथ्वी राज चौहान ने बाण चला निशाने पर लगाया था। इस इतिहास के साथ इनकी रचनाओं के बारे में जानने के लिए पढ़ें ये लेख।

इससे पहले कि चंदबरदाई (Chandbardai) की रचनाओं व उससे मिलने वाली सीख के बारे में जानें, पहले इनके जीवन के बारे में समझ लेते हैं। चंद पृथ्वी राज चौहान के शासन काल में राजकवि होने के साथ महाकवि के रूप में इन्हें दूर-दूर तक लोग जानते थे। महाकवि चंदबरदाई भारत के पहले हिंदी कवि थे। इनका जन्म पाकिस्तान लाहौर में हुआ था। आइए, इस लेख में हम इनकी रचनाओं और उससे मिलने वाले सीख के बारे में जानते हैं। चंद की पहली रचना पृथ्वीराज रासो को हिंदी की पहली रचना का गौरव हासिल है। ये षड़भाषा के साथ व्याकरण, काव्य, नाटक, पुराण, साहित्य, छंदशास्त्र और ज्योतिष में काफी माहिर थे।

खुद का मजाक उड़ने पर लक्ष्य से न भटकने की मिलती है सीख (Khud ka mazak udane par lakshya se na bhatakne ki milti hai sikh)

तौ पुनि सुजन निमित्त गुन, रचिए तन मन फूल।
जूं का भय जिय जानिकै, क्यों डारिए दुकूल॥

चंदबरदाई के इस काव्य से हमें यही सीख मिलती है कि किसी के मज़ाक उड़ाने से हमें लक्ष्य से नहीं भटकना चाहिए। इस काव्य का अर्थ ये है कि नेक इंसान इस रचना से खुश ही होंगे। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार इंसान जूंओं के डर के कारण अपने दुपट्टे को नहीं फेंकते हैं, ठीक उसी प्रकार बुरे लोगों के मज़ाक उड़ाने भर से कवि अपनी रचना करने से पीछे नहीं हट सकता है। लक्ष्य को पाने की सोच हो तो इस काव्य को हम अपने जीवन में भी लागू कर सकते हैं। वहीं सफलता हासिल करने की प्रेरणा ले सकते हैं।

दुनिया की परवाह किए बिना कर्म कर जीने की सीख (Duniya ki parwah kiye bina karm kar jine ki sikh)

सरस काव्य रचना रचौं, खलजन सुनिन हसंत।
जैसे सिंधुर देखि मग, स्वान सुभाव भुसंत॥

इस रचना के ज़रिए महाकवि चंदबरदाई यही सीख देते हैं कि दुनिया की परवाह किए बगैर अपने कर्मों को करते रहना चाहिए। इस काव्य के भाव की बात करें, तो चंद कहते हैं मैं एक महाकाव्य की रचना कर रहा हूं। इस को सुनते ही बुरे व पापी लोग हंसेंगे और मज़ाक उड़ाएंगे, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार रास्ते में चलते हुए हाथी को देखते ही कुत्ते भौंकने लगते हैं। इससे हम यही सीख ले सकते हैं कि लोगों को कर्म करते रहना चाहिए, उसके बारे में दूसरे लोग क्या सोचते हैं, वो मज़ाक उड़ाते भी हैं तो हमें उसपर ध्यान नहीं देना चाहिए।

इस काव्य से पर्सनालिटी डेवलप्मेंट की मिलती है सीख (Iss kavya se Personality Development ki milti hai sikh)

समदरसी ते निकट है, भुगति-भुगति भरपूर।
विषम दरस वा नरन तें, सदा सरबदा दूर॥

चंदबरदाई के इस काव्य से व्यक्तित्व विकास को सुधारने की सीख मिलती है। इस काव्य के भाव का पता करें, तो हमें पता चलता है कि जो लोग सभी लोगों को समान नज़र से देखते हैं, इंसान की कद्र करने के साथ उनके प्रति समान भाव रखते हैं, उनको भोग के साथ मोक्ष दोनों ही चाहे बिना ही मिल जाता है। वहीं वैसे लोग जो दूसरों को देखकर भेद-भाव करते हैं। उन्हें इस संसार से कभी भी मुक्ति हासिल नहीं होती है। इसलिए ज़रूरी है कि इंसान दूसरे इंसान के प्रति भाईचारे से रहे, उन्हें देखकर जलन आदि की भावना न रखे।

चंदबरदाई की हिंदी वर्तमान हिंदी की तुलना में काफी जटिल थी, बावजूद इसके इनके काव्य लोगों में जोश भरने का काम करते थे। इनकी रचना आज भी बच्चे-बच्चे की जुबां पर है…

मत चूको चौहान से काव्य की शक्ति का चलता है पता (Mat Chuko Chauhan ke kavya ki shakti ka chalta hai pata) 

‘चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान।।

चंदबरदाई पृथ्वी राज चौहान के अच्छे दोस्त होने के साथ उनके दरबार के मुख्य कवि का स्थान रखते थे। चंद का वीर रस का काव्य आज भी युवाओं से लेकर बच्चे-बच्चे की जुबां पर है। वहीं लोगों में जोश भरने का काम करता है। इस काव्य को पूरा समझने के लिए हमें इतिहास को जानना होगा। बात उस समय की है जब मोहम्मद गौरी ने धोखे से सम्राट पृथ्वीराज चौहान को बंधक बना लिया था, उनकी आंखे निकाल ली और खूब यातनाएं दी, ताकि सम्राट टूट जाएं। इस दौरान उनके साथ चंदबरदाई भी थे। दिमाग से शातिर चंद ने काव्य की रचना की। एक ऐसा काव्य जिसे सिर्फ कान से सुनकर पृथ्वी राज चौहान ने शब्द भेदी बाण मारकर इतिहास रच दिया था। मोहम्मद गौरी को जब ये पता चला तो उन्होंने राज्य से सामने शब्द भेदी बाण का तमाशा दिखाने का फरमान जारी किया। गौरी जानता था कि सम्राट देख नहीं सकते, भला बाण/तीर क्या ही चलाएंगे।

तमाशे का दिन आ गया, चंद बरदाई ने भरी भीड़ में कविता सुनाई, जिसके बाद सम्राट ने बाण चलाया। चंद ने कहा, ‘चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण। ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान।।… इस बात को सुनते ही पृथ्वी राज चौहान ने तीर चलाया जो गौरी की छाती के आर-पार हो गया।

खैर, इतिहास के इस खास वाक्ये से हमें यही पता चलता है कि काव्य और रचनाओं में अद्भुत शक्ति है। इसकी कोई सीमा नहीं है। ऐसे ही लेख को पढ़ने के लिए सोलवेदा के अन्य लेख को भी ज़रूर देखें।

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