पवित्र जल

पवित्र जल में स्नान करने से मिलता है मोक्ष

पवित्र स्नान के लिए भारत की कुछ सबसे पवित्र और पूजनीय तीर्थ नदियों के पीछे की कहानी की एक खोज।

माना जाता है कि भगवान का नाम लेते हुए पवित्र जल (Holy water) को तीन बार पीने से इंसान शुद्ध हो जाता है। यह आचमन का संस्कार है। फिर, एक जलांजलि संस्कार होता है, जिसमें मुठ्ठी में पानी भरकर भगवान को अर्पित किया जाता है, ताकि पानी की हर बूंद पवित्र हो सके। जलजपम में किसी झरने के पानी की धारा के नीचे खड़े होकर तपस्या की जाती है, ताकि सिर पर गिरने वाले पानी की तेज धार से नीचे खड़े रहने वाले व्यक्ति के दिमाग में आने वाले बुरे विचार दूर हो जाएं।

हिंदू रीति-रिवाज़ में कोई भी अनुष्ठान पानी के बगैर नहीं होता। जल अर्थात् पानी को हिंदू संस्कृति में शुद्ध और कीमती तत्व मानकर उसकी तुलना शहद, औषधि और यहां तक कि अमृत से भी की जाती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार जल यदि बहता हुआ अर्थात नदी का जल हो, तो वह जल विशेष रूप से शुद्ध माना जाता है। बहते पानी को पर्यावरण में नेगिटिव आयन बढ़ाने के लिए जाना जाता है, जो लोगों के स्वास्थ्य में सुधार करता है। ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं यदि हिंदुओं का मानना है कि पवित्र नदियों में पवित्र स्नान करने से मोक्ष प्राप्त करने के मार्ग पर वे आगे बढ़ सकते हैं।

‘सोलवेदा’ ने पवित्र स्नान के लिए भारत की कुछ सबसे पवित्र और पूजनीय तीर्थ नदियों के पीछे की कहानी को खोजा है।

हरिद्वार (Haridwar) 

उत्तर भारत में स्थित हरिद्वार में एक महत्वपूर्ण लैंडमार्क- ‘हर की पौड़ी’ है। इसे हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है। गंगा नदी के तट पर बसे इस जगह के बारे में कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन के बाद देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत के घड़े को लेकर युद्ध हुआ, तो गरुड़ भगवान (एक पौराणिक पक्षी) जो अमृत का घड़ा लेकर जा रहे थे, उसमें से अमृत इसी स्थल पर गिर गया था। इसी वजह से ऐसा माना जाता है कि गंगा में डुबकी लगाने वाले भक्तों की इम्युनिटी और हेल्थ को मजबूती मिलती है।

‘हर की पौड़ी’ का शाब्दिक अर्थ है ‘भगवान शिव का चरण’। एक और किंवदंती यह है कि भगवान विष्णु (संरक्षक) और भगवान शिव (विध्वंसक) एक बार यहां ब्रह्मकुंड आए थे। भक्तों का मानना है कि तालाब के पास एक पत्थर की दीवार पर बना बड़ा पदचिह्न भगवान विष्णु का है। यह भी कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा भी यज्ञ करने के लिए तालाब पर आए थे। इसलिए, हर की पौड़ी में डुबकी को और भी पवित्र माना जाता है, क्योंकि यहां त्रिमूर्ति की ऊर्जा (दिव्य त्रिमूर्ति) मौजूद है, जो हमारे माइंड, बॉडी और सोल (आत्मा) को बैलेंस करने में सहायक हैं।

सूरत (Surat) 

गुजरात के सूरत शहर को पहले ‘सूर्यपुर’ अर्थात ‘सूर्य का शहर’ भी कहा जाता था। किंवदंती है कि इसका नाम संभवत: इसकी भूमि में बहने वाली ताप्ती नदी से लिया गया है। हिंदू पुराणों के अनुसार ताप्ती सूर्य की पुत्री हैं। पुराणों के अनुसार सूर्य ने अपनी गर्मी की तीव्रता से खुद को बचाने के लिए ताप्ती की रचना की। अब हर सूर्य ग्रहण में वह अपनी बेटी से मिलने आते हैं। इसलिए, सूर्य ग्रहण के दौरान ताप्ती नदी में पवित्र स्नान करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।

अयोध्या (Ayodhya) 

अयोध्या शहर किसी परिचय का मोहताज नहीं है। यह स्थान भगवान राम की जन्मस्थली और हिंदू महाकाव्य महाभारत की सेटिंग के रूप में जाना जाता है। अयोध्या को भारत के सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। यह शहर हिंदू शास्त्रों के अनुसार पवित्र नदी सरयू भी यहां से बहती है। इसलिए पवित्र स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पौराणिक कथा है कि राजा दशरथ (भगवान राम के पिता) ने सरयू नदी के किनारे गलती से श्रवण कुमार (एक समर्पित पुत्र जो अपने बूढ़े और अंधे माता-पिता को तीर्थ यात्रा के लिए एक तराजू पर अपने कंधों पर बैठा कर ले जा रहा था) की हत्या कर दी थी। दशरथ ने अपनी नादानी के लिए श्रवण कुमार के माता-पिता से माफी मांगी, लेकिन बूढ़े माता-पिता का दर्द असहनीय था। इसलिए, उस बूढ़े जोड़े ने राजा को पुत्र शोक का शाप दिया। जैसा कि भाग्य में लिखा था, राजा दशरथ को जब अपने सबसे बड़े पुत्र भगवान राम को वनवास भेजने पर मजबूर होना पड़ा, तो उन्हें अत्यधिक दु:ख हुआ था। इससे पहले कि वह अपने बेटे को फिर कभी देख पाते, राजा की मृत्यु हो गई। बाद में अयोध्या लौटने पर भगवान राम ने सरयू के जल में समाधि लेने से पहले, अपने दोनों पुत्र लव और कुश के बीच राज्य का विभाजन कर दिया। इसलिए, भक्त आज भी यह मानते हैं कि इस नदी में पवित्र स्नान करने से उनके पाप धुल सकते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।

कुदालसंगम/कुडलसंगम (Kudalasangama)

कुदालसंगम, कर्नाटक का एक टेम्पल टाउन है, जो संगमनाथ के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इसे देश के सबसे शुभ शिवलिंग मंदिरों में से एक माना जाता है। क्योंकि यहां देवता एक स्वयंभू, एक स्व-जन्म लिंग के रूप में हैं, जो एक वेयोनी (शक्ति/फेमिनाइन एनर्जी फॉर्म) पर टिका है। शिव-शक्ति मिलन के इस गर्भगृह में प्रवेश करने से पहले भक्त कुदालसंगम में पवित्र स्नान करते हैं, जहां कृष्णा और मालाप्रभा नदियां आपस में मिलती हैं। यह भी माना जाता है कि मालाप्रभा नदी की उत्पत्ति मानव जाति को सुरक्षा और भलाई प्रदान करने के लिए हुई थी। इसलिए, भक्त इस संगम में डुबकी लगाना जरूरी मानते हैं।

गंगा सागर (Ganga Sagar)

गंगा सागर, जिसे सागरद्वीप भी कहा जाता है। यह गंगा नदी और बंगाल की खाड़ी का संगम स्थल है। इसके किनारे कपिल मुनि का मंदिर है, जहां मकर संक्रांति के दिन हजारों शिव भक्त एकत्रित होते हैं।

कहा जाता है कि कपिल मुनि भगवान नहीं, बल्कि संत थे। एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान इंद्र ने एक बार राजा सागर के यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया और उसे संत कपिल मुनि के आश्रम (आध्यात्मिक आश्रम) के पास छिपा दिया। राजा सागर ने अपने 60,000 पुत्रों को घोड़ा खोजने के लिए भेजा। आश्रम के पास घोड़े को देखकर पुत्रों ने कपिल मुनि पर उसे चुराने का आरोप लगाया। झूठे आरोप से क्रोधित ऋषि ने उन सभी को जलाकर उनकी आत्मा को नरक में डाल दिया।

हालांकि, राजा के पुत्रों के निर्णय लेने में हुई गलती का पता चलने के बाद कपिल मुनि नरम पड़ गए। गहन ध्यान के माध्यम से ऋषि ने देवी पार्वती से पृथ्वी पर उतरकर राजा के पुत्रों का तर्पण (पवित्र जल के साथ राख मिलाने का अंतिम संस्कार) करने का अनुरोध किया। उन्होंने भगवान शिव से भी अनुरोध किया कि वे गंगा को पृथ्वी पर उतारें, ताकि राजा के बेटों को मोक्ष मिल सके। काम पूरा होने के बाद देवी पार्वती देवलोक लौट गईं, जबकि देवी गंगा पृथ्वी पर ही रह गईं। गंगा के पृथ्वी पर आगमन के दिन को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। इसलिए इस दिन उनके जल में पवित्र स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

प्रयाग (Prayag)

प्रयाग (इसे आम लोग इलाहाबाद के नाम से जानते हैं), को उत्तर भारत में विशेष रूप से 12 साल में एक बार होने वाले कुंभ मेले के उत्सव के लिए जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अद्वैता फिलॉसॉफी के फाउंडर आदि शंकराचार्य ने सभी धर्मों के लोगों को एकजुट करने के प्रयास में कुंभ के आयोजन की शुरुआत की थी। आज भी सभी क्षेत्रों के लोग गंगा, यमुना और  अदृश्य सरस्वती नदियों के त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाते हैं। उनका मानना है कि एकता के विचार के प्रति समर्पित होकर ही वे अपनी आत्मा को सभी पापों से मुक्त कर मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।

भागमंडल (Bhaga Mandala) 

भागमंडल, कर्नाटक के कूर्ग जिले में स्थित एक पवित्र स्थल है, जहां कावेरी, कनिका और (पौराणिक) सुज्योति नदियों का त्रिवेणी संगम स्थल है। इस नदी के तट पर तुला संक्रमण अर्थात संक्रांति उत्सव भी मनाया जाता है। इसके लिए तालकावेरी जाने से पहले तीर्थयात्री इस संगम में पवित्र स्नान करते हैं। परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु के समय उसे संगम का पवित्र पानी दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से मरते हुए व्यक्ति का कष्ट कम होते है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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