बैंगलोर में रहते हुए मैं यहां के आस-पास के खूबसूरत डेस्टिनेशन की खाक छान लेना चाहता था। इसलिए मैंने इस बार कर्नाटक के मैंगलोर के पास स्थित गोकर्ण को अपने अगले सफर के लिए चुना। इस जगह के बारे में मैंने सुना था कि समुद्री तट को पसंद करने वाले लोग और आध्यात्मिक शांति की तलाश करने वाले लोग, यहां काफी संख्या में पहुंचते हैं। यही वजह है कि लोग इसे ‘भारत का छुपा हुआ स्वर्ग’ कहते हैं। मैं भी आध्यात्मिक शांति की तलाश में यहां आ पहुंचा।
गोकर्ण के समुद्री तट पर पहुंचते ही मैंने देखा कि लहरों से छन कर आ रही हवाएं, यहां की प्राकृतिक खूबसूरती के एहसास को काफी ज्यादा बढ़ा रही थी। ये तटीय इलाका पहाड़ों से घिरा हुआ है, जहां पहाड़ के नीचे कुछ रेस्टोरेंट्स भी हैं। ऐसे में समुद्र किनारे स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ उठाते हुए मैंने शांति महसूस की। सबसे अच्छी बात ये रही कि यहां लोगों की संख्या काफी कम थी और वहीं बीच के किनारे गंदगी भी नहीं थी। मन ही मन मैं ये सोच रहा था कि काश, देश के सभी टूरिस्ट डेस्टिनेशन में इसी तरह की सफाई नजर आए।
गोकर्ण बीच से की यात्रा की शुरुआत (Gokarna Beach se ki yatra ki shuruaat)
अपनी यात्रा की शुरुआत करते हुए मैं पहुंचा गोकर्ण बीच। अब तक मैंने जितने भी समुद्री तट देखे थे, ये उन तमाम तटों से अलग था। ऐसा इसलिए क्योंकि इसके समुद्री छोर पर बड़े-बड़े पत्थर देखने को मिले। ये तट काफी लंबा था। यहां आने पर मुझे पता चला कि इस तट की धार्मिक मान्यता भी है। श्रद्धालु यहां डुबकी लगाने के बाद ही महाबलेश्वर मंदिर में पूजा करने के लिए जाते हैं।
भारत के पुराने मंदिरों में से एक ‘महाबलेश्वर मंदिर’ में की पूजा (Bharat ke purane mandiron mein se ek Mahabaleshwar mandir mein ki puja)
जब भी मैं कोई नई जगह जाता हूं, तो वहां के प्रसिद्ध मंदिरों में जाना मेरी पहली पसंद रहती है, क्योंकि मुझे भारत के पुराने मंदिरों को देखना अच्छा लगता है। महाबलेश्वर मंदिर को देखते ही मैंने एक अंदरूनी खुशी महसूस की। मंदिर की काली दीवारें यहां के इतिहास को बयां कर रही थी। पता करने पर जानकारी मिली कि ये मंदिर 14वीं शताब्दी में बनाया गया था। इस मंदिर के निर्माण में द्रविड़ शैली की झलक दिखी। ये यहां के सबसे पुराने मंदिरों में से एक था। इस मंदिर में 6 फीट का विशाल शिवलिंग भी था। इस मंदिर का जिक्र रामायण और महाभारत में भी हुआ है। इतने पुराने मंदिर को देखकर, मैंने यहां के कैंपस में शांति के कुछ पल बिताए।
‘महालसा मंदिर’ में गणपति की पूजा कर मिली शांति (Mhalsa Mandir mein Ganpati ki puja kar mili shanti)
महाबलेश्वर मंदिर के बाद, मैं महालसा मंदिर में गया और गणेश भगवान की पूजा की। यहां मैंने मंदिर के प्रांगण में समय बिताया और मंदिर की भव्यता को करीब से देखा। यहां मुझे आध्यात्मिक शांति का एहसास भी हुआ। यहां पहुंचने पर इस मंदिर से जुड़ी एक कहानी भी जानने को मिली, पता चला कि भगवान गणेश ने इसी जगह पर रावण से आत्मलिंगम ले लिया था। यहां भगवान गणेश की मूर्ति भी है। सालों पुराने इस मंदिर को देखकर आपकी नजरें भी इसकी खूबसूरती से नहीं हटेंगी।
‘मिर्जन किला’ की दीवारों पर जम चुकी थी काई (Mirjan kile ki diwaron par jam chuki thi kayi)
इस सफर में मुझे सबसे खूबसूरत लोकेशन ‘मिर्जन किला’ लगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब मैं यहां पहुंचा तो पुरानी और खंडहर हो चुकी विशालकाय किले को देखकर मैं दंग रह गया। इसकी दीवारों पर काई लग चुकी थी, बावजूद इसके ये काफी अच्छा दिख रहा था। इसके इतिहास के बारे में पता करने पर जानकारी मिली कि इसे 16वीं शताब्दी में नवायथ सल्तनत ने बनाया था। बाद में इस किले पर विजयनगर साम्राज्य ने कब्जा कर लिया था। भले ही ये किला आज के समय में खंडहर हो चुका हो, लेकिन इसकी खूबसूरती में कोई कमी नजर नहीं आती है।
काली चट्टान से घिरा ‘याना गुफा’ है काफी खूबसूरत (Kali chattan se ghira Yana Gufa hai kafi khubsurat)
यहां के खूबसूरत लोकेशन में याना गुफा भी है। जो लोग यहां घुमने और एडवेंचर के मकसद से आते हैं, उनकी भीड़ यहां काफी थी। यहां पर ट्रैकिंग करने, काफी संख्या में लोग पहुंचे थे। यहां मैंने अलग-अलग प्रजातियों के पक्षियों को भी देखा, जो शायद शहरों में कभी देखने को नहीं मिलते। इस जगह के बारे में एक कहानी भी पता चली, लोगों ने बताया कि यहां का भैरवेश्वर शिखर, भगवान शिव और मोहिनी चोटी, देवी पार्वती का प्रतिनिधित्व करती है।
कुडले बीच है काफी शांत (Kudle Beach hai kafi shant)
यहां से मैं निकल गया कुडले बीच की ओर। ये बीच काफी शांत है, इतना शांत है कि मैं लहरों की आवाज़ साफ-साफ सुन पा रहा था। वहीं इसका पानी इतना नीला और साफ था कि मन हुआ कि बस इस नजारे को देखता ही रहूं। इसके आस-पास ही मून बीच और ओम बीच भी है। यहां शाम में डूबते सूर्य को देखने पर ऐसा लगता है जैसे धरती की किसी जेब में सूरज छिप गया हो। काफी कम लोग होने के कारण यह बीच मुझे काफी शांत लगा। ऐसी शांति जिसमें लहरों की आवाज, आसमान में उड़ते हुए पक्षियों की आवाज और मध्यम बहती ठंडी हवा की आवाज भी साफ सुनाई दे रही थी।
इस ट्रिप पर मुझे लोग एडवेंचर स्पोर्ट्स का आनंद लेते, वॉटर बोटिंग करते और ट्रैकिंग पर जाते भी दिखे। लेकिन, मैं जिस मकसद के साथ यहां आया था, वो था यहां के अलग-अलग जगहों को बारीकी से देखना। हर उस जगह पर जाकर मुझे काफी अच्छा लगा। जब भी मैं दोबारा आध्यात्मिकता की तलाश में निकलूंगा तो इस जगह पर ज़रूर आऊंगा। यहां के मंदिरों में समय बिताकर जो सुकून मुझे मिला, वो मेरे अंदर लंबे समय तक रहने वाला है।
फिर मिलते हैं अगले सफर पर, तब तक आप सोलवेदा के सफरनामा को पढ़कर रोमांचक ट्रैवल ब्लॉग का लेते रहें आनंद।