मनाली

प्रकृति को करीब से महसूस करना है, तो जाएं मनाली

होटल की बालकनी से मनाली का नजारा बेहद खूबसूरत नजर आ रहा था। सामने शांत बहती व्यास नदी को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे ये ढलते हुए दिन को अलविदा कह रही हो।

मनाली (Manali) एक ऐसा हिल स्टेशन है, जिसकी बर्फीली वादियों में हर कोई अपनी ज़िंदगी के कुछ पल जरूर गुजारना चाहता है। उन पलों का एहसास करने के लिए आप भी चलिए मेरे साथ यहां की यात्रा पर। मनाली जाने की मेरी यात्रा की शुरुआत हुई दिल्ली से। यह खूबसूरत शहर दिल्ली से लगभग 550 किलोमीटर दूर है। यहां पहुंचने में 13 से 16 घंटे लगते हैं। यहां जाने के लिए मैंने शाम के समय दिल्ली के कश्मीरी गेट से बस पकड़ी, जिसने मुझे अगले दिन सुबह नौ बजे अपनी मंजिल पर पहुंचा दिया। सफर लंबा जरुर है, लेकिन इतना खूबसूरत है कि आपको लगेगा आप कोई हसीन सपना देख रहें हैं। हालांकि, यहां पहुंचने में थकान तो बहुत हो गई, लेकिन उससे कहीं ज्यादा एक्साइटमेंट भी थी। आइए सबसे पहले मैं आपको यहां के इतिहास के बारे में बताता हूं।

मनाली का इतिहास क्या है?

पुराने समय में मनाली के एक मशहूर साधु को ‘मनु अल्वा’ के नाम से जाना जाता था। ऐसा कहते हैं कि साधु ‘मनु’ के नाम पर ही इस जगह का नाम ‘मनाली’ (Manali) रखा गया। एक तरफ यह भारत के बेहतरीन हनीमून स्पॉट के रूप में जाना जाता है। वहीं दूसरी ओर, हिंदू धर्म के लोग पूरे हिमाचल प्रदेश को (Himachal Pradesh) देव भूमि मानते हैं।

यहां पहुंचते-पहंचते थकान के साथ-साथ मुझे काफी जोर की भूख लग चुकी थी। भूख को देखते हुए, थोड़ा ब्रेक लेकर मैं पहुंचा एक रेस्टोरेंट में। रेस्टोरेंट में बैठे-बैठे खाने का इंतजार करते हुए मैंने इस सफर के आगे की तैयारी भी दिमाग में करनी शुरू कर दी थी। खाना खाने के बाद मैं आस-पास घूमने निकल पड़ा। इसके बाद होटल में आराम करने चला गया। नींद खुली तो शाम होने को आई थी। होटल की बालकनी से मनाली का नजारा बेहद खूबसूरत नजर आ रहा था। सामने शांत बहती व्यास नदी को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे ये ढलते हुए दिन को अलविदा कह रही हो।

ऊंचाई से निहारती बर्फीली पहाड़ियों के बीच बसा मनाली भारत के कुछ सबसे खूबसूरत हनीमून स्पॉट्स में से एक है। इस शहर का नाम ज़ेहन में आते ही एक रोमांटिक जगह की तस्वीर बन जाती है। लेकिन, इस जगह की पहचान सिर्फ एक रोमांटिक टूरिस्ट प्लेस की तरह ही नहीं है, बल्कि यह जगह हिंदू धर्म के लोगों के लिए भी विशेष महत्व रखती है।

हिंदुओं के लिए हिडिम्बा देवी मंदिर का महत्व

शहर से थोड़ा ऊपर बसे डुंगरी गांव में माता हिडिम्बा देवी (Hidimba Devi) का मंदिर है। मां हिडिम्बा की पूजा ना सिर्फ मनाली में होती है, बल्कि कुल्लु में भी लोग इनकी पूजा करते हैं। 1553 में बने इस मंदिर को राजा बहादुर सिंह ने बनवाया था। ऐसी मान्यता है कि राजा बहादुर सिंह नौकर हुआ करते थे। लेकिन, मां के दर्शन के बाद उन्हें यहां का राजा बनने का मौका मिला। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु के मछिंदर अवतार ‘साधु मनु’ ने इसी जगह से सृष्टि की रचना दोबारा की थी। हालांकि, इस मंदिर से जुड़ी कोई भी जानकारी किसी के पास नहीं है। किसी को भी नहीं पता है कि इस मंदिर का निर्माण कब और कैसे हुआ।

बेहद खूबसूरत है जोगिनी फॉल

प्रकृति को और करीब से महसूस करने के लिए मैं पहुंचा जोगिनी फॉल। पहाड़ की ऊंचाई से बहते इस नेचुरल वॉटरफॉल की खूबसूरती को शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है। यहां मौजूद शांति आपके मन सुकून तो देगी ही, साथ ही यहां होने वाले जिपलाइन एडवेंचर स्पोर्ट्स से सफर का रोमांच भी बरकरार रहेगा। वहीं, शाम में मॉल रोड (Mall Road) पर पहुंचते ही आधुनिकता और संस्कृति का ऐसा संतुलन दिखेगा कि आप उसके कायल हो जाएंगे। यहां पैदल चलना और आस-पास की गतिविधियों को देखना भी काफी रोमांचित करने वाला है।

रोहतांग में दिखेंगे बर्फ से ढके पहाड़

मनाली के आस-पास की कुछ जगहों पर घूमे बिना, यह सफर अधूरा रह जाता। इसीलिए मैं शहर से बाहर निकलकर चल पड़ा रोहतांग पास (Rohtang Pass) की ओर। ‘रोहतांग पास’ जो यहां से से 50 किलोमीटर की दूरी पर है। इस रास्ते में आता है अटल टनल। रोहतांग पास में पहाड़ों और ग्लेशियर का खूबसूरत नज़ारा दिखता है। यहां पर मैंने माउंटेन बाइकिंग का भी आनंद लिया, जो अधिकतर ट्रैवलर के लिए एक सपने जैसा होता है।

स्वर्ग-सी दिखती है सोलांग वैली

रोहतांग पास के बाद मैं पहुंचा सोलांग वैली। सोलांग वैली देखकर दिल खुश हो गया। यहां पहुंचते ही प्रकृति के कई अद्भुत नजारे देखने को मिले। प्राकृतिक वादियों ने मुझे स्वर्ग-सा एहसास कराया। यहां के नजारे इतने खास हैं कि आपको यहां से वापस जाने का दिल ही नहीं करेगा।

अब यहां घूमने के लिए कोई ऐसी जगह नहीं बची थी और ऑफिस की छुट्टी भी खत्म हो रही थी। वापस होटल पहुंचा और वहां से बैग लेकर चल पड़ा बस स्टैंड की ओर। बस से कुछ दूर चलते ही एक बोर्ड दिखाई दिया, जिस पर लिखा था मनाली में आने के लिए आपका धन्यवाद। इसके बाद जैसे ही मैंने पीछे पलट कर देखा, तो लगा जैसे कुछ छूट रहा है और फिर एक मुस्कुराहट के साथ मेरे मन से अचानक ही निकल पड़ा ‘शुक्रिया मनाली’।

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