खूबसूरत बहते झरने, मनमोह लेने वाली प्राकृतिक खूबसूरती, हमारे गौरवशाली इतिहास को बयां करती प्राचीन धरोहर और सच्ची आस्था से जुड़े खूबसूरत और अद्भूत मंदिर। अगर आप इन सभी चीजों का एक्सपीरियंस एक ही जगह पर करना चाहते हैं, तो चलिए मेरे साथ सतपुड़ा के जंगल (Satpura Range) में बसे पंचमढ़ी (Pachmarhi) की इस यात्रा पर।
दिल्ली से, पहले ट्रेन और फिर कैब लेकर मैं पहुंच गया प्राकृतिक खूबसूरती के बीच बसी पंचमढ़ी की जमीं पर। यहां से प्राकृतिक खूबसूरती को एक्सप्लोर करने की मेरी यात्रा शुरू हो गई। जीप अपनी रफ्तार में चल रही थी और हम कुछ दूर बढ़ चुके थे। इसी बीच बूंदा-बूंदी शुरू हो गई। रिमझिम बारिश ने पंचमढ़ी की खूबसूरती को और बढ़ा दिया।
मुझे प्राकृतिक सुंदरता को निहारते देख जीप के ड्राइवर को रहा नहीं गया। वो पूछ बैठे, जो आप पहली बार पंचमढ़ी आए हैं क्या? मैं सिर हिलाते हुए कहां ‘हां।’ फिर उन्होनें मुझसे पूछा ‘कहां से हैं? ‘क्या करते हैं?’ ये सब जानकारी लेने के बाद चुप हो गए। फिर अचानक बोले आपको पता है, पंचमढ़ी में सिर्फ प्राकृतिक खूबसूरती ही नहीं है। यहां का इतिहास भी बहुत समृद्ध है। साथ ही यहां की पौराणिक कथाएं भी बहुत प्रचलित हैं।
ये सब सुनने के बाद मेरा भी इंट्रेस्ट यहां की कहानी सुनने में जग गया। उन्होंने बताया कि यहां का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। यहीं पर वो गुफा है, जहां पांडवों ने वनवास किया था। तो मैंने कहा फिर “मुझे सबसे पहले वहीं लेकर चलिए।”
ये बातें हो ही रही थी कि तब तक हमारी जीप पांडव गुफा के पास पहुंच गई। इस दौरान ड्राइवर ने बताया पंचमढ़ी का नाम ’पांडव गुफा’ के नाम पर रखा गया है। अब मैं जीप से उतर कर पांडव गुफा (Pandav Caves) के सामने पहुंच चुका था। यहां पहुंचने पर मैंने देखा कि पहाड़ों को काट कर यहां पांच गुफा बनाए गए हैं। हालांकि, पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार इन गुफाओं का निर्माण 10वीं सदी के आस-पास बौद्ध भिक्षुओं ने करवाया था।
पहाड़ों के बीच ठंडे पानी में चलना सारी थकान मिटा देता है
पांडव गुफा के बाद मैं पहुंचा जटा शंकर। यहां पहुंचने के लिए मेन रोड से पहाड़ों के बीच 200 मीटर नीचे उतरना होता है। बड़े-बड़े चट्टानों के बीच से रिसते ठंडे पानी में नंगे पांव चलना सारी थकान को मिटा देता है। यहां प्राकृतिक रूप से बने शिवलिंग की विशेषता है कि इसके ऊपर का चट्टानी भाग कुंडली मारे शेषनाग की तरह दिखता है।
यहां से मैं चल पड़ा अप्सरा विहार की ओर। कुछ देर के बाद ही मैं जंगलों के बीच पगडंडियों पर था। हालांकि, यहां अप्सरा तो नहीं दिखी, लेकिन छोटा-सा पानी का कुंड दिख गया। पास ही में यहां पानी पहाड़ों से गिरता है, जिसे रजत प्रपात (Silver Falls) के नाम से जाना जाता है।
हांडी खोह, जहां से बड़े-बड़े पेड़ भी नज़र आते हैं बौने
दोपहर का खाना खाने के बाद मैं चल पड़ा हांडी खोह की ओर। 350 फीट गहरे इस गड्ढे में देखने पर बड़े-बड़े पेड़ भी बौने नज़र आते हैं। इस दृश्य को देख कर ही शायद कवि भवानी प्रसाद मिश्र के मन में ये बात उठी होगी
सतपुड़ा के घने जंगल।
नींद में डूबे हुए से
ऊंघते अनमने जंगल।
झाड़ ऊंचे और नीचे,
चुप खड़े हैं आंख मीचे,
घास चुप है, कास चुप है
मूक शाल, पलाश चुप है।
बन सके तो धंसो इनमें,
धंस न पाती हवा जिनमें,
सतपुड़ा के घने जंगल
ऊंघते अनमने जंगल।
चलो इन पर चल सको तो
चौरागढ़, जहां हजारों श्रद्धालु चढ़ाते हैं त्रिशुल
हांडी खोह से जब मैं बड़े महादेव जाने के लिए आगे बढ़ा, तो सड़क की चारों ओर हरियाली देखते बन रही थी। रास्ते में चौरागढ़ पहुंचे। यहां जाने के लिए करीब 1250 सीढ़ियां चढ़नी पड़ीं। यहां स्थित शिव मंदिर में महाशिवरात्रि के समय काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और त्रिशुल चढ़ाते हैं।
बड़े महादेव मंदिर, जहां भगवान विष्णु ने भस्मासुर को भस्म किया था
चौरागढ़ से जब मैं आगे बढ़कर मैं तो पहुंचा बड़े महादेव मंदिर। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यहां भगवान शिव के अलावा ब्रह्मा व विष्णु के भी मंदिर हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार ये वही जगह है, जहां भगवान विष्णु ने मोहिनी नाम की अप्सरा का रूप धारण कर भस्मासुर राक्षस का वध किया था।
कहानी के अनुसार भस्मासुर ने कठिन तप करके महादेव को खुश करके वरदान ले लिया कि वह जिसके सिर पर हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा। महादेव ने उसे वरदान दे दिया, वरदान मिलते ही भस्मासुर महादेव को ही भस्म करने चल पड़ा। भगवान शिव कभी इस गुफा में छिपते, तो कभी दूसरी में।
महादेव की यह दशा देख भगवान विष्णु पृथ्वी पर मोहिनी नाम की अप्सरा का रूप धारण करके उतरे। अपनी नृत्य से मोहिनी ने भस्मासुर को मोहजाल में फंसा लिया। भस्मासुर भी मोहिनी के लय में नाचने लगा और अपने सिर पर हाथ रख लिया और भस्म हो गया। बड़ा महादेव से मैं पहुंचा ‘गुप्त महादेव’, जो कुछ ही दूरी पर है। यहां एक बहुत संकीर्ण गुफा में शिवलिंग है। इस गुफा में एक समय पर आठ लोग ही प्रवेश कर सकते हैं। गुप्त गुफा में भगवान शिव का दर्शन करते शाम हो चुकी थी और मैं थक भी चुका था, तो आगे की यात्रा को रोक मैं वापस होटल लौट गया, अगले दिन फिर से वापस आने के लिए।
डचेश फॉल और नीचे गिरते पत्थर
मेरी महादेव की खोज खत्म हो चुकी थी। आज मैं निकल पड़ा था प्राकृतिक खूबसूरती के बीच। हालांकि पहला दिन भी मैंने प्राकृतिक खूबसूरती के ही बीच बिताया था, लेकिन उसमें मंदिरों को देखना खास मकसद था। दूसरे दिन की यात्रा की शुरुआत भी मैंने खुली जीप से ही शुरू की ओर राह पकड़ी डचेश फॉल की।
डचेश फॉल यहां का सबसे दुर्गम पयर्टन स्थल है। हमारी जीप 1.5 किलोमीटर पहले ही रुक गई। यहां से मैं जंगलों के बीच में ढलान पर संभल-संभल कर नीचे उतरते हुए जा रहा था। इस दौरान छोटे-छोटे पत्थर पैर के नीचे आ रहे थे, जिससे लगता था कि अब पिसल कर नीचे गिरे, तब गिरे।
चारों ओर शांति छाई हुई थी। फिर धीरे-धीरे झरने से पानी गिरने की आवाज आने लगी, जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ रहा था, आवाज तेज होती जा रही थी। इस तरह मैं जब डचेश फॉल पहुंचा, तो पेड़ों के बीच छन कर आ रही सूरज की रोशनी यहां की खूबसूरती पर चार चांद लगा रही थी। यह नज़ारा देख कर महसूस हुआ, इसी खूबसूरती को देखने तो यहां आया था।
जंगल में ढलान पर उतरते-उतरते मैं थक चुका था, तो लगा थकान कम करने का सबसे बढ़िया उपाय है ठंडे पानी में नहा लिया जाए। बस फिर क्या था पहुंच गया मैं पानी की मोटी धार के नीचे। पानी की धार के शरीर पर गिरते ही जैसे सारी थकान छूमंतर हो गई। अब मैं सफर की अगली मंज़िल की ओर जाने के लिए तैयार था। ढलान पर चढ़ कर मैं जीप के पास पहुंचा और चल पड़ा बी फॉल की ओर।
बी फॉल, जहां झरने से बहते पानी की आवाज सुरीली है
बी फॉल पंचमढ़ी का सबसे फेमस टूरिस्ट स्पॉट है। इसलिए यहां आप जब भी जाएंगे, तो भीड़-भाड़ मिलेगी। डचेश फॉल की तरह इस फॉल तक पहुंचना खतरनाक नहीं है। यहां सीढ़ियां बनीं हुई हैं। यहां पहुंचकर ठंडे पानी में पैर डुबो कर बैठना सुकून देता है। झरने से बहते पानी की आवाज इतनी सुरीली है कि रोमांचक महसूस होता है।
बी फॉल के बाद मैं पहुंचा पंचमढ़ी झील। यहां बोट का भी आनंद ले सकते हैं। इसके अलावा भी पंचमढ़ी में घूमने के लिए बहुत कुछ है। जैसे धूपगढ़, रीछगढ़ और संतरे के बगान। इस बार थोड़ी लंबी छुट्टी लें और चले जाएं प्राकृतिक खूबसूरती और पौराणिक कथाओं के लिए मशहूर पंचमढ़ी की ओर।