ये एक ऐसा सम्राज्य है, जहां एक सींग वाले गैंडों (One-horned rhinoceros) का राज है। इसके अलावा भी यहां कई प्रकार के जानवर पाए जाते हैं। लेकिन, एक सींग वाले गैंडों का क्या ही कहना। हां, हम बात कर रहे हैं काजीरंगा नेशनल पार्क (Kaziranga National Park) की, जो असम में है। वहीं, दुनिया में टाइगर की सबसे ज्यादा घनत्व भी इसी जंगल में है। लेकिन, यहां टाइगर सबसे महत्वपूर्ण जानवर नहीं हैं। यहां तो एक सींग वाला गेंडा राज करता है। आज आप मेरे साथ चलिए इस खुबसूरत जंगल में, जहां की सुंदरता पूरे विश्व के लोगों को अपनी ओर खींच लाती है।
दुनिया में एक सींग वाले गेंडा की जितनी आबादी है, उसकी 75 फीसदी आबादी काजीरंगा नेशनल पार्क में है। काजीरंगा नेशनल पार्क 430 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। काजीरंगा नेशनल पार्क चार अलग-अलग रेंज में बंटे हुए हैं, जिनके नाम हैं कोहरा, बागोरी, भुरा पहाड़ और आगोरातोली। टूरिस्ट के लिए कोहरा और बागोरी दो सबसे ज्यादा फेमस एरिया हैं। तो मैं इस सफर को शुरू कर चुका हूं, जो बहुत ही खुबसूरत और अमेजिंग है। मैं आज पहुंच चुका हूं बागोरी रेंज में। हमने नेशनल पार्क में घूमने के लिए जीप ले रखी थी। पार्क में घुसते ही हमें पहला गैंडा दिख गया। यहां की खासियत है कि आप पार्क में जैसे ही पहुंचते हैं आपको अपने चारों ओर गैंडा दिखने शुरू हो जाएंगे। गैंडा दिन में अधिकतर समय खुद को ठंडा रखने के लिए पानी में बीताते हैं। काजीरंगा नेशनल पार्क को यूनेस्को 1985 में विश्व हेरिटेज साइट में शामिल किया गया था। यहां गैंडा के अलावा जंगली भैंस, हिरण, हाथी सहित अन्य जानवर देखने को मिल जाएंगे। 1904 में जब भारत के वायसराय लॉर्ड कर्जन अपनी पत्नी मैरी कर्जन के साथ काजीरंगा आए, तो उन्हें एक सींग वाले गैंडा कम दिखे। ऐसे में मैरी कर्जन ने अपनी पति से गैंडे की घटती आबादी को लेकर चिंता जाहिर की और इनकी सुरक्षा के उपाय करने को कहा। इसके बाद वर्ष 1908 में इस क्षेत्र को पूरी तरह से आरक्षित जंगल घोषित कर दिया गया। साथ ही 1950 में इसका नाम बदलकर काजीरंगा नेशनल पार्क कर दिया गया।
नेशनल पार्क में पहुंचते ही मैं यहां के इतिहास और वर्तमान में खो गया। जब मैं यहां पहुंच चुका हूं, तो यहां की कहानी भी बतानी ज़रूरी थी, इसलिए वर्तमान को इतिहास से जोड़ने की कोशिश कर रहा था। एक चीज़ और जो यहां कि खासियत है, वो यह है कि आप यहां एक ही फ्रेम में भारत के 5 सबसे बड़े जानवरों को देख सकते हैं। यहां गेंडा के अलावा हाथी, जंगली भैंसा, बारहसिंगा और बाघ पाए जाते हैं। लेकिन, यहां के राजा पर हमेशा खतरा मंडराते रहता है। काजीरंगा पहुंचते ही जब मैंने यहां के वन्य विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों से बात की, तो उन्होंने बताया कि वे कैसे इन जानवरों को बचाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। पार्क के दक्षिण में कार्बीआंगलांग हिल है, जबकि उत्तर में विशाल ब्रह्मपुत्र नदी है। इसकी वजह से पार्क का बॉर्डर खुला हुआ है। जानवरों को शिकारी से बचाने के लिए हमेशा पेट्रोलिंग करते रहते हैं, इस दौरान उनका सामना कई बार शिकारियों से भी होता है।
काजीरंगा नेशनल पार्क का रंग हर गुजरते दिन के साथ बदलते रहता है। जहां मार्च के बाद पेड़-पौधे में पत्ते नहीं बचते हैं। वहीं, घास सूख जाते हैं, लेकिन जैसे ही बारिश का मौसम आता है, जंगल फिर से हरा-भरा हो जाता है। काजीरंगा कमाल की रिच वाइल्डलाइफ के लिए एक अच्छे प्लेग्राउंड की तरह है। यहां रहने वाले ज्यादातर जानवार शाकाहारी हैं। यहां और चीता भी हैं, लेकिन वे ज्यादातर समय छिप कर रहते हैं और कभी-कबार ही नज़र आते हैं। लेकिन और वन्य अभ्यारणों के उलट यहां रहने वाले टाइगर अपनी मौजूदगी दर्ज करवाते रहते हैं। यहां बाघ भी तीन बड़े शाकाहरियों के साएं में रहते हैं, जिसमें शामिल हैं गैंडा, हाथी और जंगली भैंसा। जब मैं इस नेशनल पार्क में पहुंचा, तो मानसून का मौसम शुरू हो चुका था और पार्क के आसपास मौजूद पहाड़ियों के ऊपर मानसून के बादल मंडराने लगे थे और ये बादल यहां रहने वाले जानवरों को बारिश की वजह से आने वाले बाढ़ के लिए सतर्क करते हैं।
बारिश का मौसम शुरू होने की वजह से कई जानवर ऊंची पहाड़ियों की तरफ जा रहे हैं। क्योंकि काजीरंगा नेशनल पार्क के लिए मानसून सबसे मुश्किल का समय होता है। हर साल यह नेशनल पार्क ब्रह्मपुत्र नदी में आने वाले बाढ़ में डूब जाता है। इसकी वजह से जानवरों को किसी और हिस्से में जाना पड़ता है। जंगली जानवरों के अपने लिए सुरक्षित स्थानों की ओर जाने के साथ ही मैं भी आज का अपना सफर खत्म कर रहा हूं। मेरे साथ इस तरह के और सफर चलने के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा।