हमारी भावनाएं हमें इंसान बनाती हैं, पर कभी-कभी यही भावनाएं हमारे लिए मुसीबत खड़ी कर देती हैं। हम अक्सर भावनाओं के दबाव में आकर कुछ ऐसा कह देते हैं, या कोई ऐसा काम कर देते हैं, जो हमारे लिए मुसीबत बन जाता है। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी होता था, मैं अपनी भावनाओं को कंट्रोल न कर पाने की वजह से हमेशा मुसीबतें खड़ी करती आई हूं। मुझे गुस्सा बहुत आता है और ये गुस्सा मुझे दूसरों के सामने हर बार विलेन बना देता था। पर फिर धीरे-धीरे मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना होगा।
अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए मैंने अपनी ज़िंदगी में कुछ सकारात्मक बदलाव किए, जिससे मैं बहुत हद तक अपनी भावनाओं को बस में करना सीख गई। आज मैं अपने अनुभवों के माध्यम से आपको बताती हूं कि हम अपनी भावनाओं को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं।
क्या इमोशंस आपसे भी कंट्रोल नहीं होते? (Kya emotions aapse bhi control nahin hote?)
हमारी मेंटल हेल्थ के लिए भावनाओं का बाहर आना बहुत ज़रूरी हैं, पर इन भावनाओं को ज़रूरत से ज़्यादा बाहर आने से रोक पाने में हम सब कभी न कभी विफल हो जाते हैं। भावनाओं को नियंत्रित न कर पाना, हमें बहुत सारी मुश्किलों में डाल देता है। खासकर तब जब हम अपनी भावनाओं को किसी ऐसी जगह पर नियंत्रित न कर पाएं, जहां भावनाओं को खुल कर ज़ाहिर करना भी सही नहीं हो। जैसे कि किसी अनजान जगह या व्यक्ति के सामने, या ऑफिस के वातावरण में। इन जगहों पर हमें अपनी भावनाओं को अपने हाथ में रखना बहुत ज़रूरी होता, क्योंकि हम अगर भावनाओं के चलते कुछ ज़्यादा ही व्यक्त कर देते हैं, तो इससे हमारे व्यक्तित्व की छवि पर नकारात्मक असर पड़ता है। भावनाओं को कंट्रोल करना मुश्किल ज़रूर है, पर इन्हें रोकना बहुत ज़रूरी भी है। आगे जानते हैं, हम अपनी भावनाओं को नियंत्रित कैसे कर सकते हैं।
कैसे करें इमोशंस कंट्रोल? (Kaise karein emotions control?)
हमारी भावनाओं का रिमोट हमारे हाथ में ही होता है। लेकिन, हममें से कई लोग वक्त आने पर इस रिमोट का बटन दबाना ही भूल जाते हैं। कुछ उपायों से अपने इमोशंस पर हम कंट्रोल कर सकते हैं। यहां मैं आपको बता रही हूं कि अपनी भावनाओं को नियंत्रित कैसे करें।
सकारात्मकता में है बहुत शक्ति
गुस्सा या दर्द ऐसी भावनाएं हैं, जिन्हें रोक पाना बहुत मुश्किल है, पर सकारात्मक विचारों की शक्ति से या सकारात्मक भावना रखकर हम अपने इन भावों को नियंत्रित कर सकते हैं। अपने भावों को नियंत्रित करने के लिए हमें अपने व्यवहार में कुछ सकारात्मक बदलाव लाने होते हैं, जिससे हम अपनी भावनाओं को नियंत्रित कैसे करें, ये हम जान सकते हैं। जब भी मन में भावनाओं का दबाव महसूस हो, तो खुद को सकारात्मक रखने की कोशिश करें, बुरे या नकारात्मक विचारों को सोचना छोड़ दें।
खुद को अकेला वक्त दें
हम अक्सर गुस्सा आने पर उसी वातावरण में रहकर प्रतिक्रिया दे देते हैं। जिससे हमारे लिए बहुत सारी मुसीबतें खड़ी हो सकती हैं। आपको जब भी किसी बात पर या किसी इंसान पर बहुत गुस्सा आए, तो फौरन वहां से हट जाइए। खुद के लिए थोड़ा सा वक्त मांग लीजिए, और किसी खाली जगह पर एकांत में जाकर, अपने गुस्से की वजह खोजिए। अगर वजह पता है, तो सोचिए कि क्या आपके गुस्सा करने से आपको कोई फायदा होगा। जबाव मिलने पर आप खुद व खुद अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर लेंगे।
मेडिटेशन और योग से होगा फायदा
कहते हैं योग हमारे हज़ार रोग या बीमारियों की दवाई है। सुबह उठकर रोज़ मेडिटेशन और योग करने से हमारा मानसिक स्वास्थ्य (Mental Wellbeing) दुरुस्त रहता है। सोचने-समझने की शक्ति बढ़ती है, साथ ही शारीरिक स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं, और हमें अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में भी बहुत मदद मिलती है। तो फिर आज से ही मेडिटेशन और योग जैसी सकारात्मक आदतों को अपने जीवन का हिस्सा बना लीजिए।
अपनी भावनाओं के बाहर लाने की सही जगह बनाएं
भावनाओं को नियंत्रित करना ज़रूरी है, पर उन्हें पूरी तरह खत्म तो नहीं किया जा सकता ना। इसलिए अपनी भावनाओं को बाहर आने देने के लिए एक सेफ जगह बनाएं। यह जगह आपके खाली कमरे का आइना भी हो सकती है, जिसके सामने आप खुल कर हर गुस्सा, प्यार और आंसू बाहर ला सकें। आप किसी दोस्त या प्रेमी को भी अपनी भावनाओं को खुल कर ज़ाहिर करने के लिए चुन सकते हैं। ये आपकी ज़िंदगी की वो चुनी हुई जगहें होगीं, जहां आप सारी परेशानी और दूसरों पर आए गुस्से की भड़ास खुल कर बता सकें। ऐसा करने से न तो आपको अपनी भावनाओं को दबाना पड़ेगा और आप हर जगह ज़रूरत से ज़्यादा भावनाओं को दिखाने से भी बच जाएंगे।
कुछ बातों को अनदेखा कर दें
कभी-कभी हर परिस्थिति पर प्रतिक्रिया देने की हमारी आदत ही, हमारे लिए मुश्किल खड़ी कर देती है, इसलिए ऐसा करने से बचें। कुछ बातों को नज़रंदाज़ करना सीखें। अगर बात इतनी ज़रूरी नहीं है, या जिसका हमसे कोई लेना-देना नहीं है, तो ऐसी बातों पर भावुक होने से बचने का एकमात्र उपाय नज़रंदाज़गी ही है। ऐसा करने से हम सकारात्मक भी रहते हैं, और खुद को ज़रूरत से ज़्यादा भावुक होने से भी बचा लेते हैं। जिससे हम शांत भी रह पाते हैं।
उम्मीद है आपको इस बात का जबाव मिल गया हो कि हम अपनी भावनाओं को कैसे नियंत्रित करें। इन सभी अच्छी आदतों को अपना कर हम खुद को सकारात्मक तरीके से भावनाओं के अतिरेक से बचा सकते हैं।
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