पुरुषों से अलग होती है महिलाओं में मेंटल हेल्थ की स्थिति, जानें कैसे?

महिलाएं दिनभर घर-परिवार, नौकरी, बच्चों और समाज की उम्मीदों के बीच झूलती रहती हैं। हर दिन उनके लिए एक नया इम्तिहान होता है। उनसे उम्मीद की जाती है कि वे हमेशा स्ट्रॉन्ग रहें, मुस्कुराती रहें, सब संभाल लें। लेकिन इस 'सुपरवुमन सिंड्रोम' के नीचे दबकर वे अपनी भावनाएं और दर्द खुद से भी छुपाने लगती हैं।

कभी सोचा है, क्यों एक ही हालात में पुरुष और महिलाएं अलग-अलग तरह से रिएक्ट करते हैं? क्यों तनाव, ज़िम्मेदारियां महिलाओं पर ज़्यादा भारी पड़ती हैं? मेंटल हेल्थ कोई लग्जरी नहीं, बल्कि ज़िंदगी का ज़रूरी हिस्सा है, लेकिन जब बात महिलाओं की आती है, तो यह और भी पेचीदा हो जाता है। महिलाएं दिनभर घर-परिवार, नौकरी, बच्चों और समाज की उम्मीदों के बीच झूलती रहती हैं। हर दिन उनके लिए एक नया इम्तिहान होता है। उनसे उम्मीद की जाती है कि वे हमेशा स्ट्रॉन्ग रहें, मुस्कुराती रहें, सब संभाल लें। लेकिन इस ‘सुपरवुमन सिंड्रोम’ के नीचे दबकर वे अपनी भावनाएं और दर्द खुद से भी छुपाने लगती हैं।

शरीर की सेहत के लिए जितना ध्यान दिया जाता है, क्या उतना ही मेंटल हेल्थ पर भी दिया जाता है? शायद नहीं। हार्मोनल बदलाव, प्रेग्नेंसी, पीरियड्स, मेनोपॉज जैसी कई वजहें महिलाओं की मानसिक सेहत को गहराई से प्रभावित करती हैं। इसके साथ ही समाज की बंदिशें और पितृसत्तात्मक सोच उन्हें अपनी तकलीफें खुलकर कहने भी नहीं देतीं। डिप्रेशन, एंग्जायटी, स्ट्रेस, ये सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि लाखों महिलाओं की अनसुनी चीखें हैं। और जब वे मदद मांगती भी हैं, तो जवाब मिलता है। यही रवैया उनकी तकलीफ को और बढ़ा देता है।

तो चलिए सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि कैसे पुरुषों से अलग होती है महिलाओं में मेंटल हेल्थ की स्थिति। साथ ही महिला दिवस (International Women’s Day) और महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर भी बात करेंगे। 

महिला दिवस कब मनाया जाता है और इसका महत्व क्या है? (Mahila Divas kab manaya jata hai aur iska mahatva kya hai?)

हर साल 8 मार्च को पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। यह सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि महिलाओं के संघर्ष, उनकी सफलता और समानता की दिशा में किए गए प्रयासों को सलाम करने का दिन है। इस दिन को मनाने की शुरुआत 1908 में हुई थी, जब न्यूयॉर्क की महिलाओं ने अपने काम के घंटे घटाने, वेतन बढ़ाने और वोटिंग अधिकारों की मांग को लेकर प्रदर्शन किया था। इसके बाद 1910 में कोपेनहेगन में एक सम्मेलन हुआ, जिसमें 8 मार्च को महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा गया, और धीरे-धीरे इसे पूरी दुनिया ने अपनाया। 

महिला दिवस मनाने का मुख्य मकसद है लैंगिक समानता को बढ़ावा देना, महिलाओं के अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाना और समाज में उनकी भागीदारी को और मजबूत करना। हालांकि, आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, चाहे वह राजनीति हो, खेल हो, विज्ञान हो या बिजनेस, लेकिन अब भी कई जगहों पर उन्हें भेदभाव और असमानता का सामना करना पड़ता है। इस दिन को मनाने के पीछे एक और मकसद यह भी है कि समाज को याद दिलाया जाए कि महिलाओं के बिना प्रगति अधूरी है। अगर एक महिला शिक्षित होती है, आत्मनिर्भर बनती है, तो वह न केवल खुद को बल्कि अपने परिवार और समाज को भी आगे ले जाती है।

महिलाओं का मानसिक स्वास्थ्य (Mahilaon ka mansik swasthya)

महिलाओं का मानसिक स्वास्थ्य एक ऐसा विषय है, जिस पर अक्सर खुलकर बात नहीं होती, लेकिन यह उतना ही महत्वपूर्ण है जितना शारीरिक स्वास्थ्य। आज की भाग–दौड़ भरी ज़िंदगी, घर और काम की दोहरी ज़िम्मेदारियां, समाज की अपेक्षाएं और व्यक्तिगत इच्छाओं के बीच संतुलन बनाना, ये सब महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालते हैं। महिलाओं को बचपन से ही कई तरह की सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों में बांध दिया जाता है। करियर और परिवार के बीच तालमेल बैठाने का दबाव, शादी और मातृत्व से जुड़ी अपेक्षाएं, घरेलू हिंसा, असमानता और यौन उत्पीड़न जैसी समस्याएं उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। कई बार वे अपनी भावनाओं को दबाने की आदत बना लेती हैं, जिससे डिप्रेशन, एंग्जायटी और स्ट्रेस जैसी समस्याएं जन्म लेती हैं। 

समाज और महिलाओं की मानसिक स्थिति (Samaj aur mahilaon ki mansik sthiti)

हमारे समाज में महिलाओं से बहुत सारी उम्मीदें होती हैं। वे एक अच्छी बेटी, पत्नी, मां और बहू बनने की कोशिश में खुद को भूल जाती हैं। यह मानसिक दबाव उन्हें धीरे-धीरे कमजोर कर सकता है। आज की महिलाएं सिर्फ घर ही नहीं संभाल रहीं, बल्कि करियर में भी आगे बढ़ रही हैं। लेकिन, इसके साथ ही उन्हें घर और परिवार की ज़िम्मेदारी भी निभानी होती है। यह दोहरी ज़िम्मेदारी उनके मानसिक स्वास्थ्य (Mental Wellbeing) पर गहरा असर डाल सकती है। वहीं, महिलाओं को अक्सर अपने दर्द और भावनाओं को छिपाने के लिए कहा जाता है। तुम औरत हो, तुम्हें सहना आना चाहिए जैसी बातें सुनते-सुनते वे अपने अंदर की भावनाओं को दबाने लगती हैं, जिससे मानसिक तनाव बढ़ता जाता है। साथ ही घरेलू हिंसा, यौन शोषण और कार्यस्थल पर भेदभाव भी महिलाओं की मानसिक स्थिति को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। इनसे बाहर निकलना आसान नहीं होता और इसका असर उनकी पूरी ज़िंदगी पर पड़ता है।

हार्मोनल बदलाव और मानसिक स्वास्थ्य (Hormonal badlav aur mansik swasthya) 

महिलाओं का शरीर पुरुषों की तुलना में अलग तरह से काम करता है। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक महिलाओं के शरीर में कई हार्मोनल बदलाव होते रहते हैं। हर महीने हार्मोन में बदलाव होने से महिलाओं में मूड स्विंग्स, चिड़चिड़ापन और तनाव महसूस होना आम बात है। कुछ महिलाओं को प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम इतना अधिक प्रभावित करता है कि वे गंभीर अवसाद या एंग्जायटी से जूझने लगती हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं का शरीर शारीरिक और मानसिक रूप से कई बदलावों से गुज़रता है। जिसमें नई मां को अत्यधिक तनाव, दुख और चिंता होने लगती है। इसके साथ ही 40-50 की उम्र के बाद जब महिलाओं का मासिक चक्र बंद होने लगता है, तब हार्मोन में तेजी से बदलाव आता है, जिससे अवसाद, चिंता और चिड़चिड़ापन बढ़ सकता है।

महिलाएं मेंटल हेल्थ का ख्याल कैसे रख सकती हैं? (Mahilayen mental health ka khyal kaise rakh sakti hain?) 

दिनभर घर और ऑफिस के काम में उलझने के बजाय खुद के लिए भी वक्त निकालें। कोई हॉबी अपनाएं, किताबें पढ़ें, या संगीत सुनें। 

अगर कोई समस्या है, तो उसे अपने करीबी दोस्तों या परिवार के सदस्यों से शेयर करें। अगर ज़रूरत हो, तो काउंसलर या थेरेपिस्ट की मदद लेने में भी हिचकिचाएं नहीं। 

हर दिन थोड़ा समय योग और मेडिटेशन के लिए निकालें। यह तनाव को कम करने में बहुत मदद करता है। 

साथ ही अच्छा खाना सिर्फ शरीर के लिए ही नहीं, बल्कि दिमाग के लिए भी ज़रूरी है। अपने खाने में फल, सब्जियां और हेल्दी फूड शामिल करें। 

समझें कि हर चीज़ के लिए हां कहना ज़रूरी नहीं है। अगर आपको किसी चीज़ से मानसिक दबाव महसूस हो रहा है, तो साफ-साफ मना करना सीखें। अगर संभव हो, तो खुद को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाएं। इससे आत्मविश्वास बढ़ता है और मानसिक दबाव कम होता है। 

इस आर्टिकल में हमने महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं के मेंटल हेल्थ को लेकर बात की। साथ ही महिलाओं का मेंटल हेल्थ पुरुषों के मेंटल हेल्थ से कैसे अलग होता है, उसके बारे में बात की। यह आर्टिकल आपको कैसा लगा हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं।

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