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पुरुषों का कोमल और संवेदनशील होना, उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए है ज़रूरी

मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी है कि पुरुष भी अपने दिल की बातें खुलकर करें और ये सोचें कि इसमें कोई बुराई नहीं है। पुरुषों का अपने भावनात्मक पहलुओं को अपनाना, न सिर्फ उन्हें खुद से जोड़ता है बल्कि उनके रिश्तों को भी बेहतर बनाता है। जब वे अपनी बातें साझा करते हैं, तो परिवार और दोस्तों के साथ उनका रिश्ता मजबूत होता है।

अक्सर ऐसा माना जाता है कि पुरुष मजबूत, सख्त और बेफिक्र होते हैं। उन्हें रोना नहीं चाहिए, अपनी तकलीफें नहीं बतानी चाहिए और हमेशा मजबूत बने रहना चाहिए। लेकिन यही सोच उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौती बन जाती है। दरअसल, पुरुषों के लिए भी सॉफ्ट और संवेदनशील होना बेहद ज़रूरी है, ताकि वे अपनी भावनाओं को समझ सकें और खुलकर जाहिर कर सकें। जब पुरुष अपनी भावनाओं को दबाते हैं, तो उनके अंदर गुस्सा, उदासी और तनाव धीरे-धीरे बढ़ने लगता है, जो आगे चलकर डिप्रेशन और कई मानसिक बीमारियों का कारण बन सकता है। मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी है कि पुरुष भी अपने दिल की बातें खुलकर करें और ये सोचें कि इसमें कोई बुराई नहीं है।

पुरुषों का अपने भावनात्मक पहलुओं को अपनाना, न सिर्फ उन्हें खुद से जोड़ता है बल्कि उनके रिश्तों को भी बेहतर बनाता है। जब वे अपनी बातें साझा करते हैं, तो परिवार और दोस्तों के साथ उनका रिश्ता मजबूत होता है। समाज को भी यह समझने की ज़रूरत है कि सॉफ्ट होना या अपने दिल की बात कहना कमजोरी नहीं है। यह एक ऐसा गुण है, जो किसी को भी सशक्त बनाता है। पुरुषों का संवेदनशील और भावुक होना, उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए तो ज़रूरी है ही, साथ ही एक बेहतर समाज के लिए भी महत्वपूर्ण है। 

तो चलिए अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस (International Men’s Day) के अवसर पर सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम बताएंगे कि पुरुषों का कोमल और संवेदनशील होना, उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी क्यों हैं। साथ ही हम आपको अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस के बारे में भी बताएंगे। 

अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस कब और क्यों मनाया जाता है? (Antarrashtriya Purush Divas kab aur kyun manaya jata hai?)

अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस हर साल 19 नवंबर को मनाया जाता है। इसका मकसद है कि समाज में पुरुषों की भूमिका को सराहा जाए। उनके स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जाए और उनके सामने आने वाली चुनौतियों पर बात हो। इस दिन को मनाने की शुरुआत 1999 में त्रिनिदाद और टोबैगो में हुई थी। डॉ जेरोम तीलक्सिंग नाम के प्रोफेसर ने इस दिन को मनाने का सुझाव दिया। उनका मानना था कि जैसे महिलाओं के लिए महिला दिवस होता है, वैसे ही पुरुषों के योगदान को सम्मान देने के लिए एक दिन होना चाहिए।

अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस पर खासतौर से पुरुषों के स्वास्थ्य और मानसिक समस्याओं पर जोर दिया जाता है। अक्सर पुरुष अपनी मानसिक और शारीरिक समस्याओं को समाज के डर से छिपा लेते हैं, जिससे कई बार स्थिति और बिगड़ जाती है। उदाहरण के लिए, आत्महत्या और डिप्रेशन के मामले पुरुषों में भी बहुत होते हैं, लेकिन समाज में इस पर खुलकर बात नहीं होती। ये दिन बताता है कि समाज में पुरुषों पर भी बहुत ज़िम्मेदारियां होती हैं और उनके योगदान को सराहना ज़रूरी है। यह दिवस लैंगिक समानता का भी संदेश देता है कि जैसे महिलाओं के मुद्दे अहम हैं, वैसे ही पुरुषों के भी हैं।

पुरुषों का संवेदनशील होना उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए है ज़रूरी (Purushon ka sanvedansheel hona unk mansik swasthya ke liye hai zaroori)

पुरुषों का कोमल और संवेदनशील होना उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। समाजिक धारणाओं और संस्कृतियों में पुरुषों से कठोर और मजबूत बनने की अपेक्षा की जाती है, जिसमें उनकी भावनाओं को दबाना, रोना नही और कमजोर न दिखने की बातें शामिल होती हैं। हालांकि, यह एकतरफा अपेक्षा और भावनाओं का दमन पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य पर नेनिगेटिव प्रभाव डालता है। 

भावनाएं दबाने का पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर (Bhavnayein dabane ka purushon ke mansik swasthya par asar)

पुरुषों में भावनाओं को व्यक्त करने की कमी उन्हें डिप्रेशन और चिंता का शिकार बना सकती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, जिन पुरुषों को अपनी भावनाओं को खुलकर ज़ाहिर करने का अवसर नहीं मिलता, वे धीरे-धीरे मानसिक और शारीरिक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के आंकड़ों के अनुसार भारत में पुरुषों के बीच मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं, लेकिन वे इलाज के लिए आगे नहीं आते।

आत्महत्या के आंकड़े और मानसिक स्वास्थ्य का महत्व (Aatmhatya ke aakre aur mansik swasthya ka mahatva)

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार आत्महत्या के मामलों में पुरुषों का प्रतिशत महिलाओं की तुलना में अधिक है। साल 2021 में भारत में 70% आत्महत्या के मामले पुरुषों के थे। इसका मुख्य कारण यह है कि पुरुष अक्सर अपनी समस्याओं के बारे में खुलकर बात नहीं करते हैं, जिससे वे मानसिक तनाव से जूझते रहते हैं। 

संवेदनशीलता क्यों है ज़रूरी? (Samvedanshilta kyun hai zaroori?)

पुरुषों का कोमल और संवेदनशील होना, यानी भावनाओं को खुलकर व्यक्त करने की स्वतंत्रता मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत ज़रूरी है। जब पुरुष अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त करते हैं, तो वे अपने मानसिक तनाव को कम कर सकते हैं। इससे उन्हें अपने दोस्तों, परिवार और समाज के साथ बेहतर संबंध बनाने में भी मदद मिलती है। एक पुरुष का कोमल होना न केवल उसे खुद के प्रति ईमानदार बनाता है बल्कि उसे मानसिक रूप से मजबूत भी बनाता है, जिससे वह जीवन के संघर्षों का सामना बेहतर तरीके से कर सकता है।

समाज का प्रभाव और बदलती मानसिकता (Samaj ka prabhav aur badalti mansikta)

समाज का प्रभाव पुरुषों पर बहुत गहरा होता है। बचपन से ही लड़कों को यह सिखाया जाता है कि उन्हें कठोर और मजबूत बनना है। इस धारणा से पुरुषों को यह विश्वास हो जाता है कि भावनाओं को ज़ाहिर करना कमजोरी का प्रतीक है। हालांकि, अब इस सोच में बदलाव की शुरुआत हो रही है। लोग यह समझने लगे हैं कि मानसिक स्वास्थ्य सबके लिए महत्वपूर्ण है और पुरुषों के लिए भी भावनाओं को व्यक्त करना उतना ही आवश्यक है, जितना महिलाओं के लिए।

भावनाओं को व्यक्त करना, पुरुषों की समस्याओं का समाधान (Bhavnaon ko vyakt karna purshon ki samsyaon ka samadhan)

भावनाओं को दबाने की बजाय उन्हें व्यक्त करना पुरुषों की समस्याओं का एक प्रमुख समाधान हो सकता है। रिसर्च के अनुसार जो पुरुष अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त करते हैं, वे अधिक खुश और स्वस्थ रहते हैं। इससे उनके मन में जमा नेगेटिव भावनाएं बाहर आ जाती हैं, जिससे मानसिक शांति मिलती है। इसके अतिरिक्त, परिवार और दोस्तों के साथ अपनी समस्याओं को साझा करना मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद साबित होता है।

थेरपी और काउंसलिंग का महत्व (Therapy aur counseling ka mahatv)  

अगर कोई पुरुष अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में कठिनाई महसूस करता है, तो उसे थेरेपी या काउंसलिंग की मदद लेनी चाहिए। आजकल समाज में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी है और अब लोग काउंसलिंग को सकारात्मक रूप में देखने लगे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार थेरेपी या काउंसलिंग से पुरुषों को मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है और वे अपने जीवन में अधिक संतुलित महसूस करते हैं।

जेंडर रोल्स और उनके बदलाव की आवश्यकता (Gender rolls aur unke badlav ki avysakta) 

पुराने जेंडर रोल्स जो पुरुषों को हमेशा मजबूत दिखने की अपेक्षा करते हैं, अब बदलने की ज़रूरत है। हर व्यक्ति को संवेदनशील होने का अधिकार है, चाहे वह पुरुष हो या महिला। पुरुषों के लिए अपनी भावनाओं को स्वतंत्रता से व्यक्त करना जीवन में बेहतर संतुलन लाने में मदद करता है। यह उनके लिए एक सकारात्मक मानसिकता का निर्माण करता है, जिसमें वे खुद को अधिक पूर्ण और स्वस्थ महसूस करते हैं।

इस आर्टिकल में हमने अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस के बारे में बताया। साथ ही यह भी बताया कि पुरुषों का कोमल और संवेदनशील होना उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए क्यों ज़रूरी है। यह आर्टिकल आपको कैसा लगा, हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं। साथ ही इसी तरह की और भी जानकारी के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।

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