मैं एक शहर की निवासी हूं। मेरी सुबह किस तरह से होती है, यह कहने की ज़रुरत नहीं है। वही कानों में पड़ने वाली अलार्म की रिंग और फिर फोन पर नौकरानी की आवाज़, सड़क पर सब्जी बेचने वाले की आवाज़ और इन सब पर भारी गाड़ी के बजते तीखे हॉर्न। ऐसी सुबह की शुरुआत से किसी का भी सिर दुखने लगेगा। लेकिन, अगर आप किसी प्राकृतिक क्षेत्र (Scenic area में रह रहे हैं, तो आपके सुबह की शुरुआत पक्षियों की चहचहाहट से होगी। जो मन को सुकून देने के साथ ही आपको शांत भी करती है, जिससे दिन की एक सुखद शुरुआत (Sukhad shuruaat) होती है, जो जोश से भरी होती है। मैंने हमेशा चिड़ियों के गानों में ऊर्जा का संचार महसूस किया है।
जिस तरह से हम एक दूसरे से शब्दों के माध्यम से संचार करते हैं। उसी तरह से पक्षी भी अपनी चहचहाहट के माध्यम से आपस में संचार करते हैं। शशांक दलवी एक वन्यजीव जीवविज्ञानी हैं। जिन्होंने भारत के पश्चिमी घाटों में पाए जाने वाले पक्षियों पर रिसर्च किया है। उनका कहना है कि पक्षी आपस में ध्वनिक रूप से संवाद करते हैं। दलवी बताते हैं कि, “पक्षी दो मुख्य कारणों से चहचहाते हैं। पहला एक निश्चित क्षेत्र में अपना वर्चस्व दिखाने के लिए और दूसरा अपने दूसरे साथी को आकर्षित करने के लिए।” सामान्य तौर पर ऐसा गीत नर पक्षी गाते हैं, क्योंकि उन्हें एक क्षेत्र को अपने रहने के लिए चिह्नित करना होता है। इसके अलावा प्रजनन के मौसम में नर पक्षी गीत के माध्यम से मादा पक्षी को आकर्षित करते हैं। इसलिए प्रजनन के मौसम में पक्षियों की चहचहाहट सबसे तेज़ होती है। पक्षियों के लिए चहचहाने का कारण कोई भी हो, लेकिन यह हमारे जीवन को भी सीधे तौर पर प्रभावित करता है। आइए जानते हैं कैसे।
साइकोलॉजी का मानना है कि प्रकृति एक स्ट्रेस बस्टर (Stress Buster) है और इससे जुड़ने पर मानव मन शांत रहता है। अमेरिकी जीवविज्ञानी ईओ विल्सन ने ‘बायोफिलिया’ नाम से एक सिद्धांत प्रस्तुत किया था, जिसमें उन्होंने बताया प्रकृति से जुड़ना हमारी एक आंतरिक जरूरत है। जिसे हमें समय-समय पर पूरा करते रहना चाहिए। आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन यह सत्य है कि एक पक्षी का गाना सुनने से हमारे कान प्रकृति के संगीत को सुनने के लिए खुल जाते हैं, या यूं कह लें कि हमारे कानों की क्षमता बढ़ जाती है। साउंड एक्सपर्ट जूलियन ट्रेजर ने अपने टेड टॉक शो द फोर वेज साउंड अफेक्ट्स अस में बताया कि पक्षियों के चहकने की आवाज़ हमारे कानों को प्रकृति के संगीत को सुनने के लिए रीसेट करती है। जिस तरह से किसी वाद्य-यंत्र से निकलने वाला संगीत हमें प्रभावित करता है, ठीक उसी तरह से पक्षियों का गाना भी हमारी भावनाओं को प्रभावित कर सकता है।
पक्षियों के गीत या उनके चहचहाने की लय, अन्य संगीतों से पूरी तरह अलग है। उनके गीत पूरी तरह से संपूर्णता की परिपाटी पर प्रकृति (Prakriti) के द्वारा बुने हुए रहते हैं। जीवविज्ञानी दलवी का कहना है कि “पक्षियों की कई प्रजातियां होती हैं, उसके आधार पर उनके गाने सरल या जटिल हो सकते हैं। सामान्यतः पक्षियों के गीत लंबे और गहराई से परिपूर्ण होते हैं। लेकिन, पक्षियों के गीत, विषमता में भी संभाव्यता से भरपूर होते हैं।” पक्षियों की ध्वनियों का रैंडम पैटर्न हमारा ध्यान खींचने के लिए पर्याप्त है। उनकी बोलियां, हमारे कानों में इस तरह से अटकती है कि हम बोर भी नहीं होते हैं। इसलिए विज्ञान भी मानता है कि पक्षियों की चहचहाहट हमें शारीरिक रूप से आराम देती है और साथ ही हमें मानसिक रूप से सतर्क बनाती है। साउंड एक्सपर्ट मानते हैं कि पक्षियों की चहचहाहट हमारा ध्यान केंद्रित करने में मदद कर सकती है।
यदि हम अपने प्रतिदिन के जीवन में पक्षियों के गीतों (Pakshiyon ke geet) को शामिल करने में सफल होते हैं, तो हम एक बेहतर जीवन की तरह बढ़ सकेंगे। उदाहरण के तौर पर हम लिवरपूल शहर के एल्डर हे चिल्ड्रन हॉस्पिटल को ही ले लें। इस हॉस्पिटल में पक्षियों के गीतों की रिकॉर्डिंग चलाई जाती है, जिससे चिंतित मरीजों का मन शांत होता है। इसलिए हमें इस अभ्यास को करना चाहिए, चाहे हम किसी शोरगुल वाली सार्वजनिक जगह पर हो या अपने ऑफिस में हो।
जब भी आप किसी म्यूजिकल मोबाइल ऐप्लिकेशन में जाकर मेडिटेशन के लिए संगीत खोजेंगे, तो उसमें भी आपको पक्षियों की चहचहाहट की रिकॉर्डिंग मिल जाएगी। साउंड एक्सपर्ट ट्रेजर का कहना है कि एक ओपन ऑफिस में कर्मचारी की उत्पादकता 66 प्रतिशत तक कम हो सकती है, इससे बेहतर एक बर्डसॉन्ग की आवाज़ वाला संगीत एक कमरे में लगाने से कर्मचारी बेहतर प्रदर्शन करते हैं। पक्षियों की चहचहाहट की ध्वनियां किसी भी काम को करने की दक्षता को बढ़ाने का एक बेहतर विकल्प है। इसी क्रम में ग्लाइंड्रॉवर यूनिवर्सिटी और नाइटिंगेल एसोसिएट्स के आर्किटेक्ट्स ने मिलकर एक अध्ययन किया। उन्होंने कंपनी कॉन्डिमेंट जंकी द्वारा लिवरपूल स्कूल मेबर्डसॉन्ग बजाना शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप बच्चे अधिक सतर्क रहने लगे और दोपहर का खाना खाने के बाद उबासी या नींद में कमी दर्ज की गई।
पक्षियों के गीत हमें आराम देने के साथ, ध्यान केंद्रित करने और सतर्क रहने में मदद तो करते ही है। साथ ही उनके गीत प्रकृति का अलार्म भी हैं। जरा सोचिए कि सूर्योदय के पहले ही पक्षियों की चहचहाहट (Pakshiyon ki chahchahat) शुरू हो जाती है। कई अध्ययनों में भी यह बात साबित हुई है कि पक्षियों के गाने से एक नए दिन की शुरुआत होती हैं। ऊर्जावान गीत की शुरुआत जो सूर्योदय से पहले शुरू होती है और सूर्योदय के कई घंटों बाद तक चलता रहता है, इसे भोर गीत कहा जाता है। पक्षियों का समूह गान हमारे बायोलॉजिकल क्लॉक को कंट्रोल करता है। ट्रेजर बताते हैं कि “सैकड़ों-हजारों सालों से हमने देखा और सीखा है कि पक्षी जब गाते हैं, तो प्रकृति की चीजें सुरक्षित होती हैं।”
इसमें कोई दो राय नहीं है, पक्षियों का गीत एक प्रकार से प्रकृति का गीत है। लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम आधुनिकता में इतने व्यस्त हो गए हैं कि हम अपने जीवन में पक्षी गीत को स्वीकार करने में असफल हो जाते हैं। इसलिए कोशिश करें कि पक्षियों के गीत ज़रूर सुनें, ताकि आपकी बायोलॉजिकल क्लॉक दुरुस्त रहे। यह हमें ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है। हमारे मस्तिष्क को सतर्क रहने के लिए अभ्यस्थ करता है। पक्षी की चहचहाहट सौ मर्ज की एक दवा जैसा काम करती है।
अंत में यही कहना चाहूंगी कि बर्डसॉन्ग एक रेस्ट थेरेपी की तरह काम करती है। जो हमारे दिमाग को शांत कर के शरीर को आराम देती है।