प्लास्टिक प्रदूषण

प्लास्टिक की परत में घुट रहा है धरती का दम: कैसे है हमारे लिए एक बड़ा खतरा?

आज प्लास्टिक सिर्फ हमारी ज़रूरत नहीं, हमारी लापरवाही का बोझ बन चुकी है और ये बोझ अब हमारी धरती, हवा, पानी और शरीर तक को निगलने लगा है।

हर सुबह जब हम दूध की थैली फेंकते हैं, ऑनलाइन ऑर्डर का रैपर फाड़ते हैं या फिर सब्जी के साथ प्लास्टिक वाला थैला लेते हैं, तो हम सोचते हैं कि एक छोटी सी चीज़ से क्या फर्क पड़ेगा, लेकिन सही मायने में, फर्क तो बहुत पड़ता है। आज प्लास्टिक सिर्फ हमारी ज़रूरत नहीं है बल्कि हमारी लापरवाही का बोझ बन चुकी है और ये बोझ अब हमारी धरती, हवा, पानी और शरीर तक को निगलने लगा है।

क्या आप जानते हैं कि हर साल करीब 30 करोड़ टन प्लास्टिक का प्रोडक्शन किया जाता है, जिसमें से ज़्यादातर इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है? और फिर वो प्लास्टिक न गलता है, न सड़ता है, बस हर जगह फैलता है। एक रिसर्च के अनुसार आज एक आम इंसान हर हफ्ते करीब एक क्रेडिट कार्ड जितना माइक्रोप्लास्टिक निगल रहा है, पानी, नमक, मछली, दूध सभी में प्लास्टिक के अंश पाए गए हैं। यानी बात सिर्फ पर्यावरण की नहीं है, अब मामला सीधे-सीधे हमारे स्वास्थ्य, हमारे बच्चों के भविष्य और इस धरती के वजूद का है। प्लास्टिक अब ज़रूरत नहीं, ज़हर बन चुका है। और अगर अब भी हम नहीं जागे, तो ये वही प्लास्टिक होगा, जो सांसों से लेकर संसाधनों तक, सब कुछ निगल जाएगा।

सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम पर्यावरण दिवस (World Environment Day) के अवसर पर प्लास्टिक प्रदूषण और इसे रोकने के उपाय बताएंगे। साथ ही प्लास्टिक कैसे हमारे जीवन के लिए खतरा है, इसके बारे में भी जानकारी देंगे।

प्लास्टिक का धरती पर क्या हो रहा है असर? (Plastic ka dharti par kya ho raha hai asar?)

मिट्टी की उर्वरता खत्म हो रही

प्लास्टिक ज़मीन में दब जाए तो न सड़ता है, न मिटता है। इससे मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो जाती है और खेतों में उगने वाली फसलें भी प्रभावित होती हैं।

समुद्र में ज़हर बन रहा है

हर साल करीब 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा समुद्रों में जा रहा है। मछलियां, कछुए और पक्षी इसे खाना समझकर निगल लेते हैं, जिससे उनकी मौत हो जाती है।

माइक्रोप्लास्टिक हमारे शरीर में पहुंच रहा है

रिसर्च बताती है कि हर इंसान हफ्ते में करीबन एक क्रेडिट कार्ड जितना प्लास्टिक खा रहा है, पानी, नमक, दूध और यहां तक कि हवा के ज़रिए भी।

इंसानों की सेहत पर सीधा असर

प्लास्टिक में मिले केमिकल्स हार्मोनल बैलेंस को बिगाड़ सकते हैं। लंबे समय में इससे कैंसर, फेफड़ों की समस्या और नर्वस सिस्टम डैमेज जैसी बीमारियां हो सकती हैं।

जानवरों की जान ले रहा है

गाय, कुत्ते, बकरियां गलती से प्लास्टिक खा जाते हैं। उनकी आंतें बंद हो जाती हैं और वे तड़प-तड़प कर मर जाते हैं। हज़ारों पशु हर साल इससे मर रहे हैं।

नालियों में जाम, शहरों में जलभराव

प्लास्टिक की थैलियां और पैकेजिंग ड्रेनेज सिस्टम को ब्लॉक कर देती हैं, जिससे बारिश में जलभराव होता है और बीमारियां फैलती हैं।

जलाने से निकलता है ज़हरीला धुआं

जब प्लास्टिक जलाया जाता है, तो डाइऑक्सिन, फ्यूरन जैसे ज़हरीले गैस निकलते हैं, जो हवा को भी ज़हरीला  बना देते हैं। इससे सांस की दिक्कतें और कैंसर तक हो सकता है।

प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के ज़रूरी उपाय (Plastic pradushan ko rokne ke jaruri upay)

प्लास्टिक के खतरे को कम करने का सबसे पहला कदम है सिंगल यूज प्लास्टिक को पूरी तरह ना कहना। वो थैली जो सब्जी वाला हर बार पकड़ाता है, वो स्ट्रॉ जो चाय या जूस के साथ आती है, या वो डिस्पोजेबल चम्मच जो शादी-ब्याह में इस्तेमाल होते हैं, हमें अब इन सब चीज़ों का उपयोग करना बंद करना होगा। जब बाज़ार जाएं, तो अपने साथ कपड़े या जूट की थैली ज़रूर रखें। छोटी-सी यह आदत बहुत बड़ा असर डाल सकती है। इसी तरह प्लास्टिक की बोतलों की जगह स्टील या कांच की बोतलों का इस्तेमाल करना, न सिर्फ पर्यावरण के लिए बेहतर है, बल्कि हमारी सेहत के लिए भी फायदेमंद है।

प्लास्टिक को यूं ही कूड़ेदान में फेंक देना भी बड़ी भूल है। हमें घर में कचरा अलग-अलग रखना चाहिए, सूखा और गीला। ताकि जो प्लास्टिक रिसाइकल हो सकता है, वो सही जगह पहुंचे और बाकी कचरे से अलग रहे। साथ ही हमें अपने बच्चों को बचपन से ही यह समझाना चाहिए कि प्लास्टिक क्यों खतरनाक है और इसका इस्तेमाल क्यों नहीं करना चाहिए। आदतें बचपन में बनती हैं और वही आगे चलकर समाज की दिशा तय करती हैं। शादी-ब्याह और समारोहों में स्टील या बायोडिग्रेडेबल प्लेटें और कप का इस्तेमाल करना एक बड़ा फर्क ला सकता है। हज़ारों लोगों के खाने-पीने के इवेंट में अगर प्लास्टिक कम हो, तो इससे बहुत बड़ा बदलाव शुरू हो सकता है।

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