आज की भाग–दौड़ वाली ज़िंदगी में हम में से कई लोग रात की नींद को हल्के में ले लेते हैं। कभी ऑफिस के काम के चक्कर में, कभी देर रात तक फोन स्क्रॉल करते हुए, तो कभी बस यूं ही जागते हुए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि नींद की कमी सिर्फ थकान ही नहीं बढ़ाती, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी सीधा असर डालती है? नींद हमारे दिमाग के लिए रिचार्ज होने का समय होता है। जब हम पूरी नींद नहीं लेते, तो हमारा दिमाग ठीक से काम नहीं कर पाता, चिड़चिड़ापन, तनाव और गुस्सा बढ़ जाता है। लगातार कम सोने से डिप्रेशन, एंग्जायटी और याददाश्त की दिक्कतें हो सकती हैं। कई रिसर्च बताती हैं कि जो लोग कम सोते हैं, वे ज़्यादा चिंता और नकारात्मक सोच का शिकार होते हैं।
इसके अलावा अच्छी नींद नहीं लेने से दिमाग में टॉक्सिन्स जमा होने लगते हैं, जिससे सोचने-समझने की क्षमता पर असर पड़ता है। जब हम अच्छी नींद लेते हैं, तो हमारा दिमाग दिनभर की सूचनाओं को व्यवस्थित करता है, जिससे हम चीज़ों को बेहतर समझ और याद रख पाते हैं। अगर आप मानसिक रूप से स्वस्थ रहना चाहते हैं, तो नींद को प्राथमिकता दें। यह कोई आलस्य या समय की बर्बादी नहीं, बल्कि आपके दिमाग के लिए ज़रूरी ईंधन है।
तो चलिए सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम आपको नींद की नज़रअंदाज़गी कैसे डालती है मानसिक स्वास्थ्य पर असर, इसके बारे में और साथ ही विश्व नींद दिवस (World Sleep Day) और नींद की कमी से होने वाले रोग के बारे में भी बताएंगे।
विश्व नींद दिवस कब मनाया जाता है? (Vishva Neend Divas kab manaya jata hai?)
विश्व नींद दिवस हर साल मार्च के तीसरे शुक्रवार को मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य अच्छी नींद की अहमियत को समझाना और नींद से जुड़ी समस्याओं के प्रति लोगों को जागरूक करना है। विश्व नींद दिवस मनाने की शुरुआत 2008 में वर्ल्ड स्लीप सोसायटी द्वारा की गई थी। इसका मकसद था दुनिया भर में नींद की अहमियत और उससे जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं पर जागरूकता फैलाना।
नींद की कमी से होने वाली समस्या (Neend ki kami se hone wali samsya)
तनाव और चिड़चिड़ापन
अगर लगातार नींद पूरी न हो, तो सबसे पहला असर हमारे मूड पर पड़ता है। हमें छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आने लगता है, सब कुछ बोझिल लगने लगता है और दिमाग हर समय भारी महसूस होता है। जब दिमाग को पर्याप्त आराम नहीं मिलता, तो तनाव के हॉर्मोन (कॉर्टिसोल) का स्तर बढ़ जाता है, जिससे मानसिक शांति प्रभावित होती है।
एकाग्रता और याददाश्त पर असर
नींद हमारी याददाश्त को मजबूत करने का काम करती है। जब हम सोते हैं, तो दिनभर की जानकारी हमारे दिमाग में सही तरीके से स्टोर होती है। लेकिन जब नींद अधूरी रह जाती है, तो एकाग्रता कम हो जाती है, हम चीज़ें भूलने लगते हैं और दिमाग धीमा काम करने लगता है। यही कारण है कि जो लोग पूरी नींद नहीं लेते, उन्हें पढ़ाई या ऑफिस के काम में ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है।
डिप्रेशन और एंग्जायटी का खतरा
नींद की कमी से होने वाले रोग में से एक है डिप्रेशन और एंग्जायटी की समस्या। रिसर्च बताती है कि जो लोग नियमित रूप से 6 घंटे से कम सोते हैं, उनमें डिप्रेशन के लक्षण दिखने की संभावना ज़्यादा होती है। नींद पूरी न होने से दिमाग में नकारात्मक विचार बढ़ते हैं और भावनात्मक असंतुलन आ जाता है।
फैसले लेने की क्षमता कमजोर होती है
नींद पूरी न होने पर हमारे दिमाग की निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है। सोचने-समझने में परेशानी होती है, सही और गलत का फर्क करना मुश्किल हो जाता है। कई बार लोग थकान में गलत फैसले ले लेते हैं, जिसका असर उनकी ज़िंदगी पर पड़ सकता है।
मोटिवेशन और क्रिएटिविटी में कमी
जो लोग अच्छी नींद लेते हैं, वे ज़्यादा रचनात्मक और ऊर्जावान महसूस करते हैं। लेकिन नींद की कमी से हमारे सोचने और कुछ नया करने की क्षमता प्रभावित होती है। आलस, थकान और निराशा हावी होने लगती है, जिससे व्यक्ति का आत्मविश्वास भी कम हो जाता है।
नींद से जुड़ी परेशानी का समाधान क्या है? (Neend se judi pareshani ka samadhan kya hai?)
अगर आप मानसिक रूप से स्वस्थ रहना चाहते हैं, तो अपनी नींद को प्राथमिकता दें। हर दिन 7-8 घंटे की नींद लें। रात को सोने से पहले मोबाइल और लैपटॉप से दूरी बनाएं। सोने और जागने का एक निश्चित समय तय करें। कैफीन और नशे से बचें। साथ ही सोने से पहले हल्का संगीत सुनें या किताब पढ़ें।
इस आर्टिकल में हमने नींद की नज़रअंदाज़गी कैसे डालती है मानसिक स्वास्थ्य पर असर? इसके बारे में बताया। यह आर्टिकल आपको कैसा लगा, हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं। साथ ही इसी तरह के और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।