ज़िंदगी उतार- चढ़ावों से भरी है।हर किसी की ज़िंदगी में बहुत सी अच्छी-बुरी घटनाएं घटती रहती हैं। कभी किसी के जीवन में कोई बहुत बड़ी खुशी आती है, तो कभी किसी ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है, जो हमारे दिलों-दिमाग को बुरी तरह झकझोर देती है। ऐसी ही दर्दनाक या तनाव से भरी घटनाएं हमारे व्यवहार और व्यक्तित्व पर असर डालती हैं। इन घटनाओं का असर ही ट्रॉमा बनकर हमें वक्त-वक्त पर डराता रहता है, और जब हम अपने ट्रॉमा से पैदा हुए व्यवहार को अपने बच्चों के सामने रखते हैं तो ये जेनरेशनल ट्रॉमा बन जाता है।
जेनरेशनल ट्रॉमा या पीढ़ीगत आघात दूसरी पीढ़ी के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर करती है। इस तरह के ट्रॉमा से बचना बहुत ज़रूरी है ताकि हम अपने मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त रख कर, एक बेहतर जीवन जी पाएं। अपने जेनरेशनल ट्रॉमा को पहचानना और स्वीकार करना सबसे पहला और ज़रूरी कदम होता है। जब हम अपनी भावनाओं को समझते हैं और उन्हें खुलकर ज़ाहिर करना सीखते हैं, तब ट्रॉमा से जुड़े डर और दर्द को कम करना आसान होता है। हम सही जानकारी, थेरेपिस्ट की मदद और खुद पर भरोसा रख इस सफर को पार कर सकते हैं।
सही समय पर इसे मैनेज करने से न सिर्फ हमारी ज़िंदगी आसान बनती है, बल्कि हम ये ट्रॉमा अपनी अगली पीढ़ी तक कैरी करनेसे भी बच जाते हैं। तो चलिए, सोलवेदा के साथ मैं आपको बताती हूं कि कैसे आप अपने जेनरेशनल ट्रॉमा को हील कर सकते हैं।
क्या है जेनरेशनल ट्रॉमा या पीढ़ीगत आघात?(Kya hai generational trauma ya pidhigat aaghat?)
पीढ़ीगत आघात याजेनरेशनल ट्रॉमा उस दर्द और मानसिक असर को कहते हैं जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचता है। ये तब होता है जब किसी परिवार ने बहुत कठिनाई या दुख झेला हो, जैसे- किसी करीबी से दूर रहकर अकेलापन झेलना, गरीबी, भेदभाव या और कोई बड़ी परेशानियां।
अगर किसी के माता-पिता या दादा-दादी ने ये सब सहा हो, तो उनका अनुभव उनके व्यवहार, परवरिश और सोचने के तरीके में झलकता है। इसका असर उनके बच्चों पर भी पड़ता है, भले ही बच्चों ने वो घटनाएं खुद न देखी हों।ये असर उनके रिश्तों, मानसिक स्वास्थ्य और जीवन जीने के तरीके को प्रभावित कर सकता है। इस तरह किसी एक व्यक्ति का ट्रॉमा,उसकी अगली पीढ़ी के मानसिक स्वास्थ्य को परेशान करता है, और ये ट्रॉमा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ऐसे ही ट्रांसफर होता रहता है। पीढ़ीगत आघात(Generational trauma in hindi) को समझकर और समय पर सही मदद लेकर,इसे कम किया जा सकता है।
जनरेशन ट्रॉमा से अपने बच्चों को बचाएं (Generation trauma se apne bachhon ko bachayein)
अपने बच्चों को जेनरेशनल ट्रॉमा से बचाने के लिए सबसे पहले खुद की भावनाओं और अनुभवों को समझना ज़रूरी है। अगर कोई पुरानी घटना या तकलीफ आपके व्यवहार और सोच पर असर कर रही है, तो उसे पहचान कर, संभालने की कोशिश करें।अपने बच्चों से खुलकर बातचीत करें और उन्हें ये महसूस कराएं कि वे सुरक्षित हैं। उनके साथ ऐसा माहौल बनाएं जहां वे अपने डर और भावनाओं को आपके साथ बांट सकें।
अगर आपको ऐसा लगता है कि आपके पुराने अनुभव या पीढ़ीगत आघात आपकी परवरिश पर असर डाल रहे हैं, तो काउंसलिंग या थेरेपी लेने से मदद मिल सकती है। अपने मानसिक स्वास्थ्य (Wellbeing)का ध्यान रखें, क्योंकि आप खुश और स्वस्थ रहेंगे, तो आपके बच्चे भी एक स्वस्थ वातावरण में बड़े होंगे।
सकारात्मक सोच, प्यार और भरोसे के साथ अपने बच्चों को उस बोझ से बचाएं, जो आपके अतीत से जुड़ा है।
पीढ़ीगत आघात से खुद को करें हील (Pidhigt agaat se khud ko karein heal)
पीढ़ीगत आघात (Generational trauma in hindi)या जानरेशन ट्रॉमा से खुदको हील करना बहुत ज़रूरी है। आइये इससे खुदको हील करना सीखें:
अपने दर्द को पहचानें
सबसे पहले अपने अतीत और उसमें हुई घटनाओं को समझने की कोशिश करें। यह जानें कि कौन-सी घटनाएं या रिश्ते आपके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डाल रहे हैं। अपने विचारों और भावनाओं को महसूस करना या लिखने से इसमें मदद मिल सकती है। जब तक आप अपने ट्रॉमा को पहचानेंगे नहीं, तब तक हील करना मुश्किल होगा।
भावनाओं को बताएं
अपनी भावनाएं और परेशानियां भरोसेमंद दोस्तों, परिवार के सदस्यों या पार्टनर के साथ बांटा करें। अपने मन की बात कहने से मन हल्का होता है और आपको समझने वाले लोग सहारा बन सकते हैं। भावनाओं को दबाने से ट्रॉमा और बढ़ सकता है, इसलिए उसे बाहर निकालना ज़रूरी है।
थेरेपी या काउंसलिंग
कई बार अकेले ट्रॉमा को संभालना मुश्किल हो सकता है। ऐसे में किसी प्रोफेशनल काउंसलर या थेरेपिस्ट की मदद लें। वे आपकी समस्याओं को समझने और उनसे उबरने का सही तरीका बता सकते हैं। थेरेपी जैसे कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT) और माइंडफुलनेस, ट्रॉमा को हील करने में बहुत असर करता है।
स्वस्थ आदतें अपनाएं
अपने शरीर और मन को ठीक रखने के लिए स्वस्थ आदतें अपनाना बहुत ज़रूरी हैं। योग और ध्यान करने से तनाव कम होता है और मन शांत होता है। कुछ देर नियमित व्यायाम आपको एनर्जेटिक और पॉजिटिव महसूस कराएगा। अच्छी नींद और पौष्टिक और अच्छा खानाखाने से मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है।
सोच को सकारात्मक बनाएं
अपने अतीत को अपनाएं और खुद को माफ करना सीखें। यह समझें कि गलतियां जीवनका एक हिस्सा हैं। आज में जीने की आदत डालें और छोटी-छोटी खुशियों का मज़ा लें। नई चीज़ें सीखें, खुद को चैलेंज करें और हर दिन को एक नए मौके की तरह देखें।
साथ मांगे
ऐसे लोगों से जुड़ें जहां लोग समान अनुभव और बातें एक दूसरे से करते हैं। सामुदायिक सपोर्ट या सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स में शामिल होकर आप अपने ट्रॉमा या पीढ़ीगत आघात को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं और उनसे उबर सकते हैं।
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